
देहरादून, 18 अक्टूबर: उत्तराखंड के सूचना महानिदेशक ने सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ चल रहे भ्रामक और अपमानजनक प्रचार अभियान के खिलाफ बड़ा कदम उठाया है। उन्होंने शुक्रवार को वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (SSP) देहरादून को एक औपचारिक लिखित शिकायत सौंपी, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ लोग सुनियोजित साजिश के तहत उनकी छवि धूमिल करने की कोशिश कर रहे हैं।
सूचना महानिदेशक ने इस साजिश से जुड़े डिजिटल साक्ष्य, स्क्रीनशॉट, और व्हाट्सएप चैट्स भी पुलिस को सौंपे हैं, ताकि इन अफवाह फैलाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जा सके।
भ्रामक प्रचार के पीछे ‘संगठित गिरोह’ होने के संकेत
शिकायत पत्र में सूचना महानिदेशक ने कहा है कि पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया के कुछ अकाउंट्स और ग्रुप्स के माध्यम से उनके खिलाफ लगातार झूठे, असत्य और भ्रामक संदेश प्रसारित किए जा रहे हैं।
उन्होंने इसे एक संगठित लॉबी या असंतुष्ट समूह की सोची-समझी रणनीति बताया, जिसका उद्देश्य सरकारी तंत्र की साख को कमजोर करना और व्यक्तिगत प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाना है।
महानिदेशक ने कहा –
“मेरे खिलाफ चलाया जा रहा अभियान किसी एक व्यक्ति का काम नहीं, बल्कि यह एक सुनियोजित दुष्प्रचार तंत्र का हिस्सा है। बिना प्रमाण के आरोप लगाना और अफवाह फैलाना न केवल मेरे सम्मान और पद की गरिमा पर प्रहार है, बल्कि यह कानूनी उल्लंघन भी है।”
उन्होंने स्पष्ट किया कि इस तरह की गतिविधियाँ प्रशासनिक कार्यसंस्कृति को प्रभावित करती हैं और यह आवश्यक है कि कानून प्रवर्तन एजेंसियां ऐसे तत्वों को पहचानें और रोकें।
आईटी एक्ट और IPC की धाराओं के तहत सख्त कार्रवाई की मांग
सूचना महानिदेशक ने अपनी शिकायत में कहा है कि यह कृत्य सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (IT Act) की धारा 66A, 67 और भारतीय दंड संहिता (IPC) की मानहानि से संबंधित धाराओं का उल्लंघन करता है।
उन्होंने पुलिस से अनुरोध किया है कि ऐसे सोशल मीडिया अकाउंट्स और व्हाट्सएप ग्रुप्स की पहचान कर उन्हें तुरंत ब्लॉक किया जाए, और दोषियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई सुनिश्चित की जाए।
सूत्रों के अनुसार, शिकायत में कई फर्जी प्रोफाइलों, स्क्रीनशॉट्स और डिजिटल लिंक का उल्लेख किया गया है, जिन्हें जांच के लिए पुलिस के साइबर सेल को भेजा गया है।
साइबर क्राइम सेल को सौंपी गई जांच, तकनीकी टीम जुटी सबूतों की खोज में
देहरादून पुलिस ने इस शिकायत की पुष्टि करते हुए बताया है कि मामले को साइबर क्राइम सेल को जांच के लिए सौंप दिया गया है।
एसएसपी देहरादून के निर्देश पर साइबर एक्सपर्ट्स की एक विशेष टीम गठित की गई है, जो यह पता लगा रही है कि ये पोस्ट किस डिवाइस, आईपी एड्रेस और लोकेशन से किए गए।
प्राथमिक जांच के बाद, पुलिस आईटी एक्ट और आईपीसी की मानहानि धाराओं के तहत मामला दर्ज कर सकती है।
पुलिस सूत्रों का कहना है कि शुरुआती जांच में कुछ फेक अकाउंट्स और ग्रुप एडमिन्स की पहचान हो चुकी है, जिनके खिलाफ जल्द ही नोटिस और समन जारी किए जा सकते हैं।
सूचना विभाग में हलचल, पारदर्शिता के प्रयासों से नाराज थे कुछ लोग
विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, पिछले कुछ महीनों में सूचना महानिदेशक ने विभाग में पारदर्शिता, जवाबदेही और ई-गवर्नेंस प्रणाली को मजबूत करने के लिए कई अहम कदम उठाए थे।
इन सुधारों के चलते विभाग के भीतर कुछ असंतुष्ट तत्वों को नाराजगी थी। अब वही तत्व सोशल मीडिया पर दुष्प्रचार फैलाकर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
सूत्रों के मुताबिक, हाल में विभाग ने प्रचार बजट, मीडिया मान्यता प्रक्रिया और विज्ञापन वितरण को लेकर नई नीतियाँ लागू की थीं, जिनसे पुराने हित समूहों को नुकसान हुआ। यही वजह है कि अब “डिजिटल ब्लैकमेलिंग” के जरिए वरिष्ठ अधिकारी पर व्यक्तिगत हमला किया जा रहा है।
‘डिजिटल ब्लैकमेलिंग’ का नया चेहरा – विशेषज्ञों ने जताई चिंता
प्रशासनिक और साइबर कानून विशेषज्ञों का कहना है कि यह मामला सिर्फ किसी अधिकारी की मानहानि का नहीं, बल्कि ‘डिजिटल ब्लैकमेलिंग’ और प्रशासनिक छवि गिराने की प्रवृत्ति का हिस्सा है।
वरिष्ठ साइबर कानून विशेषज्ञों का मानना है कि जब किसी सरकारी अधिकारी को सोशल मीडिया पर अफवाहों और अप्रमाणित आरोपों का निशाना बनाया जाता है, तो यह सीधे शासन व्यवस्था, पारदर्शिता और सुशासन के तंत्र पर हमला माना जाता है।
एक विशेषज्ञ ने कहा –
“आज सोशल मीडिया सबसे प्रभावशाली माध्यम है, लेकिन जब इसका इस्तेमाल डिजिटल माफिया या असंतुष्ट लॉबी अपनी निजी या राजनीतिक रंजिश निकालने के लिए करने लगती है, तो यह लोकतंत्र और प्रशासनिक विश्वास दोनों के लिए खतरा है।”
सरकार भी सतर्क, अधिकारी-कर्मचारियों से सावधानी बरतने की अपील
राज्य सरकार ने इस पूरे घटनाक्रम को गंभीरता से लिया है। सूत्रों के मुताबिक, शीर्ष स्तर पर इस मामले की जानकारी मुख्यमंत्री कार्यालय (CMO) तक पहुंच गई है।
सरकार ने अधिकारियों से कहा है कि वे सोशल मीडिया पर प्रसारित किसी भी भ्रामक पोस्ट या अफवाह को साझा करने या उस पर प्रतिक्रिया देने से बचें, और यदि कोई संदिग्ध सामग्री दिखाई दे, तो उसे तुरंत साइबर सेल या विभागीय अधिकारी को रिपोर्ट करें।
सूचना विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि यह घटना यह संकेत देती है कि भविष्य में किसी भी सरकारी अधिकारी को “डिजिटल मानहानि” या “ऑनलाइन साजिश” से बचाने के लिए कड़े साइबर दिशानिर्देश और निगरानी तंत्र तैयार करने की आवश्यकता है।
देहरादून में सूचना महानिदेशक से जुड़ा यह मामला अब राज्य प्रशासन और साइबर सुरक्षा एजेंसियों के लिए एक टेस्ट केस बन गया है। यह सिर्फ एक अधिकारी के सम्मान का सवाल नहीं, बल्कि यह इस बात की भी कसौटी है कि राज्य प्रशासन सोशल मीडिया के दुष्प्रचार और डिजिटल ब्लैकमेलिंग जैसे नए खतरों से कितनी प्रभावी ढंग से निपट सकता है।
राज्य सरकार ने संकेत दिए हैं कि ‘झूठी खबरें फैलाने वालों के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति’ अपनाई जाएगी, ताकि भविष्य में कोई भी व्यक्ति या समूह सरकारी व्यवस्था और प्रशासनिक ईमानदारी को निशाना बनाने की हिम्मत न करे।