
नई दिल्ली, 31 जुलाई | संवाददाता: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) एक बार फिर विवादों के केंद्र में है। इस बार मामला हॉस्टल मेस में शाकाहारी और मांसाहारी छात्रों के लिए अलग-अलग बैठने की व्यवस्था से जुड़ा है। विश्वविद्यालय छात्र संघ (JNUSU) ने इस कदम को “विभाजनकारी, भेदभावपूर्ण और संस्थागत नियमों के विरुद्ध” बताया है।
विवाद का केंद्र बना है माही-मांडवी छात्रावास, जहां छात्र संघ के मुताबिक हॉस्टल अध्यक्ष (जो कथित रूप से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद – ABVP से संबद्ध हैं) ने मेस में खाद्य-आधारित अलगाव की पहल की है।
JNUSU का आरोप – “भोजन के बहाने वैचारिक बंटवारा”
जेएनयूएसयू ने अपने आधिकारिक बयान में कहा:
“छात्र समुदाय के बीच सौहार्द को तोड़ने की एक और परेशान करने वाली चाल में, माही-मांडवी छात्रावास के अध्यक्ष ने वेज और नॉनवेज खाने वालों के लिए अलग-अलग बैठने की व्यवस्था लागू की है। यह छात्रावास नियमों का स्पष्ट उल्लंघन है।”
छात्र संघ ने इसे “खाद्य-आधारित भेदभाव” करार दिया और कहा कि यह जेएनयू की समावेशी संस्कृति और लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।
हॉस्टल के सामने विरोध प्रदर्शन, प्रशासन को सौंपा ज्ञापन
इस निर्णय के खिलाफ छात्र संघ और कई छात्रों ने हॉस्टल परिसर के बाहर विरोध प्रदर्शन भी किया।
बाद में JNUSU ने इस मुद्दे को लेकर विश्वविद्यालय प्रशासन के समक्ष ज्ञापन सौंपा और तत्काल हस्तक्षेप की मांग की।
हालांकि, समाचार लिखे जाने तक JNU प्रशासन की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है।
एबीवीपी का पक्ष?
इस विवाद में हॉस्टल अध्यक्ष का नाम एबीवीपी से जोड़ा गया है, लेकिन एबीवीपी की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया गया है।
पार्टी से जुड़े कुछ छात्रों ने अनौपचारिक रूप से तर्क दिया कि “कुछ छात्रों को शाकाहारी खाने के दौरान मांसाहारी भोजन की गंध या दृश्य से असहजता होती है, इसीलिए यह कदम सुविधा के लिए उठाया गया।”
हालांकि, JNUSU का दावा है कि यह “आराम के नाम पर संस्थागत भेदभाव” है।
JNU – विचारों की टकराहट वाला परिसर
JNU लंबे समय से विचारधारा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर चर्चा में रहा है। यहाँ छात्र राजनीति और विचारधाराओं के टकराव अकादमिक विमर्श का अभिन्न हिस्सा रहे हैं।
यह ताज़ा विवाद भी राजनीतिक रंग ले चुका है, जिसमें स्वतंत्रता बनाम संस्कृति, सह-अस्तित्व बनाम पहचान, और व्यक्तिगत चुनाव बनाम सामुदायिक भावना जैसे मुद्दे उभरते दिख रहे हैं।
कानूनी और प्रशासनिक नज़रिए से क्या हो सकता है अगला कदम?
अगर यह मामला छात्रावास नियमों या विश्वविद्यालय की नीतियों के उल्लंघन का पाया गया, तो प्रशासन द्वारा आंतरिक जांच या चेतावनी/कार्रवाई की संभावना बन सकती है।
वहीं, यदि यह केवल वैकल्पिक बैठने की सुविधा है और छात्रों की सहमति से की गई है, तो इसे प्रशासन द्वारा “विकल्प का अधिकार” भी माना जा सकता है।
JNU का यह विवाद सिर्फ खाने या मेस के बैठने की व्यवस्था भर नहीं है — यह इस बात पर बहस को जन्म देता है कि शैक्षणिक संस्थानों में व्यक्तिगत आज़ादी और सामुदायिक समरसता के बीच संतुलन कैसे स्थापित किया जाए।