
श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर की राजनीति में रविवार को बड़ा मोड़ आया जब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष तारिक हामिद कर्रा ने ऐलान किया कि उनकी पार्टी राज्यसभा की चार सीटों में से किसी पर भी उम्मीदवार नहीं उतारेगी। कांग्रेस का यह फैसला उस समय आया है जब नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) ने उसे “सुरक्षित सीट” देने से इनकार कर दिया है।
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कर्रा ने यह घोषणा पार्टी नेताओं की एक मैराथन बैठक के बाद की, जिसमें राज्यसभा चुनावों और मौजूदा राजनीतिक समीकरणों पर विस्तार से चर्चा हुई। उन्होंने कहा कि पार्टी ने सर्वसम्मति से तय किया है कि वह 24 अक्टूबर को होने वाले राज्यसभा चुनाव में हिस्सा नहीं लेगी।
क्यों पीछे हटी कांग्रेस
कांग्रेस की नाराजगी का मुख्य कारण नेशनल कॉन्फ्रेंस की ओर से दी गई सीटों का बंटवारा है। कर्रा ने बताया कि पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने राज्यसभा की दो सीटों में से एक “सुरक्षित सीट” की मांग की थी। लेकिन एनसी ने कांग्रेस को उन दो सीटों में से एक की पेशकश की जिन पर एक ही अधिसूचना के तहत चुनाव होने जा रहे हैं, और जो राजनीतिक रूप से “जोखिम भरी” मानी जा रही है।
कांग्रेस का कहना है कि यह सीट सुरक्षित नहीं थी, इसलिए चुनाव में उतरने से बेहतर है कि पार्टी अपनी स्थिति स्पष्ट रखे।
कर्जा ने कहा,
“बैठक में सभी प्रतिभागियों की राय थी कि सीट नंबर चार, सीट नंबर एक या दो की तरह सुरक्षित नहीं है। इसलिए सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि हम चौथी सीट पर अपना उम्मीदवार नहीं उतारेंगे। चूंकि हमें सुरक्षित सीट नहीं दी गई, हम चुनाव नहीं लड़ेंगे और आगे का फैसला गठबंधन सहयोगियों पर छोड़ते हैं।”
नेशनल कॉन्फ्रेंस की रणनीति और बढ़ी चिंता
नेशनल कॉन्फ्रेंस पहले ही अपने तीन उम्मीदवारों के नाम घोषित कर चुकी है। पार्टी का लक्ष्य विधानसभा में अपनी ताकत का इस्तेमाल कर सभी तीन उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित करना है।
हालांकि एनसी को अपनी मौजूदा संख्या बल पर भरोसा है, लेकिन चौथी सीट पर सत्तारूढ़ गठबंधन उम्मीदवार की जीत आसान नहीं मानी जा रही। इसके लिए पार्टी को भाजपा विरोधी खेमे के हर वोट की आवश्यकता होगी।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, कांग्रेस के चुनाव से बाहर होने का सीधा असर चौथी सीट के समीकरण पर पड़ेगा। इस सीट पर अब मुकाबला एनसी और अन्य दलों के उम्मीदवारों के बीच कड़ा हो सकता है।
पीडीपी (पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी) के तीन विधायक, पीपुल्स कॉन्फ्रेंस, अवामी इत्तेहाद पार्टी (AIP) और आम आदमी पार्टी (AAP) के एक-एक विधायक अब निर्णायक भूमिका में होंगे। यदि इन दलों का समर्थन एनसी के उम्मीदवार को मिलता है, तो चौथी सीट पर जीत संभव है। लेकिन अगर इनमें से किसी ने भी तटस्थ रुख अपनाया, तो स्थिति और पेचीदा हो सकती है।
बैठक में उठे संगठनात्मक और प्रशासनिक मुद्दे भी
कांग्रेस की रविवार को हुई बैठक में केवल राज्यसभा चुनाव ही नहीं, बल्कि जम्मू-कश्मीर की मौजूदा राजनीतिक और प्रशासनिक स्थिति पर भी चर्चा की गई।
कर्जा ने बताया कि कई विधायकों ने “शासन और प्रशासनिक मुद्दों” को लेकर असंतोष जताया। उन्होंने कहा,
“बैठक में कुछ विधायकों ने विकास कार्यों की गति और प्रशासनिक फैसलों को लेकर अपनी शिकायतें रखीं। लेकिन आज की बैठक मुख्य रूप से राज्यसभा चुनावों के लिए रणनीति तय करने पर केंद्रित थी।”
बैठक में बडगाम और नगरोटा विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनावों पर भी चर्चा हुई। कांग्रेस नेतृत्व ने संकेत दिया कि इन उपचुनावों में पार्टी सक्रिय भूमिका निभा सकती है और नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ तालमेल पर विचार किया जाएगा।
गठबंधन पर उठे सवाल
कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस का गठबंधन जम्मू-कश्मीर में विपक्षी एकजुटता का प्रतीक माना जाता रहा है। लेकिन हालिया घटनाक्रम के बाद इस गठबंधन के भीतर मतभेद खुलकर सामने आ गए हैं।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि कांग्रेस को सीट न देने का एनसी का फैसला उसके “वर्चस्ववादी रवैये” की ओर इशारा करता है, जिससे गठबंधन की भावी दिशा पर प्रश्नचिन्ह लग गया है।
हालांकि कर्रा ने यह भी स्पष्ट किया कि कांग्रेस अब भी गठबंधन की भावना के प्रति प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा,
“हमारे रास्ते खुले हैं। हम नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ बातचीत जारी रखेंगे। हमारे सदस्यों से मिले सुझावों को हम केंद्रीय नेतृत्व के समक्ष रखेंगे ताकि आगे की रणनीति तय की जा सके।”
राजनीतिक समीकरणों पर असर
कांग्रेस का चुनाव न लड़ने का फैसला न केवल राज्यसभा के परिणामों को प्रभावित करेगा, बल्कि जम्मू-कश्मीर में विपक्षी एकता के भविष्य पर भी असर डालेगा।
अगर नेशनल कॉन्फ्रेंस चौथी सीट भी अपने दम पर जीत जाती है, तो गठबंधन में उसकी स्थिति और मजबूत होगी। लेकिन अगर वह इस सीट को गंवा देती है, तो यह कांग्रेस के फैसले की “राजनीतिक मान्यता” के रूप में देखा जाएगा।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि कांग्रेस का यह कदम अपने “स्वाभिमान और रणनीतिक विवेक” दोनों को संतुलित करने की कोशिश है। फिलहाल पार्टी ने साफ कर दिया है कि जब तक सहयोगियों के बीच समानता और पारदर्शिता नहीं होगी, तब तक वह “सिर्फ दिखावे के गठबंधन” का हिस्सा नहीं बनेगी।
जम्मू-कश्मीर राज्यसभा चुनाव अब कांग्रेस की गैरमौजूदगी में और भी दिलचस्प हो गए हैं। एक ओर नेशनल कॉन्फ्रेंस अपने सभी उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित करने में जुटी है, तो दूसरी ओर कांग्रेस अपने राजनीतिक आधार को नए सिरे से परिभाषित करने की कोशिश में है।
24 अक्टूबर को होने वाला यह चुनाव सिर्फ राज्यसभा की चार सीटों के लिए नहीं, बल्कि कश्मीर घाटी की बदलती राजनीतिक दिशा का भी संकेत देने वाला साबित हो सकता है।