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न्यूयॉर्क में ब्रिक्स देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक, जयशंकर ने कहा– शांति, संवाद और कूटनीति ही रास्ता

अमेरिकी धरती पर हुई अहम बैठक, ट्रंप के ब्रिक्स विरोधी रुख के बीच भारत ने दिया वैश्विक एकजुटता का संदेश

नई दिल्ली/न्यूयॉर्क: भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने अमेरिका के न्यूयॉर्क में आयोजित ब्रिक्स (BRICS) विदेश मंत्रियों की बैठक में अपने समकक्षों से वैश्विक शांति, संवाद और अंतरराष्ट्रीय कानून के पालन की दिशा में एकजुट होकर काम करने का आह्वान किया। यह बैठक कई मायनों में ऐतिहासिक रही क्योंकि पहली बार ब्रिक्स देशों के विदेश मंत्रियों की मुलाकात अमेरिकी धरती पर आयोजित हुई।

यह आयोजन ऐसे समय में हुआ जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कई बार ब्रिक्स देशों को अमेरिका विरोधी मंच करार दिया था और यहां तक कि इस समूह के देशों पर अतिरिक्त टैरिफ लगाने की धमकी भी दी थी। ऐसे में न्यूयॉर्क में हुई यह बैठक न केवल कूटनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मानी जा रही है, बल्कि यह संदेश भी देती है कि बदलती वैश्विक परिस्थितियों में संवाद और सहयोग ही भविष्य की राह है।


जयशंकर ने दिया वैश्विक शांति का संदेश

बैठक की अध्यक्षता करते हुए विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि एक अशांत और अनिश्चित दुनिया में ब्रिक्स देशों को आगे आकर जिम्मेदारी निभानी होगी।
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि आज दुनिया को युद्ध और टकराव से ज्यादा जरूरत है संवाद, कूटनीति और विश्वास बहाली की। जयशंकर ने अंतरराष्ट्रीय कानून के पालन की अहमियत पर जोर देते हुए कहा कि वैश्विक संस्थाओं में सुधार और न्यायसंगत व्यवस्था ही दुनिया को स्थिरता की ओर ले जा सकती है।

उन्होंने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर भी इस बैठक की जानकारी साझा की। उन्होंने लिखा –

“आज न्यूयॉर्क में ब्रिक्स विदेश मंत्रियों की बैठक की मेजबानी की। एक अशांत दुनिया में हमें शांति स्थापना, संवाद, कूटनीति और अंतरराष्ट्रीय कानून के पालन के संदेश को लेकर आगे बढ़ना चाहिए।”


अमेरिका में बैठक क्यों है खास?

आम तौर पर ब्रिक्स शिखर बैठकें और विदेश मंत्रियों की मुलाकातें सदस्य देशों या तटस्थ स्थलों पर होती रही हैं। लेकिन इस बार इसका आयोजन अमेरिका में हुआ, जो अपने आप में एक अनोखी घटना है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम यह दर्शाता है कि ब्रिक्स अब केवल “क्षेत्रीय या अमेरिका विरोधी मंच” तक सीमित नहीं है, बल्कि यह वैश्विक मंच पर एक संतुलनकारी शक्ति के रूप में उभर रहा है।

ब्रिक्स देशों – ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका – ने बीते कुछ वर्षों में आर्थिक और राजनीतिक स्तर पर अपनी सामूहिक आवाज को मजबूत करने की कोशिश की है। ऊर्जा, व्यापार, जलवायु परिवर्तन और वैश्विक संस्थाओं में सुधार जैसे मुद्दों पर यह समूह लगातार संयुक्त रुख अपनाता रहा है।


ट्रंप और ब्रिक्स: टकराव का इतिहास

अमेरिका और ब्रिक्स देशों के रिश्तों की बात करें तो डोनाल्ड ट्रंप का रुख हमेशा से इस संगठन के प्रति आलोचनात्मक रहा है। ट्रंप ने कई मौकों पर ब्रिक्स को अमेरिका की आर्थिक और सामरिक ताकत को चुनौती देने वाला मंच बताया। उन्होंने ब्रिक्स देशों पर अतिरिक्त टैरिफ लगाने तक की घोषणा की थी।
कूटनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि ऐसे समय में अमेरिका में ही ब्रिक्स देशों की बैठक होना एक साफ संकेत है कि यह संगठन अब अमेरिकी सीमाओं से परे जाकर अपनी स्वतंत्र पहचान गढ़ने में सफल हो रहा है।


भारत की भूमिका: ‘पुल’ बनने की कोशिश

भारत, ब्रिक्स समूह में हमेशा से एक संतुलनकारी भूमिका निभाता रहा है। जहां रूस और चीन जैसे देशों के साथ पश्चिमी देशों का टकराव जगजाहिर है, वहीं भारत ने कई मौकों पर ब्रिक्स को एक “रचनात्मक और सहयोगी मंच” बनाए रखने की दिशा में काम किया है।
जयशंकर ने इस बैठक में भी स्पष्ट संदेश दिया कि भारत न तो किसी खेमे की राजनीति का हिस्सा है और न ही ब्रिक्स को किसी देश या समूह के खिलाफ इस्तेमाल करना चाहता है। बल्कि भारत का मकसद है कि यह संगठन वैश्विक चुनौतियों का साझा समाधान तलाशे।


वैश्विक संदर्भ: शांति बनाम संघर्ष

आज की दुनिया कई तरह की चुनौतियों से जूझ रही है –

  • रूस-यूक्रेन युद्ध से पैदा हुआ संकट,
  • मध्य-पूर्व में अस्थिरता,
  • जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा संकट,
  • और वैश्विक आर्थिक असमानताएं।

ऐसे समय में ब्रिक्स की यह बैठक बेहद अहम मानी जा रही है। जयशंकर का जोर इस बात पर था कि संवाद और अंतरराष्ट्रीय कानून का सम्मान ही विश्व व्यवस्था को टिकाऊ बना सकता है।


ब्रिक्स का बढ़ता प्रभाव

पिछले कुछ वर्षों में ब्रिक्स देशों ने संयुक्त राष्ट्र और जी-20 जैसे मंचों पर भी अपनी भूमिका को मजबूत किया है।

  • विकासशील देशों की आवाज बुलंद करना,
  • वैश्विक वित्तीय संस्थाओं में सुधार की मांग,
  • और दक्षिण-दक्षिण सहयोग (South-South Cooperation) को आगे बढ़ाना,
    ये ब्रिक्स के प्रमुख एजेंडे रहे हैं।

न्यूयॉर्क बैठक के दौरान भी इस बात पर चर्चा हुई कि कैसे ब्रिक्स देश वैश्विक संस्थाओं में सुधार के लिए संयुक्त रूप से दबाव बना सकते हैं।

न्यूयॉर्क में हुई ब्रिक्स विदेश मंत्रियों की बैठक ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि बदलते अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में यह संगठन केवल एक क्षेत्रीय समूह नहीं, बल्कि एक वैश्विक शक्ति संतुलन का अहम स्तंभ है।
भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर का संदेश साफ था –

“आज दुनिया को जरूरत है शांति की, संवाद की और नियम आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की।”

यह बैठक न केवल कूटनीति का हिस्सा थी बल्कि यह भी दर्शाती है कि वैश्विक राजनीति के इस दौर में ब्रिक्स अब विकल्प नहीं, बल्कि आवश्यकता बन चुका है।

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