
पटना: बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा के साथ ही राज्य की राजनीति में नई सियासी हलचल शुरू हो गई है। एक ओर जहां एनडीए खेमे में सीट बंटवारे को लेकर गहमागहमी तेज है, वहीं दूसरी ओर लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता चिराग पासवान ने ऐसा कदम उठाया है जिसने पूरे राजनीतिक परिदृश्य में हलचल मचा दी है। सूत्रों के अनुसार, चिराग पासवान ने प्रशांत किशोर (पीके) की पार्टी से संपर्क साधा है। माना जा रहा है कि यह कदम ‘प्रेशर पॉलिटिक्स’ का हिस्सा है, ताकि एनडीए में उन्हें अधिक सीटों पर दावा मजबूत करने का मौका मिल सके।
🔹 चिराग का दांव या दबाव?
राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि चिराग पासवान एनडीए गठबंधन के भीतर 25 से 30 सीटों की मांग पर अड़े हुए हैं। सूत्र बताते हैं कि उन्होंने हाल में प्रशांत किशोर के सहयोगियों से संपर्क साधा है। एलजेपी (आर) के अंदरूनी सूत्रों ने भी संकेत दिए हैं कि “हमारे दरवाजे सबके लिए खुले हैं।”
इस बयान को बिहार की राजनीति में एक ‘ओपन इनविटेशन’ के तौर पर देखा जा रहा है।
चिराग का यह कदम न केवल एनडीए के भीतर बेचैनी बढ़ा रहा है, बल्कि यह भी संकेत दे रहा है कि अगर उनकी बात नहीं मानी गई तो वे 2020 की तरह इस बार भी अलग राह अपना सकते हैं।
🔹 प्रशांत किशोर के साथ रिश्तों की गर्माहट
चिराग पासवान और प्रशांत किशोर के बीच राजनीतिक समीकरणों की गर्माहट नई नहीं है। प्रशांत किशोर कई मौकों पर चिराग की साफ-सुथरी राजनीतिक छवि और युवाओं के बीच लोकप्रियता की तारीफ कर चुके हैं।
अब जब चिराग ने प्रशांत किशोर की पार्टी से संपर्क साधा है, तो इसे महज औपचारिक मुलाकात नहीं माना जा रहा। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह एनडीए के भीतर चल रही सीट शेयरिंग की खींचतान पर सीधा दबाव बनाने की रणनीति हो सकती है।
🔹 एनडीए में मंथन तेज, धर्मेंद्र प्रधान कर रहे हैं समन्वय
इधर, बिहार बीजेपी प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान एनडीए सहयोगी दलों के साथ लगातार बैठकों में व्यस्त हैं।
सूत्रों के अनुसार, अगले एक या दो दिन में सीट बंटवारे का औपचारिक ऐलान किया जा सकता है।
हालांकि चिराग के इस अप्रत्याशित कदम के बाद यह प्रक्रिया और जटिल होती दिख रही है।
एनडीए के सहयोगी दलों में जेडीयू, एचएएम और आरएलएसपी भी अपने-अपने हिस्से की सीटों को लेकर सक्रिय हैं।
🔹 2020 का इतिहास दोहराने की आशंका
यह पहली बार नहीं है जब चिराग पासवान ने एनडीए के लिए मुश्किलें खड़ी की हों।
2020 के विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने भाजपा-जेडीयू गठबंधन से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया था।
हालांकि उस चुनाव में एलजेपी (आर) को बहुत अधिक सीटें नहीं मिलीं, लेकिन उनके उम्मीदवारों ने जेडीयू को कई सीटों पर नुकसान पहुंचाया था।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि इस बार भी अगर चिराग अलग राह चुनते हैं, तो जेडीयू और एनडीए की जीत का समीकरण बदल सकता है।
🔹 एलजेपी (आर) की रणनीति: बिहार की सियासत में तीसरा विकल्प?
चिराग पासवान की पार्टी इस बार स्वतंत्र भूमिका निभाने की तैयारी में दिखाई दे रही है।
पार्टी सूत्रों का कहना है कि बिहार की जनता अब पारंपरिक गठबंधनों से थक चुकी है और वह युवा नेतृत्व और नए विकल्प की तलाश में है।
प्रशांत किशोर के साथ तालमेल से एलजेपी (आर) को एक राजनीतिक दिशा और चुनावी रणनीति की धार मिल सकती है।
अगर यह गठजोड़ साकार होता है, तो यह बिहार की राजनीति में एक नया ‘थर्ड फ्रंट’ तैयार कर सकता है।
🔹 एनडीए की मुश्किलें क्यों बढ़ीं?
चिराग पासवान का यह कदम भाजपा और जेडीयू दोनों के लिए सिरदर्द बन गया है।
जहां भाजपा नहीं चाहती कि एनडीए का वोट बैंक विभाजित हो, वहीं जेडीयू को डर है कि 2020 की तरह चिराग की बगावत सीधे उसके वोट शेयर को नुकसान पहुंचा सकती है।
भाजपा के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि शीर्ष नेतृत्व अब चिराग को मनाने की कोशिश में जुटा है।
इसके लिए दिल्ली में भी बैठकों का दौर चल रहा है।
🔹 बिहार चुनाव 2025 का शेड्यूल
- पहला चरण: 6 नवंबर को 121 सीटों पर मतदान
- दूसरा चरण: 11 नवंबर को 122 सीटों पर मतदान
- मतगणना और नतीजे: 14 नवंबर को घोषित किए जाएंगे
राज्य में दो चरणों में होने वाले इस चुनाव को लेकर सभी दलों ने अपने प्रचार अभियान तेज कर दिए हैं।
एनडीए जहां ‘सुशासन और विकास’ के एजेंडे पर चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी में है, वहीं विपक्ष रोजगार, भ्रष्टाचार और कानून व्यवस्था जैसे मुद्दों को भुनाने में जुटा है।
🔹 राजनीतिक विश्लेषकों की राय
पटना विश्वविद्यालय के राजनीतिक विश्लेषक डॉ. राकेश सिन्हा का कहना है —
“चिराग पासवान का यह कदम एक रणनीतिक संदेश है कि उन्हें एनडीए में ‘जूनियर पार्टनर’ नहीं माना जाए।
अगर भाजपा-जेडीयू ने उनकी मांगों को नजरअंदाज किया, तो यह गठबंधन के लिए राजनीतिक आत्मघाती कदम साबित हो सकता है।”
वहीं, वरिष्ठ पत्रकार नीलम वर्मा कहती हैं —
“चिराग का स्टाइल आक्रामक है, लेकिन वह सोच-समझकर दांव चलते हैं। प्रशांत किशोर के साथ नजदीकी महज दिखावा नहीं लगती।
बिहार में यह गठजोड़ सत्ता समीकरणों को तीसरे मोर्चे की शक्ल दे सकता है।”
चिराग पासवान के इस कदम ने एनडीए को एक बार फिर सोचने पर मजबूर कर दिया है। अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या भाजपा और जेडीयू एलजेपी (आर) को मनाने में कामयाब होंगे या फिर 2020 की तरह बिहार की राजनीति में एक और अलग मोर्चा तैयार होगा।
एक बात तय है —बिहार का सियासी तापमान चढ़ चुका है, और चिराग पासवान ने अपने इस दांव से चुनावी शतरंज में पहली तेज और चालाक चाल चल दी है।