यूपी में विधायकों-मंत्रियों की सैलरी और भत्तों में बंपर बढ़ोतरी
9 साल बाद वेतन संशोधन, पेंशन में भी 40% इजाफा; सरकार पर 105 करोड़ का अतिरिक्त बोझ

लखनऊ, 14 अगस्त 2025 – उत्तर प्रदेश विधानसभा ने गुरुवार को राज्य के मंत्रियों और विधायकों के वेतन व भत्तों में बड़ी बढ़ोतरी को मंजूरी दे दी। उत्तर प्रदेश राज्य विधानमंडल सदस्य और मंत्री सुविधा कानून (संशोधन) विधेयक 2025 को सदन में सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया। इसके साथ ही पूर्व विधायकों की पेंशन में भी उल्लेखनीय इजाफा हुआ है।
वेतन और भत्तों में बड़ा उछाल
संशोधित प्रावधानों के तहत मंत्रियों का मासिक वेतन 40,000 रुपये से बढ़ाकर 50,000 रुपये कर दिया गया है, जबकि विधायकों का वेतन 25,000 रुपये से बढ़ाकर 35,000 रुपये कर दिया गया है। इसके अलावा, विधायकों का चिकित्सीय भत्ता 30,000 रुपये से बढ़ाकर 45,000 रुपये प्रति माह कर दिया गया है।
निर्वाचन क्षेत्र भत्ता भी 50,000 रुपये से बढ़ाकर 75,000 रुपये प्रति माह कर दिया गया है। रेलवे कूपन का वार्षिक मूल्य 4.25 लाख रुपये से बढ़ाकर 5 लाख रुपये कर दिया गया है, जबकि टेलीफोन भत्ता 6,000 रुपये से बढ़ाकर 9,000 रुपये हो गया है। साथ ही, हर विधायक को अब 30,000 रुपये प्रति माह सचिव भत्ता भी मिलेगा।
अब कितनी होगी कुल सैलरी
इन बढ़ोतरी के बाद, विधायकों को कुल मासिक वेतन और भत्ते 2.01 लाख रुपये से बढ़कर 2.66 लाख रुपये मिलेंगे। मंत्रियों के लिए यह राशि 2.11 लाख रुपये से बढ़कर 2.76 लाख रुपये हो जाएगी।
सदन और समितियों की बैठकों के दौरान प्रति दिन का भत्ता 2,000 रुपये से बढ़ाकर 2,500 रुपये कर दिया गया है, जबकि सदन के सत्र में न होने या समिति की बैठक न होने पर सार्वजनिक सेवा के लिए मिलने वाला भत्ता 1,500 रुपये से बढ़ाकर 2,000 रुपये प्रतिदिन कर दिया गया है।
पूर्व विधायकों की पेंशन में इजाफा
पूर्व विधायकों की पेंशन भी न्यूनतम 25,000 रुपये से बढ़ाकर 35,000 रुपये प्रति माह कर दी गई है। यह वृद्धि कुल 40% है। नई दरें 1 अप्रैल 2025 से लागू होंगी।
सरकार का तर्क – 9 साल बाद बढ़ोतरी
राज्य सरकार का कहना है कि विधायकों और मंत्रियों के वेतन में यह वृद्धि नौ साल बाद की गई है। सरकार ने बताया कि महंगाई और जीवन-यापन की लागत में वृद्धि को देखते हुए यह संशोधन जरूरी था। हालांकि, इससे राज्य सरकार के खजाने पर 105.21 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।
राजनीतिक और जन प्रतिक्रिया
वेतन वृद्धि के इस फैसले ने राजनीतिक हलकों और आम जनता में अलग-अलग प्रतिक्रियाएं उत्पन्न की हैं। सत्तारूढ़ दल के नेताओं का कहना है कि जनप्रतिनिधियों के लिए बेहतर सुविधाएं और संसाधन जरूरी हैं, ताकि वे अपने निर्वाचन क्षेत्रों में अधिक प्रभावी ढंग से काम कर सकें। वहीं, विपक्ष के कुछ नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इसे जनता की आर्थिक स्थिति के विपरीत बताया और प्राथमिकताओं पर सवाल उठाए।
विधानसभा में सर्वसम्मति से पारित
दिलचस्प बात यह है कि इस विधेयक को सदन में बिना किसी विरोध के सर्वसम्मति से पारित किया गया। इससे यह स्पष्ट होता है कि सभी दलों के विधायक अपने वेतन और भत्तों में बढ़ोतरी के पक्ष में थे।