
हैदराबाद: तेलंगाना में सामाजिक न्याय की दिशा में एक बड़ा कदम उठाते हुए मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी की अध्यक्षता में आयोजित राज्य कैबिनेट की 19वीं बैठक में स्थानीय निकाय चुनावों में पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए 42% आरक्षण को मंजूरी दे दी गई है। यह फैसला राज्य की आधी से ज्यादा आबादी वाले पिछड़ा वर्ग समुदाय को राजनीतिक प्रतिनिधित्व देने की दिशा में मील का पत्थर माना जा रहा है।
327 मुद्दों पर हुई चर्चा, 321 पर लगी मुहर
यह बैठक 7 दिसंबर 2023 से अब तक की 19वीं कैबिनेट मीटिंग थी। अब तक कुल 327 मामलों में से 321 को स्वीकृति मिल चुकी है। इस बैठक में पिछली नीतियों की समीक्षा के साथ कई अहम नए निर्णय लिए गए।
आरक्षण पर कैबिनेट का ऐतिहासिक फैसला
- विधानसभा द्वारा पहले ही पिछड़ा वर्ग को 42% आरक्षण का बिल पारित किया गया था।
- अब कैबिनेट ने इसे स्थानीय निकायों में प्रभावी बनाने की मंजूरी दे दी है।
- हाईकोर्ट के निर्देश के तहत जुलाई अंत तक आरक्षण की प्रक्रिया को अंतिम रूप देने की समयसीमा है।
आरक्षण ग्राम पंचायत सरपंचों, मंडल पंचायत समितियों, जिला पंचायतों और अध्यक्षों के स्तर पर लागू होगा। राज्य सरकार ने जाति जनगणना और एक OBC आयोग का गठन भी कर लिया है।
पंचायत राज अधिनियम में संशोधन
इस निर्णय को लागू करने के लिए तेलंगाना पंचायत राज एक्ट, 2018 में संशोधन को भी कैबिनेट की मंजूरी मिल गई है।
शिक्षा क्षेत्र में दो नई यूनिवर्सिटी
कैबिनेट ने राज्य में दो नई निजी विश्वविद्यालयों को अनुमति दी:
- एमिटी यूनिवर्सिटी – जिसमें 50% सीटें तेलंगाना के स्थानीय छात्रों के लिए आरक्षित होंगी।
- सेंट मैरीज रिहैबिलिटेशन यूनिवर्सिटी
नगरपालिकाओं का पुनर्गठन
- संगारेड्डी जिले की जिन्नाराम और इंद्रेशम नगरपालिकाओं की 18 ग्राम पंचायतों को अधिसूचना से हटाने की स्वीकृति दी गई।
आधुनिक गोशालाओं की योजना
- मुख्य सचिव की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति गठित।
- समिति राज्य की 306 मौजूदा गोशालाओं के सुधार और एनकेपल्ली, हैदराबाद, वेमुलावाड़ा, और यादगिरिगुट्टा में नई आधुनिक गोशालाएं बनाने की रूपरेखा तैयार करेगी।
भूमि अधिग्रहण को मिलेगी रफ्तार
राज्य में लंबित पड़ी कई योजनाओं को गति देने के लिए भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया तेज करने के आदेश दिए गए हैं।
राजनीतिक प्रतिनिधित्व, सामाजिक न्याय, शिक्षा और पशु संरक्षण जैसे क्षेत्रों में लिए गए फैसले तेलंगाना की नई विकास दिशा को दर्शाते हैं। पिछड़ा वर्ग को 42% आरक्षण देना, न सिर्फ राजनीतिक सशक्तिकरण की दिशा में साहसी पहल है, बल्कि देश भर के लिए एक नीति-निर्धारण मिसाल भी बन सकती है।