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Adani Hindenburg Case: सेबी की क्लीन चिट से अदाणी शेयरों को सहारा, हिंडनबर्ग के आरोप निराधार 

भारतीय बाजार नियामक ने गुरुवार को अपने अंतिम आदेश में अदाणी समूह को इनसाइडर ट्रेडिंग और संबंधित पक्ष लेनदेन के आरोपों से किया बरी

नई दिल्ली: अदाणी समूह और हिंडनबर्ग रिसर्च मामले में बड़ा मोड़ आ गया है। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) ने गुरुवार को अपना अंतिम आदेश जारी करते हुए अदाणी समूह को सभी आरोपों से बरी कर दिया। सेबी ने स्पष्ट किया कि शॉर्ट सेलिंग फर्म हिंडनबर्ग द्वारा जनवरी 2023 में लगाए गए आरोपों की जांच के दौरान कोई ठोस साक्ष्य सामने नहीं आए। इस तरह अदाणी पोर्ट्स, अदाणी पावर, अदाणी एंटरप्राइजेज समेत समूह की कई कंपनियों और चेयरमैन गौतम अदाणी को क्लीन चिट मिल गई।

SEBI: इनसाइडर ट्रेडिंग और संबंधित लेन-देन के आरोप गलत साबित

सेबी के आदेश के मुताबिक, अदाणी समूह के खिलाफ इनसाइडर ट्रेडिंग या गड़बड़ी वाले लेन-देन का कोई सबूत नहीं मिला। 18 सितंबर को पारित आदेश में चेयरमैन गौतम अदाणी, उनके भाई राजेश अदाणी और संबंधित कंपनियों को दोषमुक्त कर दिया गया। नियामक ने कहा कि उस अवधि में जिन सौदों का हवाला दिया गया था, वे “संबंधित पक्ष लेन-देन” की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आते थे। यह प्रावधान बाद में 2021 में संशोधित किया गया।

हिंडनबर्ग ने लगाए थे गंभीर आरोप

जनवरी 2023 में अमेरिकी शॉर्ट सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च ने अदाणी समूह पर स्टॉक मैनिपुलेशन, इनसाइडर ट्रेडिंग और शेल कंपनियों के माध्यम से पैसे के लेन-देन के गंभीर आरोप लगाए थे। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद भारतीय शेयर बाजार में भारी उथल-पुथल मच गई थी। अदाणी समूह की कंपनियों के शेयरों में ऐतिहासिक गिरावट दर्ज की गई और समूह की बाजार पूंजीकरण में कुछ ही दिनों में लाखों करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।

तीन कंपनियों के जरिए पैसे घुमाने का आरोप

हिंडनबर्ग ने अपने रिपोर्ट में दावा किया था कि अदाणी समूह ने तीन कंपनियों — एडिकॉर्प एंटरप्राइजेज, माइलस्टोन ट्रेडलिंक्स और रेहवर इन्फ्रास्ट्रक्चर — का इस्तेमाल मनी रूटिंग के लिए किया। आरोप यह था कि इन कंपनियों के जरिए अदाणी समूह ने अपनी ही फर्मों में निवेश किया ताकि नियमों से बचा जा सके और निवेशकों को गुमराह किया जा सके।

अदाणी समूह का पलटवार

हालांकि शुरुआत से ही अदाणी समूह ने इन आरोपों को खारिज किया। कंपनी ने बयान जारी कर कहा था कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट “पूर्व-निर्धारित, शरारती और दुर्भावनापूर्ण” थी, जिसका उद्देश्य केवल शेयरों को गिराकर मुनाफा कमाना था। समूह ने साफ किया था कि सभी लेन-देन नियमों के अनुरूप और पारदर्शी तरीके से हुए हैं।

बाजार पर असर और निवेशकों की प्रतिक्रिया

सेबी की क्लीन चिट के बाद अदाणी समूह की कंपनियों के शेयरों में तेजी देखी गई। निवेशकों ने इसे “बड़े राहत भरे फैसले” के तौर पर लिया है। मार्केट एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह आदेश विदेशी निवेशकों और रेटिंग एजेंसियों के भरोसे को भी मजबूत करेगा। वहीं, राजनीतिक हलकों में यह फैसला एक बार फिर चर्चा का विषय बन गया है। विपक्षी दलों ने जहां पहले हिंडनबर्ग की रिपोर्ट को आधार बनाकर अदाणी समूह और सरकार पर सवाल खड़े किए थे, अब सेबी के आदेश के बाद उनकी रणनीति पर भी असर पड़ सकता है।

SEBI का आदेश क्यों अहम है?

यह आदेश न सिर्फ अदाणी समूह के लिए, बल्कि भारतीय शेयर बाजार और निवेशकों के भरोसे के लिहाज से भी बेहद अहम माना जा रहा है। हिंडनबर्ग रिपोर्ट आने के बाद भारत की छवि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी प्रभावित हुई थी। कई विदेशी निवेशकों ने सावधानी बरतनी शुरू कर दी थी। अब जब नियामक ने मामले की जांच पूरी करके समूह को क्लीन चिट दी है, तो इससे भारत की वित्तीय प्रणाली की पारदर्शिता और मजबूती पर सकारात्मक संदेश जाएगा।

राजनीतिक और आर्थिक मायने

सेबी का यह आदेश ऐसे समय में आया है जब विपक्ष लगातार केंद्र सरकार और अदाणी समूह के रिश्तों को लेकर हमलावर रहा है। संसद से लेकर सड़क तक यह मुद्दा कई बार गरमा चुका है। अब जबकि नियामक ने किसी भी गड़बड़ी से इनकार कर दिया है, तो यह अदाणी समूह और सरकार दोनों के लिए बड़ी राहत है। साथ ही यह फैसला अदाणी की अधूरी परियोजनाओं और विदेशों में फंडिंग की संभावनाओं को भी बल देगा।

हिंडनबर्ग रिपोर्ट से उठे बवंडर ने अदाणी समूह ही नहीं, बल्कि भारतीय बाजार और राजनीतिक माहौल को भी गहराई से प्रभावित किया था। सेबी का ताजा आदेश उस अध्याय को लगभग बंद कर देता है। अब निवेशकों की नजर इस बात पर होगी कि अदाणी समूह आने वाले महीनों में अपनी वित्तीय स्थिति और कॉर्पोरेट गवर्नेंस को किस तरह और मजबूत करता है।

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