नई दिल्ली। केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) ने रिश्वतखोरी के एक मामले में रक्षा मंत्रालय के रक्षा उत्पादन विभाग में तैनात लेफ्टिनेंट कर्नल दीपक कुमार शर्मा को गिरफ्तार किया है। उन पर आरोप है कि वे निजी कंपनियों से अवैध लाभ लेकर उन्हें अनुचित लाभ पहुँचाने में शामिल थे और इसके बदले नियमित रूप से रिश्वत लेते थे।
शिकायत से छापेमारी तक की कार्रवाई
जानकारी के अनुसार, लेफ्टिनेंट कर्नल दीपक कुमार शर्मा डिपार्टमेंट ऑफ डिफेंस प्रोडक्शन में डिप्टी प्लानिंग ऑफिसर के पद पर कार्यरत हैं और उनके खिलाफ 19 दिसंबर को रक्षा मंत्रालय को रिश्वतखोरी से जुड़ी शिकायत प्राप्त हुई थी। शिकायत के आधार पर CBI ने प्राथमिक जांच के बाद जाल बिछाकर 3 लाख रुपये की कथित रिश्वत देने वाले विनोद कुमार नाम के व्यक्ति को पकड़ा, जो इस सौदे में बिचौलिये की भूमिका निभा रहा था।
इसके बाद एजेंसी ने दीपक कुमार शर्मा के दिल्ली, बेंगलुरु और राजस्थान स्थित ठिकानों पर तलाशी अभियान चलाया। छापेमारी के दौरान दिल्ली स्थित आवास से कथित रिश्वत की रकम 3 लाख रुपये के साथ-साथ 2 करोड़ 23 लाख रुपये नकद बरामद किए गए, जिसकी स्रोत और स्वामित्व की जांच की जा रही है।
गिरफ्तारियां, हिरासत और आगे की जांच
CBI ने इस मामले में लेफ्टिनेंट कर्नल दीपक कुमार शर्मा के अलावा प्राइवेट व्यक्ति विनोद कुमार को भी गिरफ्तार किया है, जो कथित तौर पर रिश्वत की रकम पहुंचाने और कंपनियों के संपर्क साधने का काम करता था। दोनों आरोपियों को गिरफ्तारी के बाद अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें 23 दिसंबर तक CBI की हिरासत में भेज दिया गया है, ताकि पूछताछ और सिलसिलेवार पूछताछ की जा सके।
मामले में दुबई स्थित एक कंपनी का नाम भी सामने आया है, जो रक्षा उत्पादों के निर्माण और निर्यात जैसे कामों से जुड़ी बताई जा रही है। जांच एजेंसी यह पड़ताल कर रही है कि क्या विदेश से आने वाले अनुबंधों, सप्लाई या क्लियरेंस से जुड़ी फाइलों में अनुचित लाभ देने के बदले रिश्वत ली गई और उसमें कौन-कौन से अधिकारी व कंपनियाँ शामिल थीं।
आरोप: कंपनियों से साज़िश कर गलत फ़ेवर का नेटवर्क
एजेंसी को मिली शिकायत और शुरुआती जांच के अनुसार, आरोप है कि लेफ्टिनेंट कर्नल दीपक कुमार शर्मा डिफेंस प्रोडक्ट बनाने और एक्सपोर्ट करने वाली विभिन्न निजी कंपनियों के प्रतिनिधियों के साथ मिलकर आपराधिक साज़िश रचते थे। बदले में उनसे नकद और अन्य प्रकार के अवैध लाभ लेकर टेंडर, अप्रूवल, क्लियरेंस या अन्य आधिकारिक प्रक्रियाओं में उन्हें अनुचित फ़ेवर दिया जाता था।
जांच अधिकारियों का मानना है कि यह रिश्वतखोरी किसी एक बार का सौदा नहीं, बल्कि आदतन और संगठित तरीके से चलने वाली गतिविधि का हिस्सा हो सकती है। CBI अब जब्त नकदी, डिजिटल डाटा, बैंक रिकॉर्ड और संदिग्ध कंपनियों के लेन-देन की जांच कर यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि घूस की कुल रकम कितनी थी, कितने सौदों में गड़बड़ी हुई और इसमें अन्य किस स्तर के अधिकारी शामिल हो सकते हैं।



