
मुंबई। महाराष्ट्र में नगर परिषदों और नगर पंचायतों के चुनाव के नतीजे आज आने वाले हैं, जिनके लिए सुबह से मतगणना जारी है। शनिवार को राज्य के 288 शहरी निकायों में मतदान संपन्न हुआ था और अब नज़र इस बात पर है कि किस दल को कितनी सीटें मिलती हैं और जमीनी स्तर पर जनता का रुझान किसके पक्ष में गया है।
चुनाव का पैमाना और राजनीतिक महत्व
इन चुनावों में 246 नगर परिषदों और 42 नगर पंचायतों के लिए प्रतिनिधि चुने जा रहे हैं, जिनके नतीजे सिर्फ स्थानीय निकायों की तस्वीर ही नहीं बदलेंगे बल्कि आने वाले नगर निगम और विधानसभा चुनावों की सियासी बुनियाद भी तैयार करेंगे। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इन नतीजों से महायुति और महा विकास अघाड़ी, दोनों खेमों की ताकत और संगठनात्मक पकड़ का आकलन होगा।
ये चुनाव ऐसे समय हो रहे हैं जब राज्य की राजनीति में शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के दो-दो गुट सक्रिय हैं और भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर बने सत्तारूढ़ गठबंधन की आंतरिक तालमेल लगातार चर्चा में है। इसलिए, स्थानीय निकायों में सत्ता संतुलन भविष्य की गठबंधन राजनीति और टिकट बंटवारे को भी प्रभावित कर सकता है।
सहयोगियों के बीच सीधी टक्कर
कई सीटों पर भारतीय जनता पार्टी, एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना और अजीत पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी जैसे सत्ताधारी गठबंधन के सहयोगी दल एक-दूसरे के खिलाफ मैदान में उतरे हैं। स्थानीय समीकरणों और गुटबाज़ी के चलते कई जगहों पर दोस्त-दुश्मन की रेखाएं धुंधली दिखाई दे रही हैं, जिससे मतगणना के नतीजे गठबंधन के भीतर भविष्य की खींचतान का संकेत भी दे सकते हैं।
दूसरी ओर, विपक्षी खेमे में भी कांग्रेस, उद्धव ठाकरे की शिवसेना (UBT) और शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी (SP) ने कई इलाकों में आपसी तालमेल तो कुछ जगहों पर अलग-अलग मुकाबला चुना है। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि जहां-जहां सहयोगी पार्टियां एक-दूसरे के सामने हैं, वहां के परिणाम अगले चरण के गठबंधन समीकरणों पर गहरा असर डाल सकते हैं।
मतदाताओं का रुझान और आगे की दिशा
दो चरणों में हुए मतदान में लाखों मतदाताओं ने अपने स्थानीय मुद्दों—पानी, सड़क, कचरा प्रबंधन, करों और मूलभूत सुविधाओं—को ध्यान में रखते हुए उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला ईवीएम में कैद कर दिया है। राज्य निर्वाचन आयोग के अनुसार पहले चरण में करीब दो-तिहाई के आसपास और दूसरे चरण में भी उल्लेखनीय मतदान दर्ज किया गया, जिससे निकायों की निष्क्रियता और भ्रष्टाचार के खिलाफ जनता की नाराज़गी व उम्मीद दोनों झलकती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि किसी एक खेमे को शहरी निकायों में स्पष्ट बढ़त मिलती है तो ब्रिहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) सहित बड़े नगर निगमों के आगामी चुनावों में उसी के पक्ष में मनोवैज्ञानिक बढ़त बन सकती है, जबकि करीबी मुकाबले की स्थिति में दलों को सीट-समझौते और गठबंधन समीकरणों पर फिर से विचार करना पड़ सकता है।��



