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ओवरसीज मोबिलिटी बिल के मसौदे पर विवाद तेज: सांसद जॉन ब्रिटास ने खंड 12 पर जताई गंभीर चिंता, मनमानेपन और भेदभाव का खतरा बताया

नई दिल्ली, 12 दिसंबर: मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के राज्यसभा सांसद जॉन ब्रिटास ने केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित ओवरसीज मोबिलिटी (सुविधा और कल्याण) विधेयक, 2025 के मसौदे पर गंभीर आपत्तियाँ दर्ज कराते हुए कहा है कि बिल का खंड 12 “संवैधानिक मूल्यों से टकराता है” और “पक्षपातपूर्ण व मनमानी व्याख्याओं का बड़ा दरवाजा खोल सकता है।”

ब्रिटास ने शुक्रवार को विदेश मंत्री एस. जयशंकर को विस्तृत पत्र लिखकर इस खंड को हटाने की मांग की और इसे भारतीय नागरिकों—विशेषकर प्रवासी भारतीयों के अधिकारों—के लिए संभावित खतरा बताया।


क्या है ‘ओवरसीज मोबिलिटी (सुविधा और कल्याण) विधेयक, 2025’?

केंद्र सरकार ने हाल ही में इस विधेयक का मसौदा जारी किया है, जिसका उद्देश्य भारत के “प्रवासन प्रशासन ढांचे” को आधुनिक, सुव्यवस्थित और नागरिक-केंद्रित बनाना बताया गया है।
यह बिल—

  • भारतीय कामगारों,
  • छात्रों,
  • व्यवसायियों,
  • और विदेशों में रहने वाले भारतीय नागरिकों

के लिए सूचनाओं, सेवाओं और कल्याण योजनाओं को अधिक प्रभावी बनाने का दावा करता है।

सरकार का कहना है कि यह बिल मौजूदा पुरानी प्रणालियों को ठीक करेगा और वैश्विक रोजगार एवं शिक्षा के नए अवसरों में भारतीयों की भागीदारी को बढ़ाएगा।

लेकिन जहाँ यह बिल “सुधारवादी कदम” के रूप में पेश किया जा रहा है, वहीं विपक्षी दलों और प्रवासन विशेषज्ञों ने इसकी कुछ धाराओं पर सवाल उठाए हैं—सबसे अधिक विवादित है खंड 12, जिस पर ब्रिटास ने कड़ा विरोध जताया है।


खंड 12 पर क्यों उठी आपत्ति? ब्रिटास ने क्या कहा?

ब्रिटास के अनुसार, खंड 12 प्रवासी भारतीयों और विदेश जाने वाले भारतीय नागरिकों के लिए “अनावश्यक और असंगत नियंत्रण” की गुंजाइश पैदा करता है।

उन्होंने अपने पत्र में लिखा—

“यह खंड महत्वपूर्ण संवैधानिक मुद्दों से जुड़ा है और प्रशासनिक अधिकारियों को अत्यधिक विवेकाधिकार देता है, जो मनमाने फैसलों और पक्षपात का कारण बन सकता है।”

उनका तर्क है कि कोई भी ऐसा प्रावधान, जो किसी भारतीय नागरिक की विदेश यात्रा, विदेश में रहने या कार्य करने की स्वतंत्रता को अप्रत्यक्ष रूप से बाधित करे, वह संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता) और अनुच्छेद 21 (स्वतंत्रता व जीवन का अधिकार) के विरुद्ध है।

ब्रिटास ने यह भी जोर दिया कि—

  • सरकार के पास पहले से पासपोर्ट एक्ट,
  • इमीग्रेशन एक्ट,
  • और कई प्रशासनिक नियम मौजूद हैं

जो नागरिकों की विदेश यात्रा और सुरक्षा से जुड़े मामलों को नियंत्रित करते हैं।
ऐसे में नया प्रावधान “अतिरिक्त बोझ” और “कार्यपालिका के हाथ में अत्यधिक शक्ति” दे सकता है।


ब्रिटास ने विधेयक के पीछे के उद्देश्य की सराहना भी की

सांसद ने यह भी स्वीकार किया कि प्रवासन प्रणाली को आधुनिक बनाने का विचार समय की मांग है।
भारत के—

  • 3.2 करोड़ से अधिक प्रवासी भारतीय
  • और हर साल लाखों भारतीय छात्र और कामगार

विदेश जाते हैं। ऐसे में एक बेहतर और केंद्रीयकृत तंत्र होना जरूरी है।

लेकिन उनका कहना है कि उद्देश्य अच्छा हो सकता है, पर खंड 12 का स्वरूप अधिक “कठोर” और “अस्पष्ट” है, जिसके चलते इसका दुरुपयोग संभव है।


कानूनी विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया—क्या चिंताएँ वाजिब हैं?

कानूनी विशेषज्ञों और प्रवासन नीति विश्लेषकों का कहना है कि ब्रिटास की चिंताएँ “पूरी तरह निराधार नहीं हैं।”

विशेषज्ञों के अनुसार—

1. अत्यधिक विवेकाधिकार

यदि किसी अधिकारी को यह अधिकार मिल जाए कि वह “आवश्यक कारणों” के आधार पर किसी भारतीय नागरिक की अंतरराष्ट्रीय गतिशीलता पर रोक लगाए, तो यह अधिकार दुरुपयोग की संभावना पैदा करता है।

2. अस्पष्ट भाषा

मसौदे में उपयोग किए गए शब्द जैसे—

  • “राष्ट्रीय हित”
  • “सार्वजनिक सुरक्षा”
  • “वांछित जानकारी”

कानूनी रूप से अत्यधिक व्यापक हैं, जिनकी मनमानी व्याख्या संभव है।

3. संवैधानिक परीक्षण में चुनौती

अगर बिल इसी रूप में पारित होता है, तो इसके कई हिस्से सुप्रीम कोर्ट में चुनौती के योग्य हो सकते हैं।

एक वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा—

“प्रवासन सुधार का स्वागत है, लेकिन नागरिक स्वतंत्रताओं पर अनावश्यक नियंत्रण लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों से मेल नहीं खाता।”


विदेश मंत्रालय की संभावित प्रतिक्रिया

विदेश मंत्रालय की ओर से मसौदा अभी “सार्वजनिक परामर्श” चरण में है।
अर्थात्—

  • सुझाव स्वीकार किए जाएंगे
  • विरोध को सुना जाएगा
  • और अंतिम संस्करण में संशोधन संभव हैं

ऐसे में ब्रिटास का पत्र विधेयक के अंतिम स्वरूप को प्रभावित कर सकता है।

मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि सरकार “पारदर्शी और नागरिक-अनुकूल कानून” लाना चाहती है, इसलिए विवादित प्रावधानों पर विचार किया जाएगा।


राजनीतिक हलकों में चर्चा—क्या यह बड़ा मुद्दा बन सकता है?

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह विवाद आने वाले सत्रों में संसद में महत्वपूर्ण बहस का विषय बन सकता है।
क्योंकि—

  • यह प्रवासी भारतीयों से जुड़ा मामला है (जो विदेशों में भारत की मजबूत पहचान हैं)
  • यह संवैधानिक अधिकारों से टकराता है
  • और यह प्रशासनिक शक्तियों के दायरे को बढ़ाता है

इससे विपक्ष सरकार को घेरने की कोशिश कर सकता है।

ब्रिटास पहले भी नागरिक अधिकारों, डेटा सुरक्षा, और अंतरराष्ट्रीय श्रमिक अधिकारों से जुड़े मुद्दों पर मुखर रहे हैं।


निष्कर्ष: बिल का उद्देश्य सराहनीय, लेकिन विवादित प्रावधान को संशोधन की आवश्यकता

ओवरसीज मोबिलिटी विधेयक का लक्ष्य—

  • सुरक्षित प्रवासन,
  • बेहतर विदेश-सेवा सहायता,
  • और भारतीय कामगारों के कल्याण में सुधार—
    निस्संदेह प्रशंसनीय है।

लेकिन बिल का खंड 12 वास्तव में कई संवैधानिक और व्यावहारिक चिंताएँ खड़ी करता है।
सांसद जॉन ब्रिटास की यह आपत्ति अब प्रवासन नीति पर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का कारण बन गई है।

अंतिम मसौदा कैसा होगा, यह विदेश मंत्रालय के अगले कदम और संसद की बहस पर निर्भर करेगा।
लेकिन इतना स्पष्ट है कि इस विवाद ने भारत की प्रवासन प्रणाली को लेकर नई बहस की शुरुआत कर दी है।

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