
लातूर: भारतीय राजनीति के वरिष्ठतम नेताओं में शामिल और पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री शिवराज पाटिल का शनिवार तड़के निधन हो गया। 90 वर्षीय पाटिल ने सुबह करीब 6:30 बजे महाराष्ट्र के लातूर स्थित अपने निवास पर अंतिम सांस ली। वे पिछले कई महीनों से गंभीर रूप से अस्वस्थ थे और परिवार के सदस्यों की देखरेख में घर पर ही उनका उपचार चल रहा था।
शिवराज पाटिल का जाना कांग्रेस और भारतीय राजनीति दोनों के लिए एक युग का अंत माना जा रहा है। अपने शांत, सधे और नैतिक मूल्यों से भरे राजनीतिक व्यक्तित्व के कारण वे हमेशा एक अलग पहचान रखते थे।
मराठवाड़ा से दिल्ली तक—शिवराज पाटिल का साढ़े पाँच दशक लंबा राजनीतिक सफर
महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में जन्मे शिवराज पाटिल चाकूरकर राजनीति में शुरुआती दिनों से ही एक प्रभावशाली नाम रहे।
लातूर ग्रामीण क्षेत्र से उन्होंने अपनी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत की और 1973 से 1980 तक विधायक के रूप में स्थानीय लोगों का प्रतिनिधित्व किया।
उनकी लोकप्रियता और संगठन पर पकड़ को देखते हुए कांग्रेस ने 1980 में उन्हें लातूर लोकसभा सीट से टिकट दिया। जनता का उन्हें भरपूर समर्थन मिला और वे संसद पहुंचे। इसके बाद वे लंबे समय तक लोकसभा के सदस्य रहे और कई महत्वपूर्ण संसदीय जिम्मेदारियाँ संभालीं।
पाटिल अपनी सादगी और प्रशासनिक क्षमता के चलते पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के करीबी माने जाते थे।
एक वक्त ऐसा भी था जब उन्हें कांग्रेस के संभावित प्रधानमंत्री पद के लिए भी चर्चा में लाया गया था।
2004–2008: जब देश के गृह मंत्री थे शिवराज पाटिल
साल 2004 में यूपीए सरकार के गठन के बाद शिवराज पाटिल को केंद्रीय गृहमंत्री की जिम्मेदारी दी गई—जो भारतीय राजनीति में सबसे चुनौतीपूर्ण पदों में से एक माना जाता है।
गृह मंत्री के रूप में उनका कार्यकाल कई महत्वपूर्ण सुरक्षा चुनौतियों से गुज़रा, जिनमें आतंकवाद, आंतरिक सुरक्षा और राज्यों के बीच समन्वय जैसे प्रमुख मुद्दे शामिल थे।
हालांकि उनके राजनीतिक करियर का सबसे कठिन दौर वर्ष 2008 के मुंबई आतंकी हमलों के समय आया, जब आतंकवादियों ने देश की आर्थिक राजधानी में कोहराम मचा दिया।
इस दुखद घटना में उन्होंने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए गृह मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
उनका इस्तीफा उस समय राजनीति में एक दुर्लभ नैतिक कदम के रूप में देखा गया।
सैद्धांतिक राजनीति का चेहरा
शिवराज पाटिल को भारतीय राजनीति में उनकी शैली, संयम और सिद्धांतवादी दृष्टिकोण के लिए जाना जाता था।
वे अक्सर कहा करते थे—
“राजनीति में सार्वजनिक जीवन का मतलब है जनता के विश्वास को हर समय सबसे ऊपर रखना।”
उनका व्यक्तित्व तेज़तर्रार या कठोर आवाज़ वाला नहीं था, बल्कि शांत, मृदुल और संतुलित था।
संसद में उनकी भाषा हमेशा शालीन होती थी और बहस में वे तथ्यों और संविधान का गंभीरता से उल्लेख करते थे।
कई महत्वपूर्ण पदों पर दिया योगदान
अपनी लंबी सेवा के दौरान शिवराज पाटिल ने कई प्रतिष्ठित पदों पर काम किया—
- केंद्रीय गृहमंत्री, भारत सरकार
- लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए दावेदारी
- कई बार सांसद
- विधायक (लातूर ग्रामीण)
- कांग्रेस संगठन में कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ
उनकी प्रशासनिक दक्षता और संवैधानिक समझ के कारण उन्हें कई समितियों और राष्ट्रीय दायित्वों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का अवसर मिला।
लातूर और मराठवाड़ा में गहरा प्रभाव
शिवराज पाटिल सिर्फ एक राष्ट्रीय नेता ही नहीं, बल्कि मराठवाड़ा क्षेत्र की राजनीति के स्तंभ माने जाते थे।
लातूर में उनका योगदान क्षेत्र के विकास, सिंचाई परियोजनाओं, शिक्षा और सामाजिक सरोकारों में भी देखा जा सकता है।
स्थानीय लोग उन्हें सिर्फ एक राजनेता नहीं, बल्कि मार्गदर्शक और संरक्षक के रूप में देखते थे।
बीमारी से लड़ते हुए अंतिम दिनों में परिवार के साथ
लंबी बीमारी के कारण वे राजनीति से लगभग दूर हो गए थे और लातूर स्थित अपने घर में परिवार के बीच रह रहे थे।
उनके स्वास्थ्य में लगातार गिरावट की खबरें कई महीनों से थीं, लेकिन परिवार के अनुसार उनकी देखभाल पूरी तरह घर पर ही की जा रही थी, जिसकी वे स्वयं इच्छा रखते थे।
निधन से राजनीतिक जगत में शोक की लहर
शिवराज पाटिल के निधन की खबर फैलते ही दिल्ली और महाराष्ट्र के राजनीतिक हलकों में शोक की लहर दौड़ गई।
कांग्रेस नेतृत्व, सहयोगी दलों और कई वरिष्ठ नेताओं ने इसे “एक अनुभवी, संतुलित और संवैधानिक समझ वाले नेता को खो देना” बताया।
उनका जाना भारतीय संसद के उस दौर का अंत है जब बहसें अधिक सभ्य, मुद्दों पर केंद्रित और संविधान की मर्यादा में होती थीं।
निष्कर्ष
शिवराज पाटिल का 90 साल की उम्र में निधन भारतीय राजनीति के एक लंबे अध्याय का समापन है।
वे उन नेताओं में थे जो सादगी, सिद्धांत और नैतिकता को राजनीति की अनिवार्यता मानते थे।
मुंबई हमलों के समय नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए दिया गया उनका इस्तीफा आज भी भारतीय राजनीति में एक मिसाल के रूप में याद किया जाता है।
उनकी राजनीतिक विरासत—मराठवाड़ा से लेकर दिल्ली तक—आगामी पीढ़ियों के लिए प्रेरणा है।



