
नई दिल्ली: संसद का शीतकालीन सत्र अपने 11वें दिन पूरी तरह सियासी टकराव, नियमों की बहस और राजनीतिक संदेशों से घिरा रहा। लोकसभा में ई-सिगरेट को लेकर उठा विवाद जहां संसदीय गरिमा और अनुशासन के प्रश्नों को केंद्र में ले आया, वहीं राज्यसभा में ‘वंदे मातरम’ पर हुई चर्चा ने ऐतिहासिक संदर्भों और समकालीन राजनीति, दोनों को नए सिरे से छेड़ दिया। इस सबके बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आज शाम भाजपा सांसदों के लिए आयोजित डिनर ने सत्र के बीच राजनीतिक तापमान को और भी ऊंचा कर दिया है।
लोकसभा में ई-सिगरेट का मुद्दा: सदन के भीतर धुआं और आरोपों की गर्मी
शीतकालीन सत्र का सबसे अप्रत्याशित क्षण तब सामने आया जब लोकसभा में ई-सिगरेट को लेकर तीखी बहस छिड़ गई। भाजपा सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने सदन के भीतर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि कुछ सांसद नियमों को ताक पर रखकर ई-सिगरेट का उपयोग कर रहे हैं, जबकि देश में ई-सिगरेट बिक्री और उपयोग दोनों पर कानूनी रूप से प्रतिबंध लागू है।
ठाकुर ने सदन में कहा—
“देशभर में ई-सिगरेट बैन है। क्या सदन में आपने अलाउ कर दी? टीएमसी के सांसद कई दिनों से बैठकर पी रहे हैं… अभी जांच करवाएं।”
उनके इस बयान ने सदन का माहौल अचानक चटक कर दिया। विपक्षी बेंचों से फौरन शोरगुल उठा, जवाबी टिप्पणियां आईं और कुछ सांसदों ने इसे राजनीतिक विचलन की कोशिश बताया।
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने शांत और संयमित लहजे में कहा—
“हमें संसदीय परंपराओं और नियमों का पालन करना चाहिए। यदि मेरे पास कोई शिकायत आती है या ऐसा कोई विषय संज्ञान में लाया जाता है, तो निश्चित ही कार्रवाई की जाएगी।”
अध्यक्ष के इस वक्तव्य ने मामला शांत तो नहीं किया, लेकिन यह साफ कर दिया कि संसद परिसर में किसी भी तरह के प्रतिबंधित उत्पाद के उपयोग पर कार्रवाई से छूट नहीं है।
संसदीय स्रोतों का कहना है कि अब इस मुद्दे पर औपचारिक शिकायत दर्ज होने की संभावना है, जिसके बाद जांच की प्रक्रिया शुरू हो सकती है।
बड़ा सवाल: क्या संसद परिसर में ई-सिगरेट का इस्तेमाल हुआ या यह राजनीतिक आरोप?
बीते कुछ वर्षों में ई-सिगरेट को लेकर स्वास्थ्य मंत्रालय की कड़े दिशानिर्देशों के बाद देशभर में इसका उपयोग, बिक्री और वितरण पूरी तरह प्रतिबंधित है। ऐसे में संसद जैसे सर्वोच्च संस्थान में इस तरह के आरोप का सार्वजनिक रूप से उठना स्वाभाविक रूप से गंभीर है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस विवाद के दो आयाम हैं:
- संसदीय अनुशासन और नैतिकता: सदन के मर्यादित व्यवहार, नियमों और आदर्शों पर सवाल।
- सियासी रणनीति: विपक्ष और सत्ता पक्ष दोनों इस विवाद का इस्तेमाल अपने-अपने राजनीतिक आख्यान को मजबूत करने के लिए कर सकते हैं।
यह मुद्दा आने वाले दिनों में संसदीय समिति या एथिक्स पैनल तक जा सकता है।
राज्यसभा में ‘वंदे मातरम’ पर वैचारिक टकराव
राज्यसभा में आज का दिन ऐतिहासिक और वैचारिक बहस से भरा हुआ रहा। ‘वंदे मातरम’ पर चर्चा के दौरान भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और नेता सदन जेपी नड्डा ने कहा कि वंदे मातरम को वह सम्मान नहीं मिल पाया जो मिलना चाहिए था, और इसके लिए “समय के शासकों” को जिम्मेदार ठहराया।
नड्डा ने कहा—
“वंदे मातरम को जो स्थान मिलना चाहिए था, वह उसे लंबे समय तक नहीं मिला। इसके लिए उस समय के शासक जिम्मेदार थे।”
उनके इस बयान पर नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे तुरंत खड़े हो गए और सवाल किया—
“क्या 1937 में जवाहरलाल नेहरू देश के प्रधानमंत्री थे?”
सदन में हलचल तेज हो गई। नड्डा ने जवाब दिया—
“वे प्रधानमंत्री नहीं थे, लेकिन इंडियन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष जरूर थे।”
यह बहस महज इतिहास की व्याख्या नहीं थी — यह वर्तमान राजनीतिक विमर्श में प्रतीकों की भूमिका और उनके राजनीतिक अर्थों पर भी केंद्रित थी।
सदन में कई सांसदों ने राय दी कि वंदे मातरम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की आत्मा रहा है और इसे राजनीतिक चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए।
सियासत के केंद्र में प्रतीक: क्यों ‘वंदे मातरम’ बार-बार बहस में लौटता है?
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार वंदे मातरम पर बहस, सिर्फ इतिहास का प्रश्न नहीं है। यह भारत की पहचान, उसके आधुनिक राजनीतिक ढांचे और सांस्कृतिक अस्मिता के बीच संतुलन का विषय है।
बीजेपी इसे राष्ट्रीय भावनाओं से जुड़े प्रतीक के रूप में स्थापित करना चाहती है, जबकि कांग्रेस इस चर्चा को इतिहास के तथ्यों और संविधान प्रदत्त संतुलन की दिशा में ले जाती है।
आज की बहस ने इन वैचारिक मतभेदों को एक बार फिर उजागर कर दिया।
PM मोदी का संसद के बीच में डिनर: संदेश सिर्फ राजनीतिक नहीं, रणनीतिक भी
इन सब घटनाक्रमों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज शाम 6:30 बजे भाजपा सांसदों के लिए अपने आवास पर डिनर का आयोजन किया है।
यह बैठक बिहार विधानसभा चुनाव में शानदार जीत के बाद पहली बड़ी राजनीतिक सभा है।
सूत्रों के अनुसार —
- आने वाले राज्यों के विधानसभा चुनाव,
- संसद में चल रही बहसें और टकराव,
- संगठनात्मक बदलाव,
- तथा 2025-26 के दीर्घकालिक राजनीतिक एजेंडा
इस डिनर की चर्चा का मुख्य विषय होंगे।
भाजपा सूत्रों का मानना है कि यह बैठक पार्टी के अंदर “मैसेजिंग यूनिटी” को मजबूत करने की भी कोशिश है, खासकर ऐसे समय में जब विपक्ष संसद में लगातार सरकार को घेरने की रणनीति अपना रहा है।
क्या यह सत्र सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है?
शीतकालीन सत्र की शुरुआत अपेक्षाकृत शांत थी, लेकिन अब:
- ई-सिगरेट विवाद,
- वंदे मातरम पर वैचारिक बहस,
- विपक्ष का आक्रामक रुख,
- और आगामी चुनावों की पृष्ठभूमि
ने वातावरण को अधिक तनावपूर्ण बना दिया है।
संसदीय कामकाज पर इसका प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। आने वाले दिनों में सरकार को व्यवस्थागत चुनौतियों और विपक्षी दबाव — दोनों का सामना करना पड़ सकता है।
निष्कर्ष: संसद का सत्र सिर्फ कानून बनाने का मंच नहीं, बल्कि देश की राजनीतिक धड़कन भी
आज का दिन यह बताता है कि भारतीय संसद केवल विधायी कार्यवाही तक सीमित नहीं है। यह वह जगह है जहां:
- राजनीतिक नैरेटिव गढ़े जाते हैं,
- ऐतिहासिक प्रश्नों की पुनर्व्याख्या होती है,
- और राष्ट्रीय मुद्दों पर जनभावनाओं का प्रतिनिधित्व होता है।
लोकसभा का ई-सिगरेट विवाद और राज्यसभा की वंदे मातरम बहस — दोनों ने इस बात को फिर पुष्ट किया कि संसद देश की राजनीतिक संवेदना का सबसे सशक्त दर्पण है।



