
नई दिल्ली: केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के एक बयान ने राष्ट्रीय राजनीति में नई बहस छेड़ दी है। वडोदरा में सरदार वल्लभभाई पटेल से जुड़े एक कार्यक्रम में राजनाथ सिंह ने दावा किया कि स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, अयोध्या स्थित बाबरी मस्जिद की मरम्मत के लिए सरकारी धन का उपयोग करना चाहते थे, लेकिन तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल ने इसका कड़ा विरोध किया था। राजनाथ के इस बयान से कांग्रेस भड़क उठी और दोनों दल एक बार फिर इतिहास के पन्नों को लेकर आमने-सामने आ गए।
राजनाथ सिंह का दावा—“नेहरू चाहते थे सरकारी धन, पटेल ने कहा—धर्म के काम में सरकार का पैसा क्यों?”
राजनाथ सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि प्रधानमंत्री नेहरू ने बाबरी मस्जिद की मरम्मत के लिए सरकारी खजाने से धन जारी करने की इच्छा जाहिर की थी। उन्होंने कहा कि जब यह प्रस्ताव सरदार पटेल के पास पहुंचा, तो पटेल ने स्पष्ट कहा कि सरकार किसी एक धर्म से जुड़े धार्मिक स्थल की मरम्मत पर पैसा खर्च नहीं कर सकती।
राजनाथ ने कहा,
“जब पंडित नेहरू ने सोमनाथ मंदिर का उदाहरण दिया, तब पटेल ने समझाया कि सोमनाथ मंदिर आम जनता से लिए गए चंदे से पुनर्निर्मित हो रहा है, उसमें एक रुपये का भी सरकारी पैसा नहीं लगा है।”
अपने भाषण में रक्षा मंत्री ने आगे राम मंदिर का उदाहरण देते हुए कहा कि अयोध्या में बने भव्य श्रीराम मंदिर का निर्माण भी श्रद्धालुओं के योगदान से हुआ है और इसे “सच्चा सेक्युलरिज्म” बताया।
राजनाथ सिंह ने यह भी दावा किया कि सरदार पटेल की बेटी मणिबेन पटेल की डायरी में इस घटना का उल्लेख मिलता है, जिसमें इस कथित मतभेद का जिक्र है।
कांग्रेस का पलटवार—“राजनाथ सिंह इतिहास को तोड़-मरोड़ रहे”
राजनाथ सिंह के इस बयान ने कांग्रेस पार्टी में तीखी प्रतिक्रिया पैदा कर दी। कांग्रेस नेताओं ने इसे “झूठ का पुलिंदा”, “फर्जी इतिहास” और “राजनीतिक एजेंडे के लिए इतिहास का दुरुपयोग” बताया।
मणिकम टैगोर का तंज
कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर ने हमला बोलते हुए कहा—
“हमें अंदाज़ा नहीं था कि राजनाथ सिंह भी व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी का इतिहास पढ़ते हैं।”
टैगोर के अनुसार, सरदार पटेल और पंडित नेहरू के बीच किसी तरह का ऐसा संवाद या मतभेद कभी दर्ज नहीं है, और यह पूरी कहानी बीजेपी द्वारा राजनीतिक लाभ के लिए गढ़ी गई है।
कांग्रेस प्रवक्ताओं ने कहा कि राजनाथ सिंह एक वरिष्ठ और जिम्मेदार मंत्री हैं, इसलिए उनसे ऐसी “भ्रामक और ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़ते-मरोड़ते” बयान की उम्मीद नहीं थी।
बीजेपी का जवाब—“कांग्रेस इतिहास पढ़ ले, पटेल-नेहरू के मतभेद कोई राज़ नहीं”
कांग्रेस के आरोपों का जवाब देते हुए बीजेपी नेताओं ने कहा कि कांग्रेस पार्टी इतिहास को लेकर हमेशा असहज रही है, क्योंकि वास्तविक इतिहास सत्ता में बैठे नेताओं की गलतियों को उजागर करता है।
बीजेपी प्रवक्ता और राज्यसभा सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने कहा—
“कांग्रेसी नेताओं को इतिहास पढ़ना चाहिए, कम से कम गांधी-नेहरू परिवार की हिस्ट्री को ही ठीक से पढ़ लें।”
त्रिवेदी ने कहा कि सरदार पटेल की अनेक जीवनी और दस्तावेज यह इशारा करते हैं कि नेहरू और पटेल के बीच कई मुद्दों पर विचार मतभेद थे—राजनीतिक भी और प्रशासनिक भी। इसलिए राजनाथ सिंह का बयान तथ्यात्मक आधार रखता है।
नेहरू–पटेल विवाद: इतिहास में क्या कहा गया है?
स्वतंत्र भारत के शुरुआती वर्षों में नेहरू और पटेल के बीच विचारों के मतभेद की बात इतिहासकारों ने भी स्वीकार की है, विशेषकर—
- हैदराबाद और कश्मीर नीति,
- कांग्रेस संगठन का ढांचा,
- राज्यों के विलय और प्रशासन,
- और हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रश्न पर।
हालांकि बाबरी मस्जिद और सोमनाथ मंदिर को लेकर इस विशिष्ट संवाद का सत्यापन इतिहासकारों और दस्तावेजों में सुस्पष्ट रूप से नहीं मिलता।
कांग्रेस इसी बिंदु पर हमला बोल रही है, जबकि बीजेपी कहती है कि मणिबेन पटेल के नोट्स और प्रारंभिक सरकारी फाइलों में ऐसे संकेत मौजूद हैं जिन्हें अभी तक मुख्यधारा इतिहास में महत्व नहीं दिया गया।
बयान के राजनीतिक मायने—2024 के बाद नई ध्रुवीकरण रेखा?
राजनाथ सिंह का यह बयान ऐसे समय आया है जब—
- विपक्ष मणिपुर, आर्थिक मुद्दों और संस्थानों की स्वायत्तता पर सरकार को घेर रहा है।
- देश में राम मंदिर से जुड़े राजनीतिक नैरेटिव का प्रभाव अभी भी प्रबल है।
- कांग्रेस लगातार केंद्र पर सांप्रदायिक राजनीति का आरोप लगा रही है।
राजनाथ सिंह का नेहरू-पटेल विवाद उठाना बीजेपी के लिए राजनीतिक रूप से उपयोगी हो सकता है, क्योंकि—
- यह कांग्रेस के सबसे बड़े आइकन नेहरू पर सवाल खड़ा करता है।
- सरदार पटेल को बीजेपी पहले से ही अपने वैचारिक प्रतीक के रूप में स्थापित करने का प्रयास करती रही है।
- Babri–Ram Mandir–Patel–Nehru का संयोजन बीजेपी के कोर समर्थक समूह को भावनात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है।
कांग्रेस की रणनीति—“नेहरू की विरासत की रक्षा”
कांग्रेस चुनावी वर्षों में अक्सर नेहरू की छवि पर किसी भी हमले को तुरंत काउंटर करती है।
यह रणनीति—
- अपने कार्यकर्ता-आधार को एकजुट रखने,
- नेहरू की बौद्धिक, वैचारिक विरासत को जीवित रखने,
- और बीजेपी नैरेटिव को चुनौती देने के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है।
कांग्रेस इन दिनों नेहरू, संविधान और लोकतंत्र की रक्षा जैसी थीमों पर जनता को संबोधित कर रही है। ऐसे में राजनाथ का यह बयान पार्टी के लिए सीधी चुनौती के रूप में देखा जा रहा है।
क्या यह विवाद लंबा चलेगा?
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यह विवाद जल्दी थमने वाला नहीं है, क्योंकि—
- इसमें धर्म, इतिहास और राजनीति—तीनों शामिल हैं,
- बीजेपी इसे वैचारिक बहस की तरह प्रस्तुत करेगी,
- कांग्रेस इसे “झूठ पर आधारित एजेंडा” बताएगी।
इसके अलावा, चुनावी मौसम में ऐसे मुद्दे राष्ट्रीय विमर्श को काफी प्रभावित कर सकते हैं।
निष्कर्ष
राजनाथ सिंह के बयान ने एक बार फिर स्वतंत्र भारत के शुरुआती वर्षों की राजनीति को केंद्र में ला दिया है। जहां बीजेपी इसे “ऐतिहासिक तथ्य” बताकर नेहरू–पटेल मतभेद को सामने ला रही है, वहीं कांग्रेस इसे “निराधार, काल्पनिक और राजनीतिक रूप से प्रेरित” करार दे रही है।
इस बयान ने इतिहास के विवादों को वर्तमान तनावों से जोड़ते हुए राजनीतिक बहस को और तेज कर दिया है। आने वाले दिनों में यह मुद्दा संसद से लेकर सड़क तक चर्चा का केंद्र बना रह सकता है।



