
जोहानिसबर्ग/नई दिल्ली, 21 नवंबर। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शुक्रवार को दक्षिण अफ्रीका पहुंचे, जहां वे दक्षिण अफ्रीका की अध्यक्षता में आयोजित जी-20 नेताओं के शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे। यह उच्च-स्तरीय वैश्विक बैठक ऐसे समय में हो रही है जब दुनिया आर्थिक चुनौतियों, जलवायु संकट, वैश्विक दक्षिण की विकास आवश्यकताओं और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा तनावों से जूझ रही है। इसलिए इस मंच पर भारत की भूमिका और मोदी का एजेंडा विशेष महत्व रखता है।
मोदी के जोहानिसबर्ग पहुंचने पर दक्षिण अफ्रीकी अधिकारियों ने उनका भव्य स्वागत किया। भारतीय समुदाय के प्रतिनिधियों ने भी एयरपोर्ट के बाहर पारंपरिक अंदाज में अभिवादन किया और भारतीय तिरंगे के साथ प्रधानमंत्री का स्वागत किया। प्रधानमंत्री के साथ विदेश मंत्रालय, रणनीतिक मामलों और बहुपक्षीय सहयोग से जुड़े शीर्ष अधिकारी भी मौजूद रहे।
भारत–दक्षिण अफ्रीका संबंधों को नई ऊर्जा देने की उम्मीद
दक्षिण अफ्रीका और भारत लंबे समय से वैश्विक दक्षिण के दो प्रमुख स्तंभ रहे हैं। दोनों देश—
- ब्रिक्स (BRICS)
- आइब्सा (IBSA)
- संयुक्त राष्ट्र सुधार
- विकासशील देशों की आवाज बुलंद करने जैसे महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय प्लेटफॉर्म पर साथ मिलकर काम करते रहे हैं।
इस बार दक्षिण अफ्रीका जी-20 की अध्यक्षता कर रहा है और भारत को इस मंच पर निरंतर सक्रिय सहयोगी माना जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी की इस यात्रा से भारत–दक्षिण अफ्रीका संबंधों को रणनीतिक और आर्थिक स्तर पर नई गति मिलने की उम्मीद है।
दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा ने भी पीएम मोदी के आगमन पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि भारत वैश्विक दक्षिण के हितों को आगे बढ़ाने में “सबसे मजबूत और विश्वसनीय सहयोगी” है।
भारत: वैश्विक दक्षिण की आवाज
पिछले वर्ष भारत की अध्यक्षता में आयोजित जी-20 शिखर सम्मेलन को दुनिया ने एक सफल और समावेशी आयोजन माना था। उस सम्मेलन की प्रमुख उपलब्धि—
अफ्रीकन यूनियन (AU) को G-20 की स्थायी सदस्यता दिलाना भी भारत की कूटनीति से संभव हुई थी।
इस वर्ष शिखर सम्मेलन में भारत का मुख्य फोकस भी वैश्विक दक्षिण से जुड़े मुद्दों पर होगा, जिनमें शामिल हैं—
- विकासशील देशों के लिए वित्तीय सहायता
- टेक्नोलॉजी, डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर और डिजिटल पेमेंट्स
- जलवायु वित्त
- वैश्विक व्यापार में पारदर्शिता
विदेश मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, प्रधानमंत्री मोदी “इन्क्लूसिव ग्लोबल ग्रोथ मॉडल” पर अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत करेंगे और 2030 तक विकासशील देशों के लिए सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को तेज़ी से प्राप्त करने की आवश्यकता पर जोर देंगे।
जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल फाइनेंसिंग भारत का प्रमुख एजेंडा
दुनिया वर्तमान में जलवायु परिवर्तन के गंभीर प्रभावों से जूझ रही है—चाहे वह सूखा हो, ग्लेशियरों का पिघलना हो या समुद्र स्तर में तेजी से वृद्धि। ऐसे में भारत के लिए यह विषय हमेशा से प्राथमिक रहा है। मोदी शिखर सम्मेलन में—
- क्लाइमेट फाइनेंसिंग
- ग्रीन टेक्नोलॉजी के लिए फंड
- ऊर्जा परिवर्तन (Energy Transition)
- नेट-जीरो लक्ष्यों के यथार्थ मूल्यांकन
जैसे मुद्दों पर वैश्विक समुदाय को अधिक ज़िम्मेदारी लेने का संदेश देंगे। भारत का मानना है कि जलवायु परिवर्तन की ज़िम्मेदारी सिर्फ विकासशील देशों पर नहीं थोपी जा सकती, बल्कि विकसित राष्ट्रों को अधिक निवेश और तकनीकी सहायता सुनिश्चित करनी चाहिए।
ग्लोबल इकोनॉमी और भू-राजनीतिक तनावों पर भी चर्चा
जी-20 की बैठक ऐसे समय में हो रही है जब—
- वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी के संकेतों से जूझ रही है
- रूस–यूक्रेन संघर्ष का असर ऊर्जा कीमतों पर जारी है
- पश्चिम एशिया की अशांति से तेल बाजार अस्थिर है
- व्यापारिक भू-राजनीति में अमेरिका–चीन प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है
ये सभी मुद्दे वैश्विक व्यापार, निवेश, सप्लाई चेन और उभरती अर्थव्यवस्थाओं पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालते हैं। भारत इन मुद्दों पर संतुलित और व्यवहारिक समाधान की वकालत करेगा।
भारत पहले भी “मानव-केंद्रित वैश्विक विकास” मॉडल की पैरवी कर चुका है। संभावना है कि इस बार भी प्रधानमंत्री मोदी इसका पुनः उल्लेख करें।
द्विपक्षीय वार्ताओं की भी संभावनाएँ
विदेश मंत्रालय के अनुसार, पीएम मोदी की कई महत्वपूर्ण द्विपक्षीय मुलाकातें भी प्रस्तावित हैं। इनमें—
- दक्षिण अफ्रीका
- सऊदी अरब
- ब्राजील
- यूरोपीय संघ के प्रतिनिधि
- अफ्रीकी महाद्वीप के कई राष्ट्र प्रमुख
शामिल हो सकते हैं। भारत के लिए ऊर्जा सुरक्षा, व्यापार, रक्षा सहयोग और डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर पर साझेदारी बढ़ाना प्राथमिकता होगी।
भारत की विदेश नीति का “बहुपक्षीय मॉडल” फिर केंद्र में
जी-20 जैसे मंच भारत की विदेश नीति में बहुपक्षवाद (Multilateralism) की मजबूती को दर्शाते हैं। पिछले एक दशक में भारत—
- क्वाड
- ब्रिक्स
- SCO
- G20
- IPEF
जैसे वैश्विक मंचों पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाकर अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में अपने प्रभाव को बढ़ा चुका है।
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत अब वैश्विक एजेंडा सेट करने वाले देशों की श्रेणी में शामिल हो चुका है, न कि सिर्फ उन देशों की जो अंतरराष्ट्रीय फैसलों का पालन करते हैं।मोदी की यह यात्रा इस वैश्विक कूटनीतिक भूमिका को और मजबूत करेगी।
भारतीय समुदाय में उत्साह
दक्षिण अफ्रीका में बसे भारतीय मूल के नागरिकों में प्रधानमंत्री की यात्रा को लेकर खासा उत्साह देखने को मिला। कई जगहों पर भारतीय समुदाय ने स्वागत कार्यक्रमों की तैयारी की है। दक्षिण अफ्रीका में भारतीय मूल के लोगों की बड़ी आबादी है और वे देश की अर्थव्यवस्था, शिक्षा और व्यवसाय क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी का दक्षिण अफ्रीका दौरा सिर्फ एक नियमित अंतरराष्ट्रीय बैठक नहीं, बल्कि भारत की वैश्विक भूमिका, रणनीतिक हितों और अंतरराष्ट्रीय सहयोग की दिशा तय करने वाला अवसर है।
जलवायु परिवर्तन, वैश्विक अर्थव्यवस्था, डिजिटल सहयोग, वैश्विक दक्षिण की आवाज और बहुपक्षीय सहयोग—ये सभी अहम मुद्दे इस दौरे को महत्वपूर्ण बनाते हैं।
ये शिखर सम्मेलन भारत को दुनिया के सामने अपने दृष्टिकोण और नेतृत्व क्षमता को प्रदर्शित करने का नया अवसर देगा—और इस बात पर भी मुहर लगाएगा कि भारत 21वीं सदी की वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख निर्धारक देश बन चुका है।



