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बिहार में नीतीश कुमार ने लगातार 10वीं बार संभाली कमान, नई कैबिनेट में दिखा जातीय संतुलन का व्यापक गणित

पटना/नई दिल्ली: बिहार में विधानसभा चुनाव में एनडीए की जबरदस्त जीत के बाद नीतीश कुमार ने बुधवार को ऐतिहासिक रूप से लगातार 10वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर एक रिकॉर्ड कायम किया। शपथ ग्रहण समारोह में कुल 26 मंत्रियों को जगह दी गई, जिनमें जेडीयू, बीजेपी, एलजेपी (राम विलास), हम सहित गठबंधन के सभी दल शामिल रहे।

नई कैबिनेट की संरचना साफ इशारा करती है कि सत्ता में वापसी के साथ ही एनडीए ने जातीय प्रतिनिधित्व को सबसे बड़ा राजनीतिक आधार बनाया है।


सवर्ण, पिछड़ा वर्ग और दलित—तिहरे संतुलन पर आधारित कैबिनेट

नई सरकार ने जिस तरह से अलग-अलग जातीय समूहों की हिस्सेदारी तय की है, वह एनडीए की सामाजिक इंजीनियरिंग को स्पष्ट दर्शाता है। कैबिनेट में:

  • सवर्ण: 8
  • कुशवाहा: 3
  • कुर्मी: 2
  • यादव: 2
  • वैश्य: 2
  • मल्लाह: 2
  • मुस्लिम: 1
  • दलित: 5
  • अति पिछड़ा: 1

इन आंकड़ों से दिखता है कि एनडीए की रणनीति सवर्ण, ओबीसी और दलित—तीनों प्रमुख समूहों को साथ रखने की है। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि अति पिछड़े वर्ग (EBC) के लिए सिर्फ एक पद होना कैबिनेट की प्रमुख कमजोरी है, क्योंकि यह वर्ग बिहार की राजनीति का तेजी से उभरता हुआ कारक है।


5 दलित मंत्रियों के जरिए बड़ा राजनीतिक संदेश

नई कैबिनेट में 5 दलित चेहरों को शामिल करना एनडीए की एक बड़ी राजनीतिक चाल मानी जा रही है। माना जा रहा है कि बीजेपी और जेडीयू मिलकर पासवान समाज सहित दलित समुदाय में अपनी पकड़ मजबूत रखना चाहते हैं।
राम विलास पासवान की राजनीतिक विरासत और चिराग पासवान की युवा नेतृत्व क्षमता को देखते हुए, दलित समाज को सशक्त प्रतिनिधित्व देना आवश्यक था, जिसे गठबंधन ने सटीक तरीके से लागू किया।


सवर्णों की मजबूत उपस्थिति—राजपूत और भूमिहार बने आधार

सवर्ण समुदाय बिहार के राजनीतिक समीकरण में हमेशा अहम रहा है। नई कैबिनेट में:

राजपूत—4 मंत्री

  • संजय टाइगर
  • श्रेयसी सिंह
  • संजय सिंह
  • लेसी सिंह

भूमिहार—2 मंत्री

  • विजय सिन्हा
  • विजय चौधरी

ब्राह्मण—1 मंत्री

  • मंगल पांडे

कायस्थ—1 मंत्री

  • नितिन नवीन

सवर्ण समुदाय की इस उपस्थिति का उद्देश्य पारंपरिक कोर वोट बैंक को मजबूत करना है। विशेष रूप से पटना, आरा, जमुई, लखीसराय, सिवान और समस्तीपुर जैसे इलाकों में जहां सवर्ण मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं।


कुशवाहा और कुर्मी—एनडीए का भरोसेमंद पिछड़ा वर्ग समीकरण

कुशवाहा समुदाय से तीन मंत्री

एनडीए ने कुशवाहा वोट बैंक को साधने के लिए RLM के दीपक प्रकाश और बीजेपी के सुरेंद्र मेहता जैसे नामों को कैबिनेट में जगह दी। सम्राट चौधरी का जातीय आधार भी इसी वर्ग से आने के कारण यह समुदाय एनडीए का एक प्रमुख राजनीतिक स्तंभ बन चुका है।

कुर्मी—दो मंत्री

नीतीश कुमार स्वयं कुर्मी समुदाय से आते हैं। मुख्यमंत्री ने कुर्मी वोट बैंक को मजबूती देने के लिए अपने करीबी और अनुभवी नेता श्रवण कुमार को मंत्रिमंडल में स्थान दिया। नालंदा क्षेत्र से कुर्मी समाज की दोहरी हिस्सेदारी जेडीयू के पारंपरिक सामाजिक आधार को और मजबूत करती है।


मल्लाह, यादव, वैश्य—क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व का संदेश

  • यादव समुदाय से दो मंत्री शामिल किए गए हैं, जो यह दर्शाता है कि एनडीए इस प्रभावशाली ओबीसी वर्ग को भी साथ रखने में कोई चूक नहीं करना चाहता।
  • वैश्य और मल्लाह समुदाय की उपस्थिति से व्यापारिक और नदी क्षेत्रीय इलाकों को भी प्रतिनिधित्व मिला है।

अति पिछड़ा वर्ग—कैबिनेट की सबसे कमजोर कड़ी

हालांकि कैबिनेट में सामाजिक संतुलन को व्यापक रूप से साधा गया है, लेकिन EBC समुदाय को सिर्फ एक प्रतिनिधित्व मिलना राजनीतिक विश्लेषकों की नजर में एक बड़ी कमी है। बिहार में करीब 110 EBC जातियां हैं, और पिछले एक दशक में यह वर्ग एक बड़ा राजनीतिक निर्णायक बनकर उभरा है। ऐसे में सीटों की कम हिस्सेदारी को विपक्ष मुद्दा बना सकता है।

नीतीश कुमार की यह नई कैबिनेट जातीय गणित की दृष्टि से बेहद सोच-समझकर बनाई गई है। सवर्णों की मजबूत मौजूदगी, पिछड़े वर्ग में कुशवाहा और कुर्मी का संतुलन और दलित समाज को बड़ा हिस्सा देने से एक व्यापक सामाजिक गठजोड़ तैयार किया गया है।
हालांकि अति पिछड़ा वर्ग की कम भागीदारी भविष्य में राजनीतिक बहस का विषय बन सकती है।
फिलहाल, एनडीए ने स्पष्ट कर दिया है कि बिहार में वह एक बार फिर अपने “सामाजिक गठबंधन मॉडल” के साथ ही शासन और राजनीति की दिशा तय करेगा।

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