
नई दिल्ली, 13 नवम्बर: अंतरराष्ट्रीय व्यापार के बदलते परिदृश्य और अमेरिका समेत कई देशों द्वारा बढ़ाए गए रेसिप्रोकल टैरिफ़ के बीच, भारतीय निर्यातकों के लिए राहत भरी खबर आई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में 25,060 करोड़ रुपये के एक्सपोर्ट प्रमोशन मिशन (Export Promotion Mission – EPM) को मंज़ूरी दे दी गई।
यह नया मिशन भारत के निर्यात इकोसिस्टम को मज़बूत करने और उन सेक्टरों को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से लाया गया है, जो हाल के महीनों में वैश्विक व्यापार तनाव और टैरिफ वृद्धि से प्रभावित हुए हैं — जिनमें कपड़ा, चमड़ा, रत्न एवं आभूषण, इंजीनियरिंग उत्पाद और समुद्री निर्यातक प्रमुख हैं।
एकीकृत, डिजिटल और परिणाम-आधारित ढांचा
कैबिनेट द्वारा जारी आधिकारिक विज्ञप्ति के अनुसार,
“यह मिशन वित्त वर्ष 2025-26 से 2030-31 तक के लिए 25,060 करोड़ रुपये के कुल परिव्यय (outlay) के साथ लागू होगा। इसका उद्देश्य निर्यात संवर्धन के लिए एक व्यापक, लचीला और डिजिटल रूप से संचालित संरचना प्रदान करना है।”
कैबिनेट नोट में आगे कहा गया है कि EPM अनेक खंडित योजनाओं को जोड़कर एकीकृत और परिणाम-आधारित तंत्र तैयार करेगा, जिससे वैश्विक व्यापार की नई चुनौतियों का समय पर प्रत्युत्तर दिया जा सके।
इसके साथ ही, यह मिशन निर्यात क्षेत्र में पारदर्शिता, जवाबदेही और तकनीकी एकीकरण को बढ़ावा देगा, ताकि भारतीय निर्यातक अंतरराष्ट्रीय मानकों पर प्रतिस्पर्धी बने रह सकें।
दो उप-योजनाएं: ‘निर्यात प्रोत्साहन’ और ‘निर्यात दिशा’
एक्सपोर्ट प्रमोशन मिशन दो प्रमुख इंटीग्रेटेड सब-स्कीम्स के तहत कार्य करेगा —
1. निर्यात प्रोत्साहन (NIRYAT PROTSAHAN):
इस योजना के तहत सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) को विशेष रूप से लक्षित किया जाएगा। इसका उद्देश्य उन्हें किफायती व्यापार वित्त (affordable trade finance) तक पहुंच उपलब्ध कराना है।
इसमें शामिल हैं —
- ब्याज अनुदान (Interest Subvention) की सुविधा,
- ई-कॉमर्स निर्यातकों के लिए क्रेडिट कार्ड जैसी नयी वित्तीय सेवाएं,
- और नए वैश्विक बाज़ारों में विविधीकरण (diversification) को बढ़ावा देने हेतु ऋण सहायता योजनाएं।
इन कदमों का उद्देश्य निर्यातकों के वित्तीय बोझ को कम करना और उन्हें वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में अधिक प्रभावी ढंग से जोड़ना है।
2. निर्यात दिशा (NIRYAT DISHA):
दूसरी उप-योजना गैर-वित्तीय सक्षमताओं (Non-financial Enablers) पर केंद्रित है, ताकि भारतीय उद्योगों की बाज़ार तैयारी और प्रतिस्पर्धात्मकता को मज़बूती मिले।
इसमें शामिल हैं —
- निर्यातक कौशल विकास (Skill Upgradation),
- मार्केट इंटेलिजेंस और डेटा-संचालित व्यापार निर्णय,
- क्वालिटी सर्टिफिकेशन और सस्टेनेबल ट्रेड प्रैक्टिसेस को प्रोत्साहन,
- और वैश्विक व्यापार मानकों के अनुरूप उत्पादन प्रक्रियाओं में सुधार।
वैश्विक व्यापार की चुनौतियों के बीच भारत की रणनीतिक चाल
अमेरिका द्वारा हाल ही में लागू किए गए 50% Reciprocal Tariff के बाद से भारत के कई प्रमुख निर्यात सेक्टरों पर दबाव बढ़ा है।
विशेष रूप से, टेक्सटाइल्स, जेम्स एंड ज्वेलरी और इंजीनियरिंग गुड्स जैसे क्षेत्र इस टैरिफ से प्रभावित हुए हैं।
सरकारी सूत्रों के अनुसार, EPM का एक बड़ा उद्देश्य इन झटकों को संतुलित करना और भारतीय उत्पादों को मूल्य आधारित प्रतिस्पर्धा (Value Competitiveness) के साथ पुनः स्थापित करना है।
यह मिशन निर्यात नीति में उस “रिएक्टिव एप्रोच” की जगह “प्रोएक्टिव और टेक्नोलॉजी-सक्षम एप्रोच” को बढ़ावा देगा, जो लंबे समय से आवश्यकता महसूस की जा रही थी।
‘मेक इन इंडिया’ और ‘लोकल टू ग्लोबल’ विज़न से जुड़ा कदम
केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि EPM, प्रधानमंत्री के ‘लोकल टू ग्लोबल’ और ‘मेक इन इंडिया’ विज़न के अनुरूप तैयार किया गया है।
यह न केवल निर्यातकों को प्रत्यक्ष सहायता देगा, बल्कि पूरे व्यापार इकोसिस्टम — जैसे लॉजिस्टिक्स, डिजिटल ट्रेड फाइनेंसिंग और ई-कॉमर्स निर्यात — को भी मज़बूती प्रदान करेगा।
इस मिशन के अंतर्गत —
- भारतीय बंदरगाहों और सीमा शुल्क प्रक्रियाओं को डिजिटल रूप से और सरल बनाया जाएगा।
- निर्यातकों को एक सिंगल-विंडो पोर्टल के माध्यम से सभी सेवाएं प्राप्त होंगी।
- और वैश्विक बाज़ारों में ब्रांड इंडिया की साख को बढ़ाने पर विशेष ध्यान रहेगा।
विश्लेषण: निर्यात पर नई उम्मीदें, लेकिन अमल चुनौतीपूर्ण
वाणिज्य नीति विशेषज्ञों के अनुसार, EPM की घोषणा भारत के व्यापार परिदृश्य के लिए “पॉलिसी-लेवल ब्रेकथ्रू” साबित हो सकती है, लेकिन इसके सफल क्रियान्वयन के लिए राज्यों और उद्योग जगत के बीच समन्वय अत्यंत आवश्यक होगा।
भारतीय विदेशी व्यापार संस्थान (IIFT) के प्रोफेसर एस. के. मिश्रा के अनुसार,
“यह मिशन भारत को निर्यात के क्षेत्र में संरचनात्मक बदलाव की ओर ले जा सकता है, बशर्ते कि इसके वित्तीय और प्रशासनिक घटकों को समय पर और पारदर्शी तरीके से लागू किया जाए।”
आत्मनिर्भर और निर्यातमुखी भारत की ओर एक कदम
कुल मिलाकर, 25,060 करोड़ रुपये का यह एक्सपोर्ट प्रमोशन मिशन (EPM) भारतीय निर्यात परिदृश्य को नई दिशा देने वाला साबित हो सकता है। वैश्विक व्यापार अस्थिरता और बढ़ती संरक्षणवादी नीतियों के दौर में, यह पहल भारत को ‘वैल्यू-ड्रिवन ट्रेड इकोनॉमी’ की ओर ले जाने की क्षमता रखती है।
सरकार को उम्मीद है कि इस मिशन से न केवल निर्यात में स्थिर वृद्धि होगी, बल्कि लाखों MSME उद्यमों को भी अंतरराष्ट्रीय व्यापार में नई ऊर्जा मिलेगी — जिससे भारत आने वाले वर्षों में विश्व के शीर्ष निर्यातक देशों की सूची में अपना स्थान मज़बूत कर सकेगा।



