
मुंबई, 12 नवंबर: मुंबई में साइबर अपराधियों ने ठगी का ऐसा चौंकाने वाला तरीका अपनाया है जिसने पुलिस तक को हैरान कर दिया है। अॅग्रिपाडा इलाके में रहने वाले 60 वर्षीय एक कारोबारी को ठगों ने ‘डिजिटल अरेस्ट’ (Digital Arrest) का झांसा देकर 53 लाख रुपये से ठग लिया। खुद को सरकारी अफसर बताने वाले इन ठगों ने व्हाट्सऐप कॉल, नकली पहचान और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का इस्तेमाल कर पूरी साजिश को अंजाम दिया।
कैसे हुआ पूरा मामला
पुलिस सूत्रों के मुताबिक, पीड़ित कारोबारी दुबई में लॉजिस्टिक्स और क्लियरिंग का व्यवसाय चलाते हैं और भारत-यूएई के बीच अक्सर आते-जाते रहते हैं।
3 नवंबर को उन्हें एक अनजान व्हाट्सऐप कॉल प्राप्त हुई। कॉल करने वाले ने खुद को दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) का अधिकारी “राजीव सिन्हा” बताया और कहा कि कारोबारी के आधार कार्ड से जुड़ा एक सिम कार्ड धोखाधड़ी में इस्तेमाल हुआ है।
कॉलर ने यह भी कहा कि दिल्ली पुलिस में उनके खिलाफ मामला दर्ज है और उन्हें अगले दो घंटे के भीतर पूछताछ के लिए पेश होना होगा।
वीडियो कॉल पर ‘डिजिटल अरेस्ट’
पहली कॉल के कुछ देर बाद कारोबारी को एक वीडियो कॉल आया। इस बार कॉलर ने खुद को दिल्ली पुलिस का अधिकारी “विजय खन्ना” बताया। उसने कारोबारी पर मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल होने का आरोप लगाया और कहा कि उनके नाम से दिल्ली में एक बैंक खाता खोला गया है, जिसमें अपराध से जुड़ी रकम ट्रांसफर की गई है।
फिर ठगों ने तीसरे “वरिष्ठ अधिकारी” को वीडियो कॉल में शामिल किया — जिसने खुद को सीबीआई का एसएसपी “समाधान पवार” और सरकारी प्रॉसिक्यूटर बताया। इस व्यक्ति ने पीड़ित को भारत सरकार, एंटी-करप्शन ब्रांच और प्रवर्तन निदेशालय (ED) के लोगो वाले नकली दस्तावेज व्हाट्सऐप पर भेजे, ताकि उन्हें यह यकीन हो जाए कि मामला असली है।
“डिजिटल अरेस्ट” का झांसा
फर्जी अफसरों ने कारोबारी से कहा कि जब तक जांच पूरी नहीं होती, उन्हें “डिजिटल अरेस्ट” में रहना होगा, यानी वीडियो कॉल पर ऑनलाइन निगरानी में रहना होगा और कोई बाहरी संपर्क नहीं करना होगा।
उन्हें निर्देश दिया गया कि वे अपनी संपत्ति और बैंक अकाउंट की जानकारी साझा करें, ताकि उनकी “निष्पक्षता की जांच” हो सके।
ठगों ने कारोबारी से कहा कि वे सुरक्षा के लिए अपने खातों से रकम एक “सरकारी खाते” में ट्रांसफर करें, जिससे यह साबित हो सके कि पैसे अवैध नहीं हैं। इस भरोसे में आकर कारोबारी ने अगले कुछ घंटों में कुल 53 लाख रुपये विभिन्न खातों में भेज दिए।
ठगी का पता कैसे चला
जब कारोबारी ने बाद में अपने परिजनों को घटना की जानकारी दी, तो उन्हें एहसास हुआ कि यह एक साइबर ठगी थी। उन्होंने तुरंत अॅग्रिपाडा पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई।
पुलिस ने मामला दर्ज करते हुए जांच शुरू की है। शुरुआती जांच में पता चला है कि कॉल विदेश से रूट की गई इंटरनेट कॉल थी और बैंक खातों का पैसा कई म्यूल अकाउंट्स के ज़रिए बाहर भेजा जा चुका है।
क्या है ‘डिजिटल अरेस्ट’?
“डिजिटल अरेस्ट” शब्द का प्रयोग हाल के महीनों में तेजी से बढ़ा है।
साइबर ठग सरकारी एजेंसियों का भेष धरकर लोगों को वीडियो कॉल पर “हिरासत” में रखते हैं और कहते हैं कि वे ऑनलाइन निगरानी में हैं।
इस दौरान पीड़ित से कहा जाता है कि वह किसी से संपर्क न करे और “जांच” के बहाने से पैसे मांगे जाते हैं।
दिल्ली, बेंगलुरु, पुणे और मुंबई जैसे शहरों में पिछले कुछ महीनों में इस तरह के कई केस सामने आ चुके हैं, जहां ठगों ने खुद को CBI, ED, NIA या पुलिस अधिकारी बताकर करोड़ों रुपये ऐंठ लिए।
पुलिस की चेतावनी
मुंबई पुलिस ने इस घटना के बाद लोगों को आगाह किया है कि
“कोई भी सरकारी एजेंसी या पुलिस विभाग व्हाट्सऐप, ज़ूम या किसी अन्य वीडियो कॉलिंग ऐप पर जांच नहीं करता। ऐसे मामलों में तुरंत कॉल काटें और 1930 या स्थानीय साइबर पुलिस स्टेशन पर शिकायत करें।”
विशेषज्ञों की सलाह
साइबर विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे अपराध साइकोलॉजिकल ट्रैपिंग पर आधारित होते हैं।
पीड़ित को डर, शर्म या कानून के नाम पर भ्रमित कर इतना दबाव बनाया जाता है कि वह ठगों की बात मान लेता है।
इसलिए
- अज्ञात नंबरों या व्हाट्सऐप कॉल पर आने वाले सरकारी दावों पर कभी भरोसा न करें,
- किसी भी लिंक, डॉक्युमेंट या ट्रांसफर रिक्वेस्ट को सत्यापित किए बिना न खोलें,
- और किसी भी संदिग्ध कॉल की सूचना तुरंत साइबर हेल्पलाइन 1930 पर दें।
यह मामला दिखाता है कि अब साइबर ठगी के तरीके पारंपरिक बैंक फ्रॉड से कहीं आगे बढ़ चुके हैं। “डिजिटल अरेस्ट” जैसे नए रूपों ने लोगों के विश्वास और डर दोनों का शोषण करना शुरू कर दिया है।
पुलिस ने कहा है कि जब तक अपराधियों का नेटवर्क पकड़ा नहीं जाता, तब तक आम नागरिकों को सतर्कता और साइबर जागरूकता ही अपनी सबसे बड़ी सुरक्षा माननी होगी।



