
विशाखापत्तनम, 8 नवंबर (राष्ट्रीय ब्यूरो): आंध्र प्रदेश के बंदरगाह शहर विशाखापत्तनम में शुक्रवार को एक ऐसी वारदात सामने आई, जिसने इंसानियत को झकझोर दिया। यह कोई अपराध की सामान्य खबर नहीं, बल्कि एक मां-बेटे के रिश्ते के बीच की नफरत की आग थी — जिसने एक बुजुर्ग महिला की जान ले ली और एक आठ साल की बच्ची की मासूमियत झुलसा दी।
पुलिस के अनुसार, 30 वर्षीय ललिता देवी ने अपनी 63 वर्षीय सास जयंती कनक महालक्ष्मी को पहले कुर्सी से बांधा, फिर आंखों पर पट्टी बांधी और उसके बाद पेट्रोल छिड़ककर आग लगा दी। सामने ही उसकी नन्ही बेटी, जो खेल समझकर दादी को बचाने दौड़ी थी, भी आग की लपटों में आ गई। वारदात स्थल से उठती चीखों ने पूरे मोहल्ले को हिला दिया।
खेल के बहाने रची गई साजिश
घटना शुक्रवार सुबह की बताई जा रही है। पुलिस के अनुसार, ललिता ने अपनी सास को बताया कि वह अपनी बेटी के साथ “चोर-सिपाही” का खेल खेलना चाहती है।
“आपको आंख पर पट्टी बांधनी है, कुर्सी पर बैठना है और हम आपको ढूंढेंगे,” — यह कहकर उसने जयंती महालक्ष्मी को कमरे में बैठाया।
लेकिन कुछ ही मिनटों में यह ‘खेल’ एक निर्मम साजिश में बदल गया। ललिता ने कमरे का दरवाज़ा बंद किया, पेट्रोल निकाला और बिना किसी झिझक के उसे सास पर उड़ेल दिया। बुजुर्ग महिला के “बेटी, क्या कर रही हो?” जैसी करुण पुकारें भी उसकी संवेदनाओं को नहीं जगा सकीं।
आग की लपटों ने कुछ ही पलों में पूरा कमरा निगल लिया।बेटी की चीखें और दादी की जलती चीखें एक साथ गूंज उठीं।
पड़ोसियों ने तोड़ा दरवाज़ा, लेकिन बहुत देर हो चुकी थी
जब पड़ोसियों ने धुएं का गुबार और चीखें सुनीं, तब वे दौड़कर पहुंचे। लोगों ने खिड़की के शीशे तोड़े और दरवाज़ा तोड़ने की कोशिश की। हालांकि जब तक आग पर काबू पाया गया, तब तक जयंती महालक्ष्मी पूरी तरह झुलस चुकी थीं। बेटी को झुलसी हालत में अस्पताल ले जाया गया, जहां उसका इलाज जारी है।
पुलिस मौके पर पहुंची और ललिता को गिरफ्तार कर लिया गया। प्राथमिक पूछताछ में उसने जो बयान दिया, उसने सबको सन्न कर दिया —
“मैं बस चाहती थी कि वो (सास) हमारे जीवन से दूर हो जाएं। वो हर बात में हस्तक्षेप करती थीं।”
“पति-पत्नी के झगड़े में मां की जान गई” — पुलिस की प्रारंभिक जांच
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि ललिता देवी और उसके पति के बीच पिछले कुछ महीनों से विवाद चल रहा था। सास जयंती महालक्ष्मी बीच-बचाव की कोशिश करती थीं, लेकिन यही बात ललिता को नागवार गुजरती थी।
अधिकारी के अनुसार,
“विवाद के पीछे पारिवारिक तनाव और मानसिक असंतुलन की स्थिति दिख रही है। लेकिन जिस निर्ममता से वारदात को अंजाम दिया गया, वह किसी भी तरह से सामान्य नहीं कहा जा सकता।”
पुलिस ने आरोपी महिला को हत्या (IPC 302) और हत्या के प्रयास (IPC 307) के तहत गिरफ्तार कर लिया है।
बच्ची की हालत फिलहाल स्थिर बताई जा रही है।
‘ममता’ बन गई ‘मृत्यु का कारण’: समाज पर एक करारा सवाल
यह घटना सिर्फ एक परिवार की त्रासदी नहीं है — यह पूरे समाज के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा करती है।
कभी सास-बहू का रिश्ता संस्कार और सह-अस्तित्व का प्रतीक माना जाता था, लेकिन अब कई घरों में यह नफरत और अविश्वास का केंद्र बनता जा रहा है। विशाखापत्तनम की यह घटना दिखाती है कि जब संवाद खत्म हो जाए, तो घर भी युद्धभूमि बन जाता है।
सामाजिक विशेषज्ञों के अनुसार, यह घटना सिर्फ घरेलू हिंसा या मानसिक असंतुलन का परिणाम नहीं, बल्कि संवेदनाओं के खत्म होने का संकेत है। डॉ. शालिनी अय्यर, जो सामाजिक मनोविज्ञान की विशेषज्ञ हैं, कहती हैं —
“जब घरों में संवाद और सहनशीलता खत्म होती है, तब रिश्ते कानून या अदालत के नहीं, बल्कि आग और हिंसा के हवाले हो जाते हैं।”
मनोवैज्ञानिक पहलू: ‘असंतुलन’ या ‘आक्रोश’?
कई बार घरेलू झगड़े धीरे-धीरे असंतुलित मनोदशा में बदल जाते हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि भारत में हर साल हजारों ऐसे मामले सामने आते हैं जहां पारिवारिक विवाद हिंसक अपराधों में बदल जाते हैं। महिलाएं, जो कभी घर की शांति की प्रतीक कही जाती थीं, अब कई बार खुद उस हिंसा की वाहक बन रही हैं।
लेकिन सवाल सिर्फ आरोपी पर नहीं — पूरे तंत्र पर है।
क्या समाज समय रहते ऐसी परिस्थितियों को पहचानने में असफल हो रहा है? क्या परामर्श केंद्र, महिला समितियाँ या समुदाय के बुजुर्ग अब उतने सक्रिय नहीं रहे?
‘एक मां, एक दादी और एक मासूम’ — तीन पीढ़ियाँ एक ही हादसे में झुलसीं
यह कहानी तीन पीढ़ियों की है —
- एक दादी, जो अपने बेटे और बहू के बीच शांति चाहती थी,
- एक बहू, जो अपने गुस्से और अहंकार में इंसानियत भूल गई,
- और एक नन्ही बच्ची, जो खेल समझकर दादी को बचाने दौड़ी थी।
इस एक आग ने तीनों की दुनिया बदल दी। एक घर जो कभी हंसी से गूंजता था, अब राख के ढेर में बदल गया।
अंतिम संस्कार और गांव का सन्नाटा
शनिवार को जब जयंती महालक्ष्मी का अंतिम संस्कार हुआ, तो पूरे इलाके में सन्नाटा छा गया। पड़ोसी, रिश्तेदार और जानने वाले एक ही बात कह रहे थे —
“वो औरों की मदद करने वाली, बहुत शांत स्वभाव की महिला थीं। किसी ने नहीं सोचा था कि उन्हें इतनी निर्ममता से मारा जाएगा।”
घर के बाहर अब भी आग के निशान हैं, दीवारें काली पड़ चुकी हैं, और हवा में धुएं की गंध के साथ सवाल तैर रहा है —“क्यों?”
जब रिश्ते जलने लगें, तो समाज को आईना देखना होगा
विशाखापत्तनम की यह घटना केवल अपराध नहीं, बल्कि समाज की चेतावनी है। रिश्ते टूटते नहीं, जलने लगते हैं — और जब दिलों में आग लग जाती है, तो कोई भी दीवार, कानून या पुलिस उसे रोक नहीं सकती।
हमें फिर से परिवारों में संवाद, सहानुभूति और समझ को जीवित करना होगा। क्योंकि अगर घर में नफरत बसने लगे, तो समाज का सबसे मजबूत किला भी राख में बदल जाता है।



