
नई दिल्ली | 8 नवंबर 2025 (भाषा) दक्षिण एशियाई साहित्य और सांस्कृतिक संवाद का प्रतिष्ठित आयोजन — 66वां दक्षेस (SAARC) साहित्य महोत्सव — इस रविवार से नई दिल्ली में शुरू होने जा रहा है। तीन दिवसीय यह आयोजन ललित कला एवं साहित्य अकादमी परिसर में होगा, जिसमें पाकिस्तान को छोड़कर दक्षिण एशिया के सभी सदस्य देशों के प्रसिद्ध लेखक, कवि, कलाकार, विद्वान और सांस्कृतिक विचारक भाग लेंगे।
महोत्सव का आयोजन दक्षेस लेखक एवं साहित्य फाउंडेशन (FOSWAL) द्वारा किया जा रहा है, जो पिछले चार दशकों से दक्षिण एशियाई देशों के बीच साहित्य और संस्कृति के माध्यम से संवाद, एकता और समझ को बढ़ावा देता आ रहा है। इस वर्ष भी कार्यक्रम का उद्देश्य “साझा सभ्यता, साझा संस्कृति और साझा भविष्य” की अवधारणा को केंद्र में रखकर दक्षिण एशियाई एकता को नए सिरे से अभिव्यक्त करना है।
🌏 सात देशों की भागीदारी, पाकिस्तान की अनुपस्थिति
फोसवाल की संस्थापक और अध्यक्ष डॉ. अनीता गोपाल ने बताया कि महोत्सव में भारत, बांग्लादेश, भूटान, नेपाल, श्रीलंका, मालदीव और अफगानिस्तान के प्रमुख साहित्यकार भाग लेंगे। पाकिस्तान को इस बार औपचारिक रूप से आमंत्रित नहीं किया गया, जिसके चलते उसकी अनुपस्थिति लगातार तीसरे वर्ष बनी हुई है।
उन्होंने कहा,
“हम साहित्य को सीमाओं से परे जोड़ने वाला माध्यम मानते हैं। लेकिन राजनीतिक परिस्थितियों और कूटनीतिक तनाव के चलते इस बार भी पाकिस्तान की भागीदारी संभव नहीं हो सकी। इसके बावजूद बाकी सात देशों के लेखक मिलकर दक्षिण एशिया की साझा सांस्कृतिक आत्मा को प्रकट करेंगे।”
📖 थीम: ‘South Asia – Our Shared Soul’
66वें संस्करण का केंद्रीय विषय “South Asia – Our Shared Soul” (दक्षिण एशिया : हमारी साझा आत्मा) रखा गया है।
इस थीम के तहत महोत्सव में कविता पाठ, कहानी गोष्ठी, पैनल डिस्कशन, अनुवाद संगोष्ठी, महिला लेखन सत्र, युवा कवि सम्मेलन और सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ होंगी।
इसमें भारत के प्रमुख साहित्यकारों के साथ-साथ नेपाल की लेखिका मदनिका श्रेष्ठ, बांग्लादेश के कवि मोहम्मद रहमान, श्रीलंका की उपन्यासकार चंद्रिका विजेसिंघे, भूटान के लेखक छेरिंग दोरजी और अफगानिस्तान की कवयित्री ज़ोहरा यूसुफ़जई जैसे नाम शामिल होंगे।
🎙️ उद्घाटन सत्र में शामिल होंगे प्रमुख साहित्यकार और मंत्री
महोत्सव का उद्घाटन सत्र रविवार सुबह होगा, जिसमें भारत के संस्कृति राज्य मंत्री, साहित्य अकादमी के अध्यक्ष, और फोसवाल की अध्यक्ष डॉ. अनीता गोपाल मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होंगे।
इसके बाद पहले दिन का सत्र “21वीं सदी में दक्षिण एशियाई साहित्य की भूमिका” विषय पर केंद्रित होगा। दूसरे दिन “संघर्ष, शांति और सृजनात्मकता” तथा “महिला लेखन की बदलती धाराएँ” जैसे विषयों पर संवाद होगा।
महोत्सव के अंतिम दिन “युवा पीढ़ी और साहित्य का भविष्य” पर विशेष चर्चा होगी, जिसके बाद दक्षिण एशियाई कविता पाठ और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ समापन समारोह आयोजित किया जाएगा।
🕊️ फोसवाल का उद्देश्य: संस्कृति से संवाद
‘फोसवाल’ की स्थापना वर्ष 1987 में हुई थी और तब से यह संगठन साहित्य और संस्कृति के ज़रिए दक्षिण एशिया में शांति और सद्भाव का संदेश फैलाने में अग्रणी रहा है।
फोसवाल के महासचिव शशि पांडे ने बताया,
“यह मंच राजनीतिक मतभेदों से परे, मानवीय संवेदना और साझा इतिहास पर केंद्रित संवाद को जीवित रखता है। हमारा उद्देश्य है कि युवा पीढ़ी को यह समझ आए कि दक्षिण एशिया की विविधता ही उसकी सबसे बड़ी ताकत है।”
📚 भारतीय साहित्य की झलक
महोत्सव में भारत के प्रतिनिधित्व के रूप में प्रसिद्ध लेखक गुलज़ार, ममता कालिया, नीलाभ अश्क, उदय प्रकाश, और युवा कवि अपूर्वा कश्यप जैसी हस्तियाँ हिस्सा लेंगी।
हिंदी के साथ-साथ अंग्रेज़ी, बांग्ला, तमिल, उर्दू और नेपाली भाषाओं में भी सत्र आयोजित किए जाएंगे।
विशेष रूप से आयोजित एक पैनल “साहित्य में सीमाएँ नहीं – Borders in Imagination” में भारत और नेपाल के लेखक चर्चा करेंगे कि कैसे साहित्य राष्ट्रीय सीमाओं से परे साझा भावनाओं को जन्म देता है।
🎨 सांस्कृतिक और कलात्मक कार्यक्रम
साहित्य के साथ-साथ कला और संगीत का संगम भी इस महोत्सव की विशेषता रहेगा।
हर शाम शास्त्रीय संगीत, नृत्य और लोक-संस्कृति की प्रस्तुतियाँ होंगी।
पहली शाम बांग्लादेश की बाउल गायिका शमीमा अख्तर, श्रीलंका की लोक नर्तकी अमारा पेररा, और भारत की शास्त्रीय गायिका माधवी त्रिवेदी अपनी प्रस्तुतियाँ देंगीं।
🪶 दक्षेस साहित्य का बढ़ता दायरा
दक्षेस साहित्य महोत्सव अब केवल एक वार्षिक आयोजन नहीं, बल्कि दक्षिण एशिया के साहित्यिक सहयोग का प्रतीक बन चुका है।
पिछले वर्षों में इस मंच ने “साझा इतिहास, साझा संघर्ष और साझा संवेदनाएँ” जैसे विषयों पर गहन संवाद स्थापित किया है।
डॉ. गोपाल के अनुसार,
“साहित्य वह दर्पण है जिसमें हम अपनी साझी पीड़ा और उम्मीद को देख सकते हैं। फोसवाल इस दर्पण को साफ़ और प्रासंगिक बनाए रखने का काम कर रहा है।”
सीमाओं से परे एक साझा आवाज़
इस वर्ष का दक्षेस साहित्य महोत्सव ऐसे समय में हो रहा है जब दुनिया राजनीतिक विभाजनों और सांस्कृतिक टकरावों से गुजर रही है। ऐसे में यह मंच शब्दों के ज़रिए शांति, समझ और एकता का संदेश देता है।
भारत में इसका आयोजन न केवल दक्षिण एशिया के साहित्यिक रिश्तों को मज़बूत करता है, बल्कि इस बात को भी रेखांकित करता है कि कला और संस्कृति संवाद की सबसे शक्तिशाली भाषा है।



