
नयी दिल्ली, 8 नवंबर (भाषा): प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने शनिवार को देशभर में एक बड़ी कार्रवाई करते हुए प्रतिबंधित संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) की करीब 67 करोड़ रुपये की संपत्ति कुर्क कर दी। यह कार्रवाई धनशोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत की गई है। एजेंसी ने कहा कि ये संपत्तियां पीएफआई के “लाभकारी स्वामित्व और नियंत्रण” में थीं और इन्हें संगठन ने अपने फ्रंट संगठनों, ट्रस्टों और राजनीतिक इकाई सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) के नाम पर पंजीकृत कर रखा था।
ईडी के इस कदम को केंद्र सरकार की “आतंकी वित्तपोषण नेटवर्क को खत्म करने” की दिशा में अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई में से एक माना जा रहा है।
देशभर की संपत्तियां कुर्क, नेटवर्क के तार छह राज्यों तक फैले
ईडी ने अपने आधिकारिक बयान में बताया कि कुर्क की गई संपत्तियां देश के कई राज्यों — केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और राजस्थान — में फैली हुई हैं।
इनमें बैंक खातों, अचल संपत्तियों, दान के नाम पर खरीदी गई भूमि और ट्रस्ट फंडों को शामिल किया गया है।
एजेंसी का कहना है कि इन संपत्तियों का उपयोग आतंकी गतिविधियों को फंडिंग, कट्टरपंथी प्रशिक्षण शिविरों के संचालन, और नए सदस्यों की भर्ती में किया जा रहा था।
बयान के अनुसार, “पीएफआई ने एक संगठित वित्तीय ढांचा तैयार किया था जिसके माध्यम से अवैध फंडिंग को वैध स्वरूप देने की कोशिश की जा रही थी।”
विदेशी फंडिंग और हवाला नेटवर्क के जरिए जुटाए गए करोड़ों रुपये
ईडी की जांच में यह भी खुलासा हुआ है कि पीएफआई ने देश और विदेश में फैले अपने नेटवर्क के जरिये हवाला और फर्जी दान योजना के माध्यम से भारी-भरकम फंड इकट्ठा किए।
कई फाउंडेशन और शैक्षिक ट्रस्टों को “सामाजिक कल्याण” के नाम पर उपयोग किया गया, जबकि वास्तव में इनसे आने वाला धन आतंकी गतिविधियों और सांप्रदायिक हिंसा में लगाया गया।
ईडी की एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया,
“जांच में कई ऐसे बैंक खातों का पता चला है जिनमें भारी नकद जमा किया गया, लेकिन उस धन का कोई वैध स्रोत प्रस्तुत नहीं किया गया। हवाला के जरिये विदेशों से प्राप्त रकम को कई खातों में बांटकर छिपाने का प्रयास किया गया।”
एसडीपीआई की भूमिका पर भी गहराई से जांच
ईडी ने यह भी स्पष्ट किया कि पीएफआई ने अपने राजनीतिक मोर्चे सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) के माध्यम से धन के प्रवाह को वैध दिखाने की कोशिश की।
एजेंसी का आरोप है कि एसडीपीआई और उससे जुड़े संगठनों के खातों में “एक ही स्रोत से” बार-बार ट्रांसफर हुए, जिससे फंडिंग की परतें बनाई जा सकें और असली स्रोत छिपाया जा सके।
जांच रिपोर्ट के अनुसार, “ट्रस्टों और फाउंडेशनों के नाम पर जो संपत्तियां खरीदी गईं, वे वास्तव में पीएफआई नेताओं के नियंत्रण में थीं।”
ईडी का कहना है कि इस कुर्की से पीएफआई के पूरे वित्तीय ढांचे को झटका लगा है और उसके फंडिंग नेटवर्क का एक बड़ा हिस्सा ध्वस्त हुआ है।
केंद्र सरकार पहले ही कर चुकी है संगठन पर प्रतिबंध
यह पहली बार नहीं है जब एजेंसियों ने पीएफआई के खिलाफ ऐसी कड़ी कार्रवाई की है।
केंद्र सरकार ने सितंबर 2022 में पीएफआई और उससे जुड़ी आठ संगठनों को पांच साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया था।
सरकार ने अपने आदेश में कहा था कि पीएफआई “देश की एकता और अखंडता के खिलाफ गतिविधियों” में संलग्न है और यह संगठन आतंकवाद के लिए भर्ती और प्रशिक्षण देने का कार्य कर रहा है।
इसके बाद राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) और ईडी ने देशभर में एक साथ छापेमारी कर सैकड़ों सदस्यों को गिरफ्तार किया था।
इनमें संगठन के शीर्ष नेता — अध्यक्ष ओ. एम. सलाम, महासचिव अब्दुल्ला अबुबकर, और कोषाध्यक्ष पी. के. नजीब — भी शामिल थे।
ईडी की जांच के नए आयाम
ईडी के अनुसार, कुर्क की गई संपत्तियों का अधिकांश हिस्सा कथित रूप से पीएफआई के मुखौटा संगठनों के पास था।
एजेंसी के मुताबिक, संगठन ने स्कूल, चैरिटेबल ट्रस्ट और एनजीओ जैसे ढांचे खड़े किए ताकि अवैध फंडिंग को वैध दिखाया जा सके।
ईडी ने इन संस्थाओं के खातों की जांच के दौरान पाया कि विदेशी चंदे और अनुदान के नाम पर भारी रकम भारत लायी गई, जिसे बाद में विभिन्न “धार्मिक और राजनीतिक अभियानों” में खर्च किया गया।
एक अन्य अधिकारी ने बताया,
“हमारे पास ऐसे दस्तावेज हैं जो यह साबित करते हैं कि संगठन ने कुछ धार्मिक आयोजनों और छात्र संगठनों के जरिये युवाओं को कट्टरपंथी बनाने की कोशिश की। यह फंडिंग इन्हीं अभियानों में इस्तेमाल हुई।”
धनशोधन निवारण अधिनियम के तहत सख्त कार्रवाई
ईडी ने यह कार्रवाई PMLA (Prevention of Money Laundering Act) की धारा 5 के तहत की है।
कानून के मुताबिक, एजेंसी किसी भी ऐसी संपत्ति को अस्थायी रूप से कुर्क कर सकती है जो “आपराधिक गतिविधियों से अर्जित आय” मानी जाती हो।
अगर अदालत में यह साबित हो जाता है कि संपत्तियां वाकई अपराध से अर्जित धन से खरीदी गई हैं, तो सरकार उन पर स्थायी स्वामित्व प्राप्त कर सकती है।
ईडी ने संकेत दिया है कि आने वाले दिनों में वह इस मामले में पूरक अभियोजन शिकायत (Prosecution Complaint) भी दाखिल करेगी, जिससे कई नए नाम सामने आ सकते हैं।
राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ‘महत्वपूर्ण कदम’ बताया गया
केंद्रीय गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस कार्रवाई को “राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए निर्णायक कदम” बताया।
उन्होंने कहा कि देश की सुरक्षा एजेंसियां अब ऐसे संगठनों के आर्थिक ढांचे को खत्म करने पर जोर दे रही हैं जो सीधे या परोक्ष रूप से आतंकी गतिविधियों को वित्तीय मदद पहुंचाते हैं।
उन्होंने कहा,
“जब तक इन संगठनों की आर्थिक जड़ें नहीं काटी जाएंगी, तब तक इनके नेटवर्क को पूरी तरह खत्म करना संभव नहीं है। ईडी की यह कार्रवाई उसी दिशा में एक ठोस प्रयास है।”
पीएफआई की पृष्ठभूमि और विवाद
2006 में केरल में गठित पीएफआई खुद को “सामाजिक न्याय और समानता के लिए आंदोलन” बताता रहा है।
लेकिन सरकार और सुरक्षा एजेंसियों का आरोप है कि संगठन धार्मिक कट्टरपंथ, सांप्रदायिक हिंसा और आतंकी नेटवर्क से जुड़ा है। एनआईए और ईडी दोनों एजेंसियां इसके खिलाफ आतंकी फंडिंग, विदेशी फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग की जांच कर रही हैं।
पिछले कुछ वर्षों में पीएफआई का नाम दिल्ली दंगों, हाथरस प्रकरण, सीएए विरोध प्रदर्शनों और कई राज्यों में हुई हिंसक घटनाओं में सामने आ चुका है।
अगले कदम और संभावित प्रभाव
ईडी ने कहा है कि इस कार्रवाई के बाद संबंधित संपत्तियों पर आगे की कानूनी प्रक्रिया और फोरेंसिक जांच जारी रहेगी। यदि अदालत में यह कुर्की आदेश कायम रहता है, तो पीएफआई और उससे जुड़े संगठनों की ये संपत्तियां सरकार के स्वामित्व में स्थायी रूप से जब्त की जा सकती हैं। कानूनी जानकारों का मानना है कि यह फैसला भविष्य में अन्य प्रतिबंधित संगठनों के खिलाफ कार्रवाई का मॉडल बन सकता है।



