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पाकिस्तान के सिंध में जबरन धर्म परिवर्तन का मामला: अदालत ने हिंदू लड़की सुनीता कुमारी को परिवार से मिलाया

मानवाधिकार संगठनों ने उठाई अल्पसंख्यक सुरक्षा की मांग, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फिर गूंजा सिंध का मुद्दा

कराची, 3 नवंबर 2025। पाकिस्तान के सिंध प्रांत में जबरन धर्म परिवर्तन और विवाह के एक और चर्चित मामले में बड़ा घटनाक्रम सामने आया है। उमरकोट की एक अदालत ने शनिवार को आदेश दिया कि अगवा कर धर्म परिवर्तन के बाद शादी के लिए मजबूर की गई हिंदू लड़की सुनीता कुमारी महाराज को उसके परिवार के पास वापस भेजा जाए। अदालत के आदेश के बाद शनिवार देर शाम सुनीता को उसके परिवार से मिला दिया गया।

यह मामला एक बार फिर पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय की सुरक्षा, महिलाओं के अधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है।

घटना का पूरा विवरण

रिपोर्टों के अनुसार, 17 वर्षीय सुनीता कुमारी महाराज को कुछ सप्ताह पहले कराची से लगभग 310 किलोमीटर पूर्व स्थित उमरकोट ज़िले से अगवा कर लिया गया था। परिजनों का आरोप है कि उसे एक बुजुर्ग मुस्लिम व्यक्ति के साथ जबरन निकाह कराया गया और इस दौरान उसका धर्म परिवर्तन भी करवा दिया गया।

लड़की के परिवार ने स्थानीय प्रशासन से शिकायत की, लेकिन शुरुआती दौर में पुलिस की कार्रवाई बेहद धीमी रही। बाद में मामला सार्वजनिक होने के बाद स्थानीय हिंदू संगठनों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के हस्तक्षेप पर अदालत ने स्वतः संज्ञान लिया।

अदालत ने अपनी सुनवाई में कहा कि लड़की की इच्छा सर्वोपरि है और यदि वह अपने परिवार के पास लौटना चाहती है तो उसे ऐसा करने की पूरी आज़ादी दी जाए। इस आदेश के बाद अदालत परिसर में मौजूद समुदाय के लोग और परिवारजन भावुक हो उठे।

समुदाय में राहत, लेकिन चिंता बरकरार

हिंदू पंचायत उमरकोट के प्रमुख ललिता राम ने कहा,

“अदालत के इस फैसले से हमें राहत मिली है, लेकिन यह केवल एक मामले का समाधान है। सिंध में हर साल ऐसी दर्जनों लड़कियाँ जबरन धर्म परिवर्तन और विवाह का शिकार बनती हैं।”

उन्होंने बताया कि कई बार परिवारों को धमकियाँ दी जाती हैं कि वे मामला आगे न बढ़ाएँ, क्योंकि आरोपी प्रभावशाली राजनीतिक या धार्मिक समूहों से जुड़े होते हैं।

मानवाधिकार संगठनों ने जताई नाराज़गी

इस घटना के बाद पाकिस्तान के प्रमुख मानवाधिकार संगठनों ने सिंध सरकार की निष्क्रियता पर सवाल उठाए हैं। ह्यूमन राइट्स कमीशन ऑफ पाकिस्तान (HRCP) ने कहा है कि अल्पसंख्यक समुदाय की बेटियों की सुरक्षा के लिए ठोस नीति बनाने की ज़रूरत है।

एचआरसीपी की प्रवक्ता ने बयान जारी करते हुए कहा,

“हर बार की तरह, सरकार केवल एक मामले में न्याय दिलाकर अपनी जिम्मेदारी पूरी मान लेती है। लेकिन असल समस्या यह है कि सिंध और पंजाब के ग्रामीण इलाकों में जबरन धर्म परिवर्तन एक संगठित अपराध के रूप में मौजूद है।”

उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान में ‘सिंध चाइल्ड मैरिज रेस्ट्रेंट एक्ट’ (Sindh Child Marriage Restraint Act) और ‘धार्मिक स्वतंत्रता कानून’ जैसे प्रावधानों के बावजूद, कानून का पालन करवाने की राजनीतिक इच्छाशक्ति नदारद है।

लगातार बढ़ रहे जबरन धर्म परिवर्तन के मामले

विभिन्न अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों के अनुसार, पाकिस्तान में हर साल लगभग 1,000 से अधिक हिंदू और सिख लड़कियों को जबरन धर्म परिवर्तन और विवाह का शिकार बनाया जाता है। इनमें से अधिकांश घटनाएँ सिंध, पंजाब और बलूचिस्तान के ग्रामीण इलाकों में होती हैं।

एमनेस्टी इंटरनेशनल और यूएन ह्यूमन राइट्स काउंसिल पहले भी इस मुद्दे पर पाकिस्तान सरकार को चेतावनी दे चुके हैं। एमनेस्टी की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि “धार्मिक स्वतंत्रता पर गंभीर हमले न केवल पाकिस्तान के संविधान के अनुच्छेद 20 का उल्लंघन हैं, बल्कि यह देश के अंतरराष्ट्रीय दायित्वों के भी विरुद्ध हैं।”

भारत में भी उठी प्रतिक्रिया

भारत में भी इस घटना को लेकर तीखी प्रतिक्रियाएँ सामने आई हैं। विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि भारत लगातार पाकिस्तान में हिंदू, सिख और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के मानवाधिकार उल्लंघनों को लेकर चिंता व्यक्त करता रहा है।

राजस्थान, गुजरात और दिल्ली में बसे सिंधी समुदायों ने भी सुनीता कुमारी के मामले पर विरोध प्रदर्शन किए हैं। जयपुर सिंधी समाज परिषद ने बयान जारी कर कहा,

“यह केवल एक लड़की की कहानी नहीं, बल्कि एक समुदाय के अस्तित्व की लड़ाई है। पाकिस्तान सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसे अपराध दोबारा न हों।”

न्यायपालिका की भूमिका सराहनीय, लेकिन चुनौतियाँ कायम

विशेषज्ञों का मानना है कि उमरकोट अदालत का यह फैसला न केवल न्याय की दिशा में एक अहम कदम है, बल्कि पाकिस्तान की न्यायपालिका के स्वतंत्र रवैये का भी संकेत देता है। हालांकि, ज़मीनी स्तर पर अभी भी कई चुनौतियाँ हैं।

पाकिस्तानी समाज में गहराई से जड़ें जमा चुकी सामाजिक असमानता, धार्मिक कट्टरता, और कानूनी सुरक्षा की कमी इस समस्या को और जटिल बनाती हैं। अदालत के आदेश के बावजूद, कई बार पीड़ित परिवारों को सुरक्षा नहीं मिल पाती और उन्हें समुदाय छोड़कर विस्थापित होना पड़ता है।

अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ने की संभावना

राजनयिक विश्लेषकों का कहना है कि यह मामला अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान की छवि को प्रभावित कर सकता है। संयुक्त राष्ट्र, अमेरिकी विदेश विभाग और यूरोपीय संसद जैसे संस्थान पहले ही पाकिस्तान को “धार्मिक स्वतंत्रता के गंभीर उल्लंघन वाले देशों” की सूची में रख चुके हैं।

ऐसे में सुनीता कुमारी का मामला पाकिस्तान सरकार पर दबाव बढ़ाएगा कि वह अल्पसंख्यक समुदायों की सुरक्षा के लिए ठोस नीतिगत कदम उठाए।

सुनीता कुमारी को परिवार से मिलाया जाना एक मानवीय और कानूनी जीत है, लेकिन यह जीत अधूरी है जब तक पाकिस्तान में धर्म, लिंग और समुदाय के आधार पर होने वाले उत्पीड़न को समाप्त करने की ठोस व्यवस्था नहीं की जाती।

सिंध की इस घटना ने एक बार फिर यह सवाल उठा दिया है —“क्या पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदाय की बेटियाँ कभी बिना डर के जी पाएँगी?”

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