
नई दिल्ली: देश में खांसी की दवाओं (कफ सिरप) में जहरीले रसायनों की मिलावट से जुड़े मामलों के बाद केंद्र सरकार ने बड़ा कदम उठाया है। अब भारत में बनने और बिकने वाले हर कफ सिरप को बाजार में आने से पहले सरकारी या अधिकृत प्रयोगशालाओं में जांच से गुजरना अनिवार्य होगा। यह व्यवस्था पहले केवल विदेश निर्यात के लिए बनने वाले सिरप पर लागू थी, लेकिन अब यह घरेलू बाजार के लिए भी जरूरी कर दी गई है।
स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी नई गाइडलाइन के मुताबिक, फार्मा कंपनियों को हर सिरप की बिक्री से पहले ‘सर्टिफिकेट ऑफ एनालिसिस’ (CoA) हासिल करना होगा। यह प्रमाणपत्र केवल सरकारी लैब या सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त संस्थान से जांच के बाद ही मिलेगा। जांच और प्रमाणन के बाद ही उत्पाद को देशभर के बाजारों में वितरित किया जा सकेगा।
विदेशों में मौतों से सबक — अब घरेलू बाजार पर सख्ती
पिछले एक वर्ष में भारत में बनी खांसी की कुछ दवाओं से अफ्रीकी देशों में दर्जनों बच्चों की मौतें हुई थीं। इन घटनाओं के बाद भारत की दवा निर्माण गुणवत्ता पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सवाल उठे थे।
गाम्बिया, उज्बेकिस्तान और कैमरून जैसे देशों में दर्ज इन मामलों की जांच में पाया गया कि कुछ सिरप में डाईएथिलीन ग्लाइकोल (DEG) और एथिलीन ग्लाइकोल (EG) जैसे जहरीले रसायनों की मिलावट थी — जो किडनी फेलियर का प्रमुख कारण बने।
अब सरकार ने स्पष्ट किया है कि ऐसे किसी भी हादसे की पुनरावृत्ति भारत में नहीं होने दी जाएगी। केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) ने सभी राज्य दवा नियामकों को आदेश जारी कर कहा है कि
“हर बैच की बिक्री से पहले उत्पाद की लैब टेस्ट रिपोर्ट और प्रमाणपत्र प्रस्तुत करना अनिवार्य है। बिना जांच और प्रमाणपत्र के किसी भी सिरप को बाजार में बेचा या वितरित नहीं किया जा सकेगा।”
‘हाई-रिस्क सॉल्वेंट्स’ की निगरानी होगी डिजिटल
केंद्र सरकार ने उन रसायनों की भी पहचान कर ली है जो दवा निर्माण प्रक्रिया में सबसे ज्यादा जोखिम वाले (High-Risk Solvents) माने जाते हैं। इन रसायनों की सप्लाई, स्टोरेज, ट्रांसपोर्ट और उपयोग अब पूरी तरह सरकारी निगरानी में रहेगा।
इन रसायनों में शामिल हैं —
ग्लिसरीन, प्रोपाइलीन ग्लाइकोल, माल्टिटोल और माल्टिटोल सॉल्यूशन, सोर्बिटोल, हाइड्रोजेनेटेड स्टार्च हाइड्रोलाइसेट, डाइएथिलीन ग्लाइकोल स्टिऐरेट्स, पॉलीएथिलीन ग्लाइकोल, पॉलीएथिलीन ग्लाइकोल मोनोमेथिल ईथर, पॉलीसॉर्बेट और एथिल अल्कोहल।
इनकी निगरानी के लिए सरकार ने हाल ही में ONDLS (Online National Drug Licensing System) नामक डिजिटल पोर्टल शुरू किया है।
अब हर फार्मा कंपनी को इस पोर्टल पर अपने उत्पादन और रसायनों की जानकारी दर्ज करनी होगी।
CDSCO के निर्देशों के अनुसार —
- जो कंपनियां पहले से निर्माण लाइसेंस रखती हैं, उन्हें भी पोर्टल पर अपनी अद्यतन जानकारी अपलोड करनी होगी।
- बिना पंजीयन और रिपोर्टिंग के किसी भी दवा निर्माण इकाई को ‘नो कंप्लायंस’ माना जाएगा।
जांच से लेकर बाजार तक हर चरण में पारदर्शिता
सरकार का उद्देश्य स्पष्ट है —
“दवा उत्पादन की हर कड़ी पारदर्शी और जवाबदेह बने।”
नई व्यवस्था के तहत
- रसायन आपूर्तिकर्ता,
- दवा निर्माता,
- पैकिंग और लेबलिंग एजेंसियां
— सभी को अपनी गतिविधियों का डिजिटल रिकॉर्ड रखना होगा।
दवा निर्माण में इस्तेमाल किए जाने वाले कच्चे रसायनों के बैच नंबर, आपूर्तिकर्ता की जानकारी और गुणवत्ता परीक्षण की रिपोर्ट अब सरकारी निगरानी प्रणाली में दर्ज रहेगी।
इससे किसी भी संदिग्ध बैच की ट्रेसिंग (Tracing) और रिकॉल (Recall) प्रक्रिया आसान होगी।
फार्मा सेक्टर में जवाबदेही बढ़ाने की पहल
भारत का फार्मा उद्योग दुनिया में तीसरे नंबर पर है और 60% से अधिक जेनेरिक दवाओं का निर्यात करता है।
हालांकि, हालिया अंतरराष्ट्रीय घटनाओं ने इस क्षेत्र की छवि को नुकसान पहुंचाया।
अब केंद्र सरकार की यह पहल न केवल घरेलू उपभोक्ताओं की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि
वैश्विक स्तर पर भारत की दवा निर्माण विश्वसनीयता को बहाल करने का प्रयास भी मानी जा रही है।
स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि —
“यह कदम भारतीय फार्मा सेक्टर में गुणवत्ता नियंत्रण की नई परंपरा शुरू करेगा। सरकार चाहती है कि हर दवा का उत्पादन अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप हो।”
राज्यों को सख्ती से पालन का निर्देश
CDSCO ने सभी राज्य औषधि नियंत्रकों को पत्र भेजकर कहा है कि
- वे अपने क्षेत्र की सभी दवा निर्माण इकाइयों का निरीक्षण करें,
- हाई-रिस्क रसायनों की सूची साझा करें,
- और प्रयोगशालाओं की रिपोर्ट को नियमित रूप से मंत्रालय को भेजें।
इसके अलावा सरकार ने उन लाइसेंसधारक कंपनियों की विशेष निगरानी शुरू कर दी है जो कफ सिरप, सिरप-बेस्ड टॉनिक या बच्चों की दवाओं का उत्पादन करती हैं।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने कहा — यह समय की मांग
फार्मा विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार का यह निर्णय लंबे समय से लंबित था। ड्रग क्वालिटी एक्सपर्ट डॉ. वी. श्रीनिवास के अनुसार,
“भारत में कुछ छोटी कंपनियां अब तक बिना पूरी लैब टेस्टिंग के सिरप बेचती रही हैं। यह बदलाव उपभोक्ताओं के लिए जीवनरक्षक साबित होगा और गुणवत्ता में बड़ा सुधार लाएगा।”
नए नियमों से उम्मीद
केंद्र का मानना है कि इन सख्त दिशानिर्देशों से न केवल घरेलू उपभोक्ताओं का विश्वास बढ़ेगा, बल्कि भारत की दवाओं को ‘सुरक्षित और विश्वसनीय’ ब्रांड के रूप में स्थापित करने में भी मदद मिलेगी। सरकार ने कहा है कि वह दवा उत्पादन से लेकर वितरण तक पूरी प्रक्रिया को डिजिटल ट्रैकिंग सिस्टम के दायरे में लाने के लिए प्रतिबद्ध है।
केंद्र सरकार का यह फैसला फार्मा इंडस्ट्री के लिए बड़ा बदलाव है — अब कोई भी कफ सिरप बिना सरकारी लैब जांच और ‘सर्टिफिकेट ऑफ एनालिसिस’ के बाजार में नहीं बेचा जा सकेगा। यह कदम न केवल जहरीली दवाओं से बचाव, बल्कि उपभोक्ता सुरक्षा और वैश्विक विश्वास की बहाली की दिशा में एक ठोस पहल है।



