
चित्तपुर (कर्नाटक): चित्तपुर तहसील प्रशासन ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के 19 अक्टूबर को प्रस्तावित विजयादशमी रूट मार्च और शताब्दी समारोह की अनुमति देने से इनकार कर दिया है। प्रशासन का यह कदम क्षेत्र में संभावित कानून-व्यवस्था की स्थिति को लेकर तैयार की गई एक पुलिस रिपोर्ट के बाद उठाया गया है। रिपोर्ट में इस आयोजन के दौरान विभिन्न समूहों के बीच टकराव की आशंका जताई गई थी।
पुलिस ने जताई गंभीर चिंता, एक ही दिन तीन संगठनों ने मांगी थी अनुमति
प्रशासन को सौंपी गई पुलिस रिपोर्ट के अनुसार, आरएसएस के अलावा भीम आर्मी और भारतीय दलित पैंथर (आर) संगठन ने भी 19 अक्टूबर को ही रूट मार्च निकालने की अनुमति मांगी थी। पुलिस खुफिया इकाई ने चेतावनी दी थी कि एक ही दिन और एक ही मार्ग पर इन तीनों संगठनों के जुलूस निकलने से टकराव की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया कि पिछले कुछ सप्ताहों में चित्तपुर क्षेत्र में सामाजिक और राजनीतिक तनाव बढ़ा है, खासकर उस घटना के बाद जिसमें एक कथित आरएसएस कार्यकर्ता पर जिले के प्रभारी मंत्री और चित्तपुर विधायक प्रियांक खड़गे को गाली देने और जान से मारने की धमकी देने का आरोप लगा था। इस घटना ने स्थानीय माहौल को और संवेदनशील बना दिया है।
इन सभी तथ्यों को देखते हुए, प्रशासनिक अधिकारियों ने निष्कर्ष निकाला कि आरएसएस के जुलूस की अनुमति देना कानून-व्यवस्था के लिए जोखिमभरा साबित हो सकता है। इसी आधार पर तहसीलदार और तालुक प्रशासन ने आरएसएस के रूट मार्च और विजयादशमी कार्यक्रम की अनुमति देने से इनकार कर दिया।
आरएसएस के झंडे-बैनर हटाए गए, भाजपा ने जताया विरोध
शनिवार को चित्तपुर तालुक क्षेत्र में आरएसएस के झंडे, बैनर और पोस्टर हटाए गए। स्थानीय प्रशासन के इस कदम ने तुरंत राजनीतिक रंग ले लिया। प्रदेश भाजपा ने इस कार्रवाई को लेकर राज्य सरकार और मंत्री प्रियांक खड़गे पर निशाना साधा। भाजपा नेताओं का आरोप है कि कांग्रेस सरकार “चयनात्मक कार्रवाई” कर रही है और राजनीतिक द्वेष के चलते आरएसएस की गतिविधियों को निशाना बना रही है।
भाजपा प्रवक्ताओं ने कहा कि आरएसएस का विजयादशमी उत्सव दशकों से पारंपरिक तरीके से मनाया जाता रहा है और इसे रोकना धार्मिक स्वतंत्रता और संगठनात्मक अधिकारों का उल्लंघन है। पार्टी ने यह भी कहा कि यदि प्रशासन को कानून-व्यवस्था की चिंता थी, तो वह परस्पर संवाद और सुरक्षा व्यवस्था के माध्यम से समस्या का समाधान निकाल सकता था, न कि कार्यक्रम पर पूरी तरह से रोक लगाई जाती।
प्रियांक खड़गे ने दी सफाई, कहा— अनुमति नहीं ली गई थी
वहीं राज्य के सूचना प्रौद्योगिकी और जैव प्रौद्योगिकी मंत्री प्रियांक खड़गे, जो चित्तपुर विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं, ने इस विवाद पर सफाई दी है।
उन्होंने कहा कि आरएसएस ने अपने कार्यक्रम के लिए औपचारिक अनुमति नहीं ली थी, और प्रशासन का कदम पूरी तरह कानूनी है। खड़गे ने आरोप लगाया कि आरएसएस की ओर से सार्वजनिक परिसरों और सरकारी संस्थानों में प्रचार सामग्री लगाई गई थी, जो कर्नाटक सरकारी सेवा नियमों और सार्वजनिक स्थल उपयोग अधिनियम का उल्लंघन है।
मंत्री ने हाल ही में मुख्यमंत्री सिद्धरमैया को पत्र लिखकर अनुरोध किया था कि सरकारी संस्थानों और परिसरों में आरएसएस की गतिविधियों पर स्पष्ट रोक लगाई जाए और सरकारी कर्मचारियों को इसमें भाग लेने से वर्जित किया जाए। उनका तर्क है कि सरकारी दायरे में किसी वैचारिक संगठन को जगह देना शासन की निष्पक्षता के विरुद्ध है।
राज्य सरकार ने कहा— सुरक्षा सर्वोपरि
कर्नाटक गृह विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि प्रशासनिक निर्णय पूरी तरह सुरक्षा मूल्यांकन पर आधारित था। उन्होंने कहा, “किसी भी संगठन को अनुमति देने या न देने का निर्णय स्थानीय पुलिस और खुफिया रिपोर्टों पर निर्भर करता है। अगर किसी भी स्तर पर हिंसा या सार्वजनिक शांति भंग होने की संभावना जताई जाती है, तो प्रशासन का दायित्व है कि वह एहतियात बरते।”
अधिकारियों के मुताबिक, प्रशासन का उद्देश्य किसी संगठन को निशाना बनाना नहीं बल्कि सार्वजनिक सुरक्षा बनाए रखना है। वहीं चित्तपुर में हाल के महीनों में कई बार सामाजिक मुद्दों को लेकर तनाव देखा गया है, ऐसे में प्रशासन ने संतुलित निर्णय लेने की बात कही है।
आरएसएस की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा
हालांकि आरएसएस की ओर से इस पर कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं दी गई है, लेकिन सूत्रों के मुताबिक संगठन के स्थानीय पदाधिकारी इस आदेश की समीक्षा कर रहे हैं और आगे की रणनीति पर विचार कर रहे हैं। संभावना जताई जा रही है कि संघ प्रशासनिक निर्णय को लेकर कानूनी विकल्पों पर भी विचार कर सकता है।
राजनीतिक सरगर्मी तेज
चित्तपुर की यह घटना अब राज्य की राजनीति में नया विमर्श बन चुकी है। भाजपा इसे “विचारधारा पर हमला” बता रही है, जबकि कांग्रेस इसे “कानून-व्यवस्था की अनिवार्यता” के रूप में पेश कर रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि प्रियांक खड़गे पहले भी आरएसएस की विचारधारा पर खुलकर बयान देते रहे हैं, और इस ताज़ा घटनाक्रम ने उन्हें एक बार फिर राजनीतिक केंद्र में ला दिया है।
चित्तपुर में आरएसएस के विजयादशमी रूट मार्च पर रोक ने कर्नाटक की राजनीति में नई हलचल पैदा कर दी है।
जहां एक ओर प्रशासन इसे सुरक्षा आधारित कदम बता रहा है, वहीं विपक्ष इसे राजनीतिक बदले की भावना से जोड़ रहा है। राज्य में आगामी नगरपालिका और पंचायत चुनावों से पहले यह विवाद न केवल राजनीतिक विमर्श का मुद्दा बनेगा, बल्कि सामाजिक सौहार्द और प्रशासनिक संतुलन की परीक्षा भी लेगा।