
रुद्रप्रयाग, 18 अक्टूबर | उत्तराखंड के पवित्र केदारनाथ धाम से इस वर्ष की शीतकालीन प्रक्रिया की शुरुआत हो गई है। भगवान केदारनाथ के संरक्षक देवता भकुंट भैरवनाथ जी के कपाट शुक्रवार को दोपहर 1:15 बजे विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना के बाद बंद कर दिए गए। इसी के साथ यह संकेत भी मिल गया है कि अब केदारनाथ धाम के कपाट बंद होने में कुछ ही दिन शेष हैं।
श्री केदारनाथ धाम के कपाट आगामी 23 अक्टूबर 2025 को शीतकाल के लिए बंद किए जाएंगे। इसके बाद भगवान केदारनाथ की पंचमुखी डोली पारंपरिक डोली यात्रा के माध्यम से शीतकालीन गद्दी स्थल ओंकारेश्वर मंदिर, ऊखीमठ की ओर प्रस्थान करेगी।
भैरवनाथ जी के कपाट बंद — शीतकालीन यात्रा की तैयारियां शुरू
आज प्रातः से ही केदारनाथ धाम में श्रद्धालुओं की भीड़ देखने को मिली। इस अवसर पर भैरवनाथ मंदिर परिसर में विशेष पूजा-अर्चना आयोजित की गई।
पूजा के बाद श्री बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति (बीकेटीसी) के मुख्य कार्याधिकारी, केदारनाथ सभा के सदस्य, पंच-पंडा समिति, और तीर्थ पुरोहितों ने मिलकर भैरवनाथ जी के कपाट बंद करने की पारंपरिक रस्म निभाई।
कपाट बंद करने की प्रक्रिया के दौरान मंत्रोच्चारण, ढोल-नगाड़ों की ध्वनि, और जय केदार के उद्घोष से पूरा क्षेत्र गूंज उठा। स्थानीय निवासी और तीर्थयात्री इस अद्भुत दृश्य के साक्षी बने।
पंचमुखी डोली की पूजा-अर्चना 22 अक्टूबर से
भैरवनाथ जी के कपाट बंद होने के साथ ही अब श्री केदारनाथ धाम की पंचमुखी डोली यात्रा की तैयारियां शुरू हो गई हैं।
मंदिर समिति के अनुसार, 22 अक्टूबर को पंचमुखी डोली की विशेष पूजा-अर्चना की जाएगी। अगले दिन यानी 23 अक्टूबर की सुबह शुभ मुहूर्त में केदारनाथ धाम के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए जाएंगे।
उसके बाद बाबा केदार की पंचमुखी डोली पारंपरिक मार्ग से होते हुए गुप्तकाशी, विजयनगर और फाटा होते हुए अपने शीतकालीन प्रवास स्थल ऊखीमठ पहुंचेगी, जहां अगले छह महीने तक भगवान केदारनाथ की पूजा-अर्चना की जाएगी।
भैरवनाथ: केदारनाथ धाम के ‘संरक्षक देवता’
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब केदारनाथ धाम के कपाट शीतकाल में बंद हो जाते हैं, तब भगवान भैरवनाथ जी ही इस पवित्र तीर्थ की संरक्षा और देखरेख करते हैं।
माना जाता है कि भैरवनाथ जी को ‘धाम का रक्षक देवता’ कहा जाता है, और उनके मंदिर की परिक्रमा करने से भक्तों को विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।
स्थानीय परंपराओं के अनुसार, भैरवनाथ जी के कपाट बंद होने से पहले बाबा केदार को इसकी सूचना दी जाती है और अनुमति प्राप्त करने के बाद ही यह रस्म संपन्न होती है।
श्रद्धालुओं में आस्था और भावनाओं का संगम
शुक्रवार सुबह से ही केदारनाथ घाटी में भक्तों की भीड़ उमड़ने लगी थी। देश के विभिन्न हिस्सों से आए श्रद्धालुओं ने इस अद्भुत क्षण का साक्षी बनने के लिए मंदिर परिसर में उपस्थिति दर्ज की।
दिल्ली से आई श्रद्धालु रीता वर्मा ने कहा,
“यह हमारा सौभाग्य है कि बाबा केदार के दर्शन के साथ-साथ हमने भैरवनाथ जी की अंतिम पूजा भी देखी। यह अनुभव जीवन भर नहीं भूलेंगे।”
वहीं महाराष्ट्र से आए तीर्थयात्री अमोल पाटिल ने कहा,
“यहां की आस्था और वातावरण इतना पवित्र है कि मन आत्मिक शांति से भर जाता है। अब अगले वर्ष कपाट खुलने का इंतजार रहेगा।”
भव्य समापन, प्रशासनिक तैयारी पूरी
कपाट बंद होने से पूर्व प्रशासन की ओर से विशेष सुरक्षा और प्रबंधन की व्यवस्था की गई।
जिलाधिकारी मयूर दीक्षित ने बताया कि
“तीर्थयात्रा के समापन चरण में तीर्थयात्रियों की सुरक्षा सर्वोपरि है। धाम में मौसम की स्थिति पर भी सतत निगरानी रखी जा रही है।”
मंदिर समिति के अध्यक्ष अजेंद्र अजय ने जानकारी दी कि
“इस वर्ष लाखों श्रद्धालुओं ने बाबा केदार के दर्शन किए। अब कपाट बंद होने के बाद शीतकालीन पूजा ओंकारेश्वर मंदिर में होगी।”
उन्होंने यह भी बताया कि कपाट बंदी के बाद मंदिर परिसर में सुरक्षा, रखरखाव और बर्फ से संरक्षण की व्यवस्था मंदिर समिति द्वारा की जाती है।
इस वर्ष रिकॉर्ड तीर्थयात्री पहुंचे केदारनाथ
चारधाम यात्रा 2025 के दौरान केदारनाथ धाम में इस बार तीर्थयात्रियों की ऐतिहासिक संख्या दर्ज की गई।
उत्तराखंड पर्यटन विभाग के आंकड़ों के अनुसार, इस वर्ष अब तक 20 लाख से अधिक श्रद्धालु बाबा केदार के दर्शन के लिए पहुंचे।
मौसम की चुनौतियों और ऊँचाई के बावजूद यात्रियों का उत्साह पूरे सीजन में बना रहा।
राज्य सरकार और प्रशासन की बेहतर व्यवस्थाओं की वजह से इस बार यात्रा अपेक्षाकृत सुचारु रही।
आस्था, परंपरा और प्रकृति का संगम
केदारनाथ धाम की कपाट बंदी केवल धार्मिक रस्म नहीं, बल्कि हिमालयी संस्कृति की गहराई और लोक परंपरा का प्रतीक मानी जाती है।
जब बर्फ से ढकी चोटियाँ बाबा केदार की नगरी को सफेद चादर से ढक देती हैं, तब पूरे उत्तराखंड में शीतकालीन पूजा पर्व की शुरुआत होती है।
स्थानीय लोकगायक गोपाल नेगी कहते हैं,
“यह केवल कपाट बंद करने की प्रक्रिया नहीं, बल्कि प्रकृति के साथ तालमेल का संदेश है। जब प्रकृति विश्राम करती है, तब देवता भी शीतकालीन प्रवास पर चले जाते हैं।”
अगले वर्ष कपाट खुलने तक जारी रहेगी आस्था
अब बाबा केदार की पंचमुखी डोली ऊखीमठ में विराजमान होगी और शीतकालीन अवधि के दौरान वहीं पूजा-अर्चना होगी। अगले वर्ष अप्रैल-मई में अक्षय तृतीया के अवसर पर केदारनाथ धाम के कपाट फिर से श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खोले जाएंगे।
इस बीच, भक्तों की श्रद्धा, विश्वास और आस्था का यह प्रवाह निरंतर जारी रहेगा — क्योंकि हिमालय की ऊँचाइयों में विराजमान बाबा केदार केवल देवता नहीं, बल्कि अमर भक्ति और आध्यात्मिक शक्ति के प्रतीक हैं।