उत्तराखंडफीचर्ड

उत्तराखंड: बदरीनाथ के पास कुबेर पर्वत से टूटा विशाल ग्लेशियर, मची अफरा-तफरी — प्रशासन अलर्ट पर

चमोली (उत्तराखंड), 17 अक्टूबर 2025। उत्तराखंड के चमोली ज़िले से इस वक्त की बड़ी ख़बर सामने आई है। बदरीनाथ धाम के पास कुबेर पर्वत क्षेत्र में एक बड़ा ग्लेशियर टूटने की घटना हुई है। यह हिमखंड कंचनगंगा नाले में गिरा, जिससे आसपास के क्षेत्रों में अचानक पानी का बहाव तेज़ हो गया और स्थानीय लोगों में अफरा-तफरी का माहौल बन गया।

हालांकि राहत की बात यह है कि अब तक किसी तरह की जनहानि या संपत्ति को नुकसान की कोई सूचना नहीं है। स्थानीय प्रशासन, पुलिस और आपदा प्रबंधन विभाग (SDRF एवं जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण) की टीमें मौके पर सतर्क हैं और स्थिति पर लगातार नज़र बनाए हुए हैं।


घटना का विवरण: सुबह सुनी गई तेज़ गर्जना

जानकारी के अनुसार, शुक्रवार सुबह बदरीनाथ धाम से कुछ किलोमीटर ऊपर कुबेर भंडार ग्लेशियर का एक हिस्सा टूटकर नीचे आया। ग्लेशियर का यह भाग कंचनगंगा नाले के ऊपरी हिस्से तक पहुंचा, जिससे नाले में अचानक पानी और बर्फ का प्रवाह बढ़ गया।

स्थानीय लोगों के मुताबिक, घटना के समय इलाके में तेज़ गर्जना जैसी आवाज़ सुनाई दी, जिससे आसपास मौजूद ग्रामीणों और श्रद्धालुओं में हलचल मच गई। कुछ तीर्थयात्रियों ने बताया कि उन्होंने ऊंची चोटियों से बर्फ के तेजी से नीचे गिरते हुए दृश्य देखे, जो देखने में बेहद भयावह लेकिन रोमांचक थे।


अधिकारी बोले — यह प्राकृतिक प्रक्रिया, घबराने की जरूरत नहीं

जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी (DDMO) नंद किशोर जोशी ने बताया कि यह हिमस्खलन बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग से कई सौ मीटर ऊपर ही रुक गया और नीचे के क्षेत्र तक इसका कोई प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं पहुंचा।

उन्होंने कहा,

“यह इस क्षेत्र में समय-समय पर होने वाली एक सामान्य प्राकृतिक घटना है। ऊपरी हिमालयी इलाकों में तापमान के उतार-चढ़ाव और ग्लेशियरों के पिघलने से इस तरह के हिमस्खलन होते रहते हैं। फिलहाल किसी भी प्रकार की जनहानि या ढांचागत नुकसान की कोई सूचना नहीं है।”

उन्होंने यह भी बताया कि बदरीनाथ मार्ग और आसपास के सभी क्षेत्र सुरक्षित हैं, और तीर्थयात्रा सुचारू रूप से जारी है।


स्थानीय लोग बोले — ‘तेज़ आवाज़ के साथ नीचे आया बर्फ का सैलाब’

माणा गांव के पूर्व प्रधान पिताम्बर सिंह मोल्फा ने बताया कि सुबह के समय अचानक तेज़ आवाज़ सुनाई दी। उन्होंने कहा,

“हमने देखा कि कुबेर भंडार ग्लेशियर का एक हिस्सा तेज़ गर्जना के साथ नीचे की ओर फिसल आया। यह दृश्य डराने वाला जरूर था, लेकिन इस क्षेत्र में इस तरह के हिमस्खलन सामान्य हैं। पहले भी कई बार ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं।”

उन्होंने बताया कि कंचनगंगा क्षेत्र में ग्लेशियर के टूटने या पिघलने की घटनाएं मौसम में बदलाव के दौरान होती रहती हैं। “कई बार यात्री इन घटनाओं को देखकर घबरा जाते हैं, जबकि यहां के स्थानीय लोग इन्हें प्राकृतिक चक्र का हिस्सा मानते हैं,” मोल्फा ने कहा।


ग्लेशियर के टूटने के पीछे मौसम में बदलाव मुख्य कारण

विशेषज्ञों के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में हिमालयी क्षेत्रों में तापमान में तेज़ वृद्धि और जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियरों की स्थिरता पर प्रभाव पड़ा है। अक्टूबर माह में दिन और रात के तापमान में बढ़ते अंतर के चलते ग्लेशियरों के ऊपरी हिस्सों में दरारें बनती हैं, जो बाद में टूटकर नीचे गिरती हैं।

ग्लेशियोलॉजी विशेषज्ञ बताते हैं कि कुबेर भंडार और कंचनगंगा नाले का इलाका अत्यधिक संवेदनशील है और यहां मौसमी हिमस्खलन (Seasonal Avalanches) आम बात है। हालांकि, मौसम विभाग और प्रशासनिक एजेंसियां लगातार इस क्षेत्र की निगरानी कर रही हैं।


प्रशासन की तत्परता: SDRF और जिला टीमें अलर्ट पर

घटना की सूचना मिलते ही जिला प्रशासन और SDRF की टीमें सक्रिय हो गईं। बदरीनाथ और माणा क्षेत्र में तैनात आपदा प्रबंधन दलों को अलर्ट पर रखा गया है।

एसडीएम बदरीनाथ ने बताया कि “सभी स्थानीय गाइड्स और यात्रियों को सुरक्षा के मानकों के पालन के निर्देश दिए गए हैं। नाले के किनारे और ऊपरी क्षेत्रों में जाने पर फिलहाल सावधानी बरतने की सलाह दी गई है।”

प्रशासन ने कहा कि स्थिति पूरी तरह नियंत्रण में है और किसी भी प्रकार की घबराहट फैलाने की आवश्यकता नहीं है। सभी आवश्यक राहत एवं बचाव संसाधन तैयार रखे गए हैं।


बदरीनाथ यात्रा पर नहीं पड़ा कोई असर

बदरीनाथ धाम आने वाले तीर्थयात्रियों के लिए भी राहत की खबर है। प्रशासन ने स्पष्ट किया है कि घटना स्थल धाम से काफी ऊपर स्थित है और वहां की यात्रा व्यवस्था पूरी तरह सुरक्षित है।

स्थानीय पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी लगातार स्थिति की मॉनिटरिंग कर रहे हैं ताकि किसी आपात स्थिति में तुरंत प्रतिक्रिया दी जा सके।


स्थानीय चेतावनी और भविष्य की तैयारी

इस घटना के बाद प्रशासन ने कंचनगंगा और कुबेर भंडार क्षेत्र को संवेदनशील ज़ोन के रूप में चिह्नित कर नियमित निरीक्षण की प्रक्रिया तेज़ कर दी है।

जिला प्रशासन ने कहा कि “भविष्य में इस क्षेत्र में सैटेलाइट आधारित सर्वेक्षण और ड्रोन मॉनिटरिंग” के माध्यम से ग्लेशियर गतिविधियों की निगरानी की जाएगी ताकि किसी भी आपदा से पहले अलर्ट जारी किया जा सके।


 पहाड़ों में प्रकृति की चेतावनी, पर फिलहाल सब सुरक्षित

उत्तराखंड के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में ग्लेशियरों की गतिविधियां प्रकृति की चेतावनी के समान हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह हमें जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक संसाधनों के संतुलित उपयोग की ओर ध्यान दिलाने वाला संकेत है।

फिलहाल राहत की बात यह है कि चमोली जिले में ग्लेशियर टूटने की यह घटना किसी बड़े नुकसान के बिना समाप्त हुई, और प्रशासन की तत्परता से स्थिति पूरी तरह नियंत्रण में है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button