
नई दिल्ली, 16 अक्टूबर 2025 (विशेष संवाददाता): सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को बिहार SIR (Special Investigation Report) मामले की सुनवाई हुई, लेकिन इस बार अदालत के माहौल में वह गहमागहमी नहीं दिखी जो पिछले कई हफ्तों से इस मामले में देखने को मिल रही थी।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जायमोल्या बागची की पीठ के समक्ष हुई इस सुनवाई में न तो वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल मौजूद रहे, न ही अभिषेक मनु सिंघवी या योगेंद्र यादव जैसे प्रमुख चेहरे कोर्ट में दिखे।
कोर्टरूम में इस बार असामान्य सन्नाटा
सुनवाई दोपहर 12:50 बजे शुरू होकर लगभग 1:30 बजे तक चली। लेकिन कोर्टरूम नंबर दो में सामान्य से अलग माहौल था — न तो पहले की तरह कानूनी दलीलों की तीखी अदला-बदली हुई और न ही पक्षकारों के बीच लंबी बहसें चलीं।
इससे पहले की सुनवाईयों में अदालत में काफी हलचल रहती थी, जब वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी, बिहार सरकार और अन्य पक्षों की ओर से प्रभावी दलीलें रखते रहे थे।
लेकिन इस बार दोनों दिग्गज वकीलों की अनुपस्थिति के चलते सुनवाई अपेक्षाकृत शांत माहौल में संपन्न हुई।
प्रशांत भूषण ने उठाए चुनाव आयोग पर सवाल
सुनवाई की शुरुआत में वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने चुनाव आयोग की भूमिका पर सवाल उठाए।
उन्होंने आरोप लगाया कि आयोग ने बिहार में हुए हालिया घटनाक्रमों पर अदालत को पूरी और सटीक जानकारी नहीं दी है।
भूषण ने दलील दी कि राज्य में चुनाव संबंधी पारदर्शिता, प्रशासनिक निर्णयों और जांच रिपोर्टों की विश्वसनीयता को लेकर गंभीर प्रश्न उठे हैं, जिन पर अदालत का ध्यान आवश्यक है।
उन्होंने कहा कि यदि आयोग खुद निष्पक्ष जांच नहीं कर पाता, तो सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में स्वतंत्र मॉनिटरिंग की व्यवस्था करनी चाहिए।
चुनाव आयोग की ओर से पलटवार
वहीं, चुनाव आयोग की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने इन आरोपों को “आधारहीन और भ्रामक” बताया। द्विवेदी ने अदालत में कहा कि याचिकाकर्ताओं ने आयोग को लेकर जो डेटा प्रस्तुत किया है, वह “आधा सच” है और कई जगह “भ्रामक आंकड़ों” के आधार पर अदालत को गुमराह करने की कोशिश की गई है।”
उन्होंने कहा कि आयोग ने अपने स्तर पर पूरी पारदर्शिता और विधिक प्रक्रियाओं के अनुरूप ही कार्य किया है।
उनके अनुसार, “यह कहना गलत होगा कि आयोग किसी दबाव में काम कर रहा है या रिपोर्ट में हेरफेर की गई है। सभी तथ्यों को विधिक प्रक्रिया के तहत अदालत के समक्ष रखा गया है।”
गैरमौजूद रहे राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि
इस सुनवाई की एक और दिलचस्प बात रही — किसी भी राजनीतिक दल की ओर से कोई प्रमुख वकील कोर्ट में मौजूद नहीं था। अक्सर इस केस से जुड़े नेताओं की याचिकाओं पर वरिष्ठ वकीलों की मौजूदगी रहती थी, लेकिन इस बार लगभग पूरा कोर्टरूम “नॉन-पॉलिटिकल” नजर आया। सुनवाई के दौरान कुछ मिनटों तक अदालत में तकनीकी पक्षों पर चर्चा हुई, लेकिन राजनीतिक या प्रशासनिक हस्तक्षेप पर कोई नई दलील पेश नहीं की गई।
पिछली सुनवाईयों में रही थी तीखी बहसें
गौरतलब है कि पिछले कुछ हफ्तों से बिहार SIR मामले की सुनवाई राजनीतिक रूप से भी अत्यधिक संवेदनशील मानी जा रही थी। कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, और प्रशांत भूषण जैसे वरिष्ठ अधिवक्ता इसमें सक्रिय भूमिका निभा रहे थे। इस दौरान अदालत में कई बार तीखी बहसें देखने को मिली थीं — कभी चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर तो कभी राज्य सरकार के फैसलों पर। इस बार का माहौल बिल्कुल विपरीत रहा।
अदालत में न कोई भावनात्मक अपील सुनाई दी, न ही कोई राजनीतिक बयानबाज़ी।
अगली सुनवाई की उम्मीदें
सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल इस मामले में कुछ तकनीकी पक्षों की रिपोर्ट तलब की है। संभावना है कि अगली सुनवाई में फिर से वरिष्ठ वकीलों की सक्रिय भागीदारी देखने को मिले। अदालत ने यह भी संकेत दिया कि आगे की सुनवाई में यदि आवश्यक हुआ तो आयोग और राज्य प्रशासन दोनों से विस्तृत हलफनामा मांगा जा सकता है।
शांत कोर्टरूम, लेकिन बड़ा संकेत
आज की सुनवाई का स्वरूप भले ही शांत रहा हो, लेकिन कानूनी हलकों में इसे एक “रणनीतिक ठहराव” के रूप में देखा जा रहा है। कई जानकारों का मानना है कि वरिष्ठ वकीलों की अनुपस्थिति इस बात का संकेत हो सकती है कि मामला अब तकनीकी चरण में प्रवेश कर चुका है, जहाँ अगली बहसें रिपोर्ट्स और डेटा पर केंद्रित रहेंगी।
राजनीतिक दृष्टि से, यह भी माना जा रहा है कि आने वाले हफ्तों में जब मामला अपने निर्णायक दौर में पहुँचेगा, तब बड़े नाम एक बार फिर अदालत में लौट सकते हैं।