
नई दिल्ली, 14 अक्टूबर 2025 — तमिलनाडु स्टेट मार्केटिंग कॉर्पोरेशन (TASMAC) में कथित भ्रष्टाचार के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) की जांच पर अस्थायी रोक लगा दी है। अदालत ने साफ किया कि यह रोक तब तक जारी रहेगी, जब तक अदालत मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (PMLA) के तहत ईडी के अधिकारों को लेकर दायर पुनर्विचार याचिका पर अपना अंतिम फैसला नहीं दे देती।
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बी. आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि जब तक विजय मदनलाल चौधरी बनाम भारत सरकार केस पर पुनर्विचार याचिका लंबित है, तब तक ईडी किसी भी नए कदम से परहेज़ करे।
“मुझे नहीं पता कि पुनर्विचार याचिका पर फैसला कब होगा। पिछले तीन सालों से सुन रहा हूं कि वह पीठ इसकी सुनवाई करेगी,” — मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई।
तमिलनाडु सरकार की दलीलें और कपिल सिब्बल की टिप्पणी
सुनवाई के दौरान तमिलनाडु सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि,
“एक बार चुनाव हो जाने के बाद, इस मामले में किसी की दिलचस्पी नहीं रह जाएगी।”
उनकी इस टिप्पणी पर मुख्य न्यायाधीश ने प्रतिक्रिया देने से इनकार करते हुए कहा,
“मैं कुछ नहीं कहना चाहता।”
इस पर सॉलिसिटर जनरल एस. वी. राजू ने तुरंत कहा,
“यह पहले ही बताया जा चुका है कि माई लॉर्ड कुछ नहीं कहेंगे।”
जिस पर सिब्बल ने तीखे अंदाज़ में जवाब दिया —
“यह अच्छी बात है, क्योंकि जो नहीं कहा जाता, वह बहुत कुछ कह देता है।”
सुनवाई के दौरान अदालत ने यह भी संकेत दिया कि केंद्र और ईडी को विजय मदनलाल केस से जुड़े पुनर्विचार में जल्द स्पष्टता लानी चाहिए, ताकि जांच एजेंसियों के अधिकार क्षेत्र पर बनी असमंजस की स्थिति समाप्त हो सके।
क्या है TASMAC और विवाद की जड़
TASMAC (Tamil Nadu State Marketing Corporation) तमिलनाडु सरकार के स्वामित्व वाली वह एजेंसी है, जो राज्य में मद्य (शराब) की बिक्री और वितरण को नियंत्रित करती है।
मार्च 2025 में, ईडी ने TASMAC के मुख्यालय और कई ज़िलों में छापेमारी की थी। यह कार्रवाई 6 से 8 मार्च के बीच की गई थी।
ईडी की ओर से यह आरोप लगाया गया कि
- TASMAC के वरिष्ठ अधिकारियों ने शराब की बोतलों की कीमतों में हेराफेरी की।
- निविदाओं (tenders) में अनियमितताएं की गईं।
- और अधिकारियों ने रिश्वत लेकर निजी कंपनियों को अनुचित लाभ पहुंचाया।
जांच में सामने आया कि यह पूरा घोटाला ₹1,000 करोड़ से अधिक की वित्तीय अनियमितताओं से जुड़ा हो सकता है।
ईडी ने दावा किया था कि इन अवैध गतिविधियों के पीछे राजनीतिक संरक्षण की भी संभावना है।
सुप्रीम कोर्ट की चिंता — जांच एजेंसियों की सीमाएं
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला केवल TASMAC मामले तक सीमित नहीं है। अदालत का यह कदम ईडी के अधिकारों की वैधानिकता और कानूनी सीमाओं को लेकर चल रही बड़ी बहस से भी जुड़ा है।
दरअसल, 2022 में आए विजय मदनलाल चौधरी केस में सुप्रीम कोर्ट ने ईडी की गिरफ्तारी, तलाशी और जब्ती की शक्तियों को संवैधानिक करार दिया था। लेकिन इस फैसले के खिलाफ कई पुनर्विचार याचिकाएं दायर की गईं, जिनमें कहा गया कि यह फैसला नागरिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
अब वही याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट की बड़ी पीठ के समक्ष लंबित हैं। अदालत ने स्पष्ट किया है कि जब तक इन याचिकाओं पर अंतिम निर्णय नहीं आ जाता, ईडी को अपने अधिकारों का प्रयोग “संतुलित और सीमित” तरीके से करना होगा।
कपिल सिब्बल बनाम केंद्र सरकार — राजनीतिक पृष्ठभूमि भी गर्म
TASMAC मामले में सुनवाई के दौरान राजनीतिक तापमान भी देखने को मिला।
वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने अप्रत्यक्ष रूप से केंद्र सरकार पर यह संकेत दिया कि जांच एजेंसियों का दुरुपयोग राजनीतिक उद्देश्यों के लिए किया जा रहा है।
हालांकि सॉलिसिटर जनरल एस. वी. राजू ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि ईडी “कानून के तहत और सबूतों के आधार पर” ही कार्रवाई करती है।
अदालत ने दोनों पक्षों को शांत स्वर में बहस करने की सलाह दी और कहा कि यह मुद्दा अब “सिर्फ एक राज्य का नहीं, बल्कि पूरे देश की जांच प्रणाली की विश्वसनीयता” से जुड़ा है।
राजनीतिक और कानूनी प्रभाव
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय ईडी की कई चल रही जांचों पर अप्रत्यक्ष असर डाल सकता है। PMLA से जुड़ी सभी उन जांचों पर प्रश्नचिह्न लग सकता है, जिनमें एजेंसी ने विजय मदनलाल फैसले का हवाला देते हुए कार्रवाई की है।
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यदि पुनर्विचार याचिका में कोर्ट ने ईडी के अधिकार सीमित किए, तो
- गिरफ्तारी और संपत्ति जब्ती की प्रक्रिया में बदलाव आ सकता है।
- और राज्य सरकारों बनाम केंद्र की शक्तियों के संतुलन पर भी असर पड़ेगा।
TASMAC प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला फिलहाल तमिलनाडु सरकार के लिए राहत भरा है, लेकिन यह ईडी के अधिकारों और जवाबदेही की दिशा में एक बड़ा सवाल भी खड़ा करता है। जब तक विजय मदनलाल केस पर अंतिम फैसला नहीं आ जाता, ईडी की जांच एजेंसियों के लिए यह एक कानूनी ठहराव का दौर रहेगा।
अदालत के शब्दों में —
“जांच एजेंसियों की शक्ति असीमित नहीं हो सकती; कानून में संतुलन ही लोकतंत्र की असली आत्मा है।”