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“बच्चों की जान गई, सिस्टम सोता रहा: कफ सिरप कांड में फैक्ट्री सील होने के बाद सामने आया सच”

मध्य प्रदेश में जहरीली कफ सिरप से 20 से ज्यादा बच्चों की मौत, तमिलनाडु की कंपनी वर्षों से बना रही थी दवा, केंद्र को जानकारी तक नहीं थी

नई दिल्ली। मध्य प्रदेश के कई जिलों में पिछले दिनों बच्चों की मौत के बाद मचा हड़कंप अब देशभर में दवा निर्माण प्रणाली की पोल खोल रहा है। जिस जहरीली कफ सिरप के सेवन से अब तक 20 से अधिक बच्चों की जान चली गई, उसकी निर्माता कंपनी का नाम तक केंद्र सरकार को पता नहीं था। और सबसे हैरानी की बात — यह कंपनी पिछले एक दशक से अधिक समय से दवा का निर्माण कर रही थी।

मामला तब सामने आया जब जांच दल ने तमिलनाडु में स्थित उस फैक्ट्री को सील किया, जहां से यह जहरीली सिरप देश के कई राज्यों में भेजी जा रही थी। फैक्ट्री सील होने के बाद जब दस्तावेजों की जांच की गई, तो सामने आया कि “श्री सन फार्मा” नाम की कंपनी का रिकॉर्ड केंद्र के औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) के पास मौजूद ही नहीं है। यानी, यह कंपनी सिस्टम के बाहर रहकर सालों तक उत्पादन और सप्लाई करती रही।


फैक्ट्री सील होने के बाद खुला राज

जांच से जुड़े सूत्रों के अनुसार, शुरूआती चरण में जब बच्चों की मौत के मामले की जांच की गई, तो किसी जहरीले रसायन की पुष्टि नहीं हो सकी थी। मौतों के पीछे किसी स्थानीय संक्रमण या पानी की अशुद्धता जैसी वजहें मानी जा रही थीं। लेकिन जब सैंपल दिल्ली की प्रयोगशाला में भेजे गए और रिपोर्ट आई, तब पाया गया कि सिरप में डाईएथिलीन ग्लाइकॉल (Diethylene Glycol) और एथिलीन ग्लाइकॉल (Ethylene Glycol) जैसे खतरनाक रसायनों की मात्रा अत्यधिक थी — वही रसायन, जिनके कारण इससे पहले गाम्बिया और उज्बेकिस्तान में भारतीय सिरप से मौतें हुई थीं।

इसके बाद जांच का दायरा बढ़ाया गया और टीम सीधे तमिलनाडु के कांचीपुरम जिले में पहुंची, जहां उक्त कंपनी का उत्पादन केंद्र था। जैसे ही जांच शुरू हुई, राज्य औषधि विभाग ने फैक्ट्री को सील कर दिया और उत्पादन पर तत्काल रोक लगा दी। यहीं से कंपनी की फाइलें जब्त की गईं और जब वे नई दिल्ली स्थित एफडीए भवन पहुंचीं, तो चौंकाने वाला तथ्य सामने आया — कंपनी का नाम किसी सरकारी रजिस्टर में दर्ज ही नहीं था।


एक दशक से बेखौफ चल रहा था उत्पादन

दस्तावेजों से पता चला कि कंपनी को 2011 में तमिलनाडु सरकार ने उत्पादन लाइसेंस दिया था और 2016 में उसका नवीनीकरण भी किया गया। लेकिन राज्य सरकार ने यह जानकारी केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) को कभी नहीं भेजी।
इसका मतलब यह हुआ कि कंपनी बिना किसी केंद्रीय निगरानी के पिछले दस से बारह वर्षों से न केवल उत्पादन कर रही थी, बल्कि अपनी दवाएं देश के कई राज्यों—जैसे पांडिचेरी, ओडिशा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान—में सप्लाई भी कर रही थी।

सीडीएससीओ से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा,

“2011 में लाइसेंस राज्य स्तर पर जारी हुआ था। उस समय नियम ऐसे थे कि राज्यों को लाइसेंस की जानकारी केंद्र को भेजना अनिवार्य नहीं था। 2017 में जब नई नीति बनी, तब से संयुक्त निरीक्षण और सूचना साझा करना जरूरी कर दिया गया। लेकिन पुराने लाइसेंस धारक इस व्यवस्था से बाहर रह गए।”


सिस्टम की बड़ी खामी सामने आई

इस घटना ने देश के दवा निगरानी तंत्र (Drug Regulatory System) की गंभीर खामियों को उजागर कर दिया है। भारत में दवाओं के निर्माण और बिक्री की निगरानी की जिम्मेदारी केंद्र और राज्यों के बीच बंटी हुई है। 2017 से पहले राज्य सरकारें अपने स्तर पर ही लाइसेंस जारी कर देती थीं, और केंद्र को इसकी जानकारी भेजना उनकी जिम्मेदारी नहीं थी।

नियम बदलने के बाद तय किया गया कि अब राज्य और केंद्र मिलकर निरीक्षण करेंगे और फिर लाइसेंस जारी होगा। लेकिन तमिलनाडु की यह कंपनी पुराने कानून के तहत काम कर रही थी। यही वजह रही कि वह नए डिजिटल मॉनिटरिंग सिस्टम (SUGAM Portal) में कभी दर्ज नहीं हुई।

एक अधिकारी के अनुसार,

“राज्यों से हर वर्ष डेटा मिलने की व्यवस्था बनाई गई थी, लेकिन कई राज्यों ने पुरानी कंपनियों के रिकॉर्ड कभी अपडेट नहीं किए। इससे कई कंपनियां सिस्टम से बाहर रह गईं, जो अब खतरे का कारण बन रही हैं।”


कंपनी का नेटवर्क और बिक्री

जांच रिपोर्ट में सामने आया है कि कंपनी अपनी कफ सिरप और अन्य ओटीसी (Over the Counter) दवाओं को ‘डिस्ट्रिब्यूटर चैनल’ के माध्यम से छोटे राज्यों तक पहुंचाती थी। इन दवाओं को कई जगहों पर डॉक्टर की पर्ची के बिना सीधे मेडिकल स्टोर्स से बेचा जा रहा था।

कुछ राज्यों में स्वास्थ्य विभागों ने इस सिरप की बिक्री पर अस्थायी रोक लगा दी है, जबकि केंद्र सरकार ने सभी राज्यों से इस ब्रांड के सैंपल लेने के निर्देश दिए हैं।

मध्य प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि

“हमने सभी जिलों से इस दवा के सैंपल मंगाए हैं। प्रारंभिक जांच में जहरीले रसायन की पुष्टि हुई है। संबंधित कंपनी और उसके एजेंट्स पर एफआईआर दर्ज करने की प्रक्रिया शुरू की जा चुकी है।”


अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चिंता

यह पहला मौका नहीं है जब किसी भारतीय दवा कंपनी की सिरप में जहरीले तत्व पाए गए हों। पिछले दो वर्षों में गाम्बिया, उज्बेकिस्तान और कैमरून में भी भारतीय सिरप से बच्चों की मौत की घटनाएं सामने आ चुकी हैं। उन मामलों में भी “डाईएथिलीन ग्लाइकॉल” जैसे रसायन मुख्य कारण पाए गए थे।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने तब भारत से सख्त निगरानी व्यवस्था अपनाने की सिफारिश की थी। लेकिन मौजूदा कांड दिखाता है कि राज्य स्तर की ढिलाई अब भी बनी हुई है।


केंद्र ने मांगी रिपोर्ट, सख्त कार्रवाई की तैयारी

घटना के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने तमिलनाडु सरकार से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है और कंपनी के सभी उत्पादों की जांच के आदेश दिए हैं।
केंद्र सरकार अब यह भी जांच कर रही है कि आखिर कैसे इतने सालों तक कंपनी बिना केंद्रीय अनुमति के उत्पादन करती रही।

एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार,

“यह घटना हमारे नियामक तंत्र की चेतावनी है। हम अब सभी राज्यों से पुरानी कंपनियों का डेटा अपडेट कराने और पुराने लाइसेंस की समीक्षा करने जा रहे हैं।”


जनता में आक्रोश और सवाल

इस घटना के बाद देशभर में औषधि सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ गई है। कई स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को अब अपने दवा निगरानी ढांचे को पूरी तरह डिजिटल और पारदर्शी बनाना होगा, ताकि कोई भी कंपनी सिस्टम से बाहर रहकर उत्पादन न कर सके।

मध्य प्रदेश के प्रभावित इलाकों में अब भी कई परिवार अपने बच्चों की मौत का कारण जानने के लिए न्याय की उम्मीद कर रहे हैं। वहीं, केंद्र और राज्य सरकारें अब एक-दूसरे पर लापरवाही का ठीकरा फोड़ने में जुटी हैं।


निचोड़ यह कि कफ सिरप कांड ने न सिर्फ एक कंपनी की गैर-जिम्मेदारी को उजागर किया है, बल्कि यह भी दिखा दिया कि भारत में दवा लाइसेंसिंग और निगरानी तंत्र में अब भी ऐसी गहरी खामियां हैं, जिनकी कीमत आम जनता को अपनी जान देकर चुकानी पड़ रही है।

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