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रायबरेली कांड पर नया मोड़: एसपी बोले – “दलित होने पर नहीं, चोर समझकर पीटा गया”, 5 आरोपी गिरफ्तार

भीड़ हिंसा के इस मामले में सियासत गरमाई, राहुल गांधी ने सरकार पर साधा निशाना; पुलिस ने कहा – “झूठा जातिगत एंगल फैलाया जा रहा है”

रायबरेली (उत्तर प्रदेश): उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले में 38 वर्षीय हरिओम वाल्मीकि की मौत के मामले ने एक नया मोड़ ले लिया है। जहां एक ओर इस घटना को दलित उत्पीड़न का मामला बताकर सियासी हलचल तेज है, वहीं पुलिस ने साफ कहा है कि हत्या जातिगत कारणों से नहीं हुई, बल्कि चोरी के शक में भीड़ ने पिटाई कर दी।

जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसपी) डॉ. यशवीर सिंह ने बुधवार को बयान जारी करते हुए कहा कि सोशल मीडिया पर “दलित होने के कारण हत्या” का जो नैरेटिव चलाया जा रहा है, वह गलत है। पुलिस ने मामले में 5 आरोपियों को गिरफ्तार किया है और 15 से अधिक लोगों की पहचान की जा रही है।


रात 1 बजे हुआ हादसा, चोर समझकर भीड़ ने किया हमला

यह घटना 2 अक्टूबर की रात करीब 1 बजे ऊंचाहार थाना क्षेत्र के जमुनापुर गांव की है।
पुलिस के मुताबिक, मृतक हरिओम वाल्मीकि रात में गांव के पास घूम रहा था। उसी दौरान कुछ ग्रामीणों को शक हुआ कि वह चोरी के इरादे से आया है। देखते ही देखते वहां भीड़ जमा हो गई और लोगों ने उसे पकड़कर बेरहमी से पीटना शुरू कर दिया।
सूचना मिलने पर पुलिस मौके पर पहुंची और घायल हरिओम को अस्पताल ले जाया गया, लेकिन डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।

घटना का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था, जिसके बाद यह मामला जातिगत हिंसा के रूप में सामने आया और राज्यभर में राजनीतिक प्रतिक्रिया होने लगी।


पांच आरोपी हिरासत में, कई की पहचान जारी

एसपी डॉ. यशवीर सिंह ने बताया कि इस मामले में पांच लोगों — विजय सिंह, वैभव सिंह, विपिन मौर्य, सहदेव पासी और सुरेश मौर्य — को गिरफ्तार कर लिया गया है।
उन्होंने कहा, “हमने वीडियो और स्थानीय गवाहों के बयान के आधार पर अन्य कई लोगों की पहचान की है। लगभग 15-20 लोगों को चिन्हित किया गया है जो घटना के समय मौजूद थे और किसी ने भी रोकथाम की कोशिश नहीं की।”

एसपी ने यह भी जोड़ा कि सभी गिरफ्तार आरोपियों पर गंभीर धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है और उनके खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) और गैंगस्टर एक्ट के तहत कार्रवाई की जाएगी।


पांच पुलिसकर्मी सस्पेंड, थानेदार हटाए गए

पुलिस की लापरवाही को देखते हुए प्रशासन ने सख्त कदम उठाए हैं।
एसपी ने बताया कि ऊंचाहार थाने के प्रभारी निरीक्षक समेत पांच पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर दिया गया है।
उन्होंने कहा, “पुलिस को समय पर सूचना नहीं मिली, लेकिन ड्यूटी पर मौजूद कर्मियों को घटनास्थल पर तेजी से पहुंचना चाहिए था। उनकी निष्क्रियता के कारण यह हादसा हुआ।”

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि घटना जातिगत द्वेष के कारण नहीं हुई, क्योंकि “गांव में उस समय मौजूद लोग मृतक को पहचानते नहीं थे, न ही किसी ने उसकी जाति पूछी। भीड़ में मौर्य, पासी और सामान्य वर्ग — सभी समुदायों के लोग शामिल थे।”


सियासत में गरमी, विपक्ष ने सरकार पर साधा निशाना

इस घटना ने राजनीतिक गलियारों में भी हलचल मचा दी है।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर पोस्ट करते हुए लिखा —

“रायबरेली में दलित युवक हरिओम वाल्मीकि की हत्या सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि इंसानियत, संविधान और न्याय की हत्या है। देश में नफरत और भीड़तंत्र को सत्ता का संरक्षण मिला हुआ है।”

राहुल गांधी के अलावा समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने भी घटना की निष्पक्ष जांच की मांग की है।
बसपा ने बयान जारी कर कहा कि “दलित समुदाय के लोगों के साथ हिंसा लगातार बढ़ रही है और पुलिस प्रशासन निष्प्रभावी नजर आ रहा है।”

वहीं, भाजपा ने विपक्ष पर “बिना तथ्यों के राजनीति करने” का आरोप लगाया है। पार्टी प्रवक्ता ने कहा कि “पुलिस ने तथ्यों के आधार पर जो बयान दिया है, वही सत्य है। हर अपराध को जातिगत चश्मे से देखने की राजनीति समाज में जहर घोलती है।”


पुलिस का पलटवार: “सोशल मीडिया पर गलत प्रचार”

एसपी डॉ. यशवीर सिंह ने सख्त लहजे में कहा कि कुछ संगठनों और सोशल मीडिया अकाउंट्स ने घटना को “दलित अत्याचार” का रूप देकर भ्रम फैलाने की कोशिश की।
उन्होंने कहा, “हमने तथ्यों की जांच की है। वीडियो और प्रत्यक्षदर्शियों के बयान में कहीं भी जातिगत टिप्पणी या अपशब्द नहीं मिले हैं। यह स्पष्ट रूप से चोरी के संदेह से जुड़ा मामला है।”

उन्होंने जनता से अपील की कि वे अफवाहों पर ध्यान न दें और सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही भ्रामक सूचनाओं से दूर रहें।


एनएसए और गैंगस्टर एक्ट के तहत कार्रवाई की तैयारी

पुलिस ने बताया कि अब यह मामला सिर्फ हत्या का नहीं रहेगा, बल्कि गंभीर आपराधिक साजिश और भीड़ हिंसा (Mob Lynching) की श्रेणी में रखा गया है।
एसपी ने कहा कि सभी गिरफ्तार आरोपियों की आपराधिक पृष्ठभूमि की जांच की जा रही है।
अगर इनमें किसी का संगठित अपराध से संबंध पाया गया, तो गैंगस्टर अधिनियम लगाया जाएगा।

इसके अलावा, राज्य सरकार ने भी घटना की रिपोर्ट तलब की है और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए हैं।


भीड़ हिंसा पर एक और चेतावनी

यह घटना एक बार फिर यह सवाल उठाती है कि भीड़ द्वारा न्याय (mob justice) की प्रवृत्ति किस हद तक समाज में बढ़ रही है।
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि “किसी पर भी शक होने पर जनता खुद न्याय करने की कोशिश करती है, जिससे निर्दोष लोग भी मारे जा रहे हैं।”

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, पिछले पाँच वर्षों में भीड़ हिंसा से जुड़ी घटनाओं में 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
कानून विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी घटनाओं में न केवल प्रत्यक्ष हिंसक लोग बल्कि मौन दर्शक भी दोषी माने जाने चाहिए, क्योंकि उनकी निष्क्रियता भी अपराध को प्रोत्साहित करती है।


पुलिस जांच जारी, अंतिम रिपोर्ट जल्द

पुलिस ने कहा है कि जांच पूरी होने के बाद आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट जल्द ही अदालत में दाखिल की जाएगी।
फिलहाल मृतक हरिओम वाल्मीकि के परिजनों को सुरक्षा और मुआवजे की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।
जिला प्रशासन ने परिजनों को 5 लाख रुपये की आर्थिक सहायता प्रदान की है और कहा है कि न्यायिक प्रक्रिया पूरी पारदर्शिता से होगी।

रायबरेली की यह घटना सिर्फ एक हत्या नहीं, बल्कि झूठ और तथ्यों के बीच की लड़ाई बन गई है।
जहां एक ओर राजनीतिक दल इसे सामाजिक अन्याय का प्रतीक बताने में जुटे हैं, वहीं पुलिस इसे महज भीड़ हिंसा का मामला मान रही है।
अब यह देखना होगा कि जांच के नतीजे क्या बताते हैं — क्या यह सच में चोर समझे जाने की त्रासदी थी, या इसके पीछे कोई गहरी सामाजिक परत छिपी है।

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