
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगेतर की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा भुगत रही एक महिला और उसके साथी को बड़ा राहतपूर्ण जीवनदान दिया है। अदालत ने दोनों की गिरफ्तारी और सजा पर अस्थायी रोक लगाते हुए उन्हें कर्नाटक के राज्यपाल से क्षमादान की अपील करने के लिए 8 सप्ताह का समय दिया है।
इस मामले में शीर्ष अदालत का यह फैसला अब विधिक और नैतिक दृष्टिकोण से राष्ट्रीय बहस का विषय बनता जा रहा है।
क्या है मामला?
यह केस कर्नाटक का है, जहां एक महिला और उसका प्रेमी महिला के मंगेतर की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा भुगत रहे थे। निचली अदालत और हाई कोर्ट से सजा बरकरार रहने के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।
सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने माना कि यह अपराध पूरी तरह पूर्व नियोजित नहीं, बल्कि “गलत ढंग से उठाए गए विद्रोह” और “रोमांटिक भ्रम” की स्थिति में किया गया प्रतीत होता है।
अदालत ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि:
“यह मामला पूरी तरह आपराधिक दुर्भावना का नहीं, बल्कि परिस्थितियों से उपजा एक असामान्य निर्णय प्रतीत होता है। दोषियों ने अपना कृत्य स्वीकार किया है और जेल में काफी समय व्यतीत कर चुके हैं। ऐसे में राज्यपाल से क्षमादान की याचना करना उपयुक्त होगा।”
क्षमा याचना के लिए 8 सप्ताह की मोहलत
अदालत ने दोनों दोषियों को राज्यपाल के समक्ष दया याचिका दाखिल करने के लिए 8 हफ्तों का समय दिया है और तब तक के लिए उनकी सजा एवं गिरफ्तारी पर रोक लगाई है।
कानूनी हलकों में चर्चा का विषय
यह फैसला अब कानून, नैतिकता और क्षमा के अधिकार के उपयोग पर एक नई बहस को जन्म दे रहा है। कुछ कानूनी विशेषज्ञ इसे “मानवीय दृष्टिकोण से न्याय का विस्तार” मान रहे हैं, वहीं कुछ का कहना है कि ऐसे मामलों में सावधानी जरूरी है, ताकि यह भविष्य में मिसाल बनकर गलत संकेत न दे।
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