देशफीचर्ड

PMLA की धारा 50 और 63 को चुनौती: सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया नोटिस

खबर को सुने

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (PMLA) की धारा 50 और 63 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली एक रिट याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। याचिका में इन प्रावधानों को संविधान के अनुच्छेद 14, 20(3), 21 और 300ए का उल्लंघन बताया गया है।

मुख्य याचिकाकर्ता और प्रक्रिया:

  • याचिका अधिवक्ताओं आशीष पांडे और लिपिका दास की सहायता से दायर की गई।

  • न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह की पीठ ने याचिका को WP(Crl) 65/2023 जैसे मामलों के साथ टैग किया है।

चुनौती के प्रमुख आधार:

  1. धारा 50 की शक्तियाँ — आत्म-दोषारोपण का खतरा:

    • याचिका में तर्क दिया गया है कि धारा 50 के तहत ईडी को गैर-अभियुक्त व्यक्तियों से भी बयान लेने की शक्ति दी गई है, जिससे व्यक्ति को आत्म-दोषारोपण के लिए बाध्य किया जा सकता है — यह अनुच्छेद 20(3) और 21 का उल्लंघन है।

  2. विजय मदनलाल चौधरी मामला — पुनर्विचार की आवश्यकता:

    • 2022 में दिए गए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने ईडी की शक्तियों को बरकरार रखा था, लेकिन याचिकाकर्ताओं का कहना है कि वह फैसला “per incuriam” (कानूनी बिंदुओं की उपेक्षा करते हुए) था।

    • वर्तमान में यह फैसला एक अन्य खंडपीठ (न्यायमूर्ति सूर्यकांत, उज्जल भुइयां और एन कोटिश्वर सिंह) द्वारा समीक्षा के अधीन है।

  3. ECIR की पारदर्शिता — ‘मछली पकड़ने वाली’ जांच का आरोप:

    • याचिकाकर्ताओं का कहना है कि ईडी द्वारा ECIR की जानकारी न देना व्यक्ति के अधिकारों का हनन है और मनमानी जांच का मार्ग खोलता है।

  4. सम्मन की प्रक्रिया — आपराधिक प्रक्रिया का उल्लंघन:

    • बिना उचित कारण बताए किसी को बुलाने की शक्ति का दुरुपयोग हो सकता है, जो निष्पक्ष सुनवाई और प्रक्रिया के सिद्धांतों के विपरीत है।

प्रासंगिक कानूनी संदर्भ:

  • PMLA की धारा 50:

    • ईडी को सिविल कोर्ट जैसी शक्तियां देती है: साक्ष्य बुलाना, बयान दर्ज करना, दस्तावेज़ जब्त करना।

    • यह कार्यवाही भारतीय दंड संहिता की धारा 193 और 228 के अंतर्गत “न्यायिक प्रक्रिया” मानी जाती है।

  • धारा 63:

    • ईडी को गलत जानकारी देने या सहयोग न करने पर दंडात्मक कार्यवाही की अनुमति देती है।

  • पूर्व निर्णय (विजय मदनलाल चौधरी मामला):

    • कोर्ट ने कहा था कि ईडी अधिकारी पुलिस नहीं हैं, इसलिए उनके सामने दिए गए बयान अनुच्छेद 20(3) की सुरक्षा में नहीं आते।

यह याचिका PMLA के कार्यान्वयन में मौलिक अधिकारों और प्रक्रिया की न्यायिकता को लेकर गहन कानूनी बहस की पृष्ठभूमि में आती है। सुप्रीम कोर्ट का आगामी फैसला ईडी की शक्तियों और नागरिक अधिकारों के संतुलन को परिभाषित करने में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button