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CJI गवई की नाराज़गी: महाराष्ट्र के टॉप अफसरों की गैरमौजूदगी पर उठाए सवाल, दी सधी हुई नसीहत

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मुंबई : भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बीआर गवई ने रविवार को महाराष्ट्र के तीन शीर्ष अधिकारियों — मुख्य सचिव सुजाता सौनिक, डीजीपी रश्मि शुक्ला और मुंबई पुलिस कमिश्नर देवेन भारती — की एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम में अनुपस्थिति को लेकर अप्रत्यक्ष रूप से सख्त टिप्पणी की। CJI गवई ने कहा कि लोकतंत्र के तीनों स्तंभों — न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका — को एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए।

मामला क्या है?

मुंबई में महाराष्ट्र और गोवा बार काउंसिल द्वारा आयोजित एक सम्मान समारोह में CJI गवई मुख्य अतिथि के तौर पर पहुंचे थे। यह कार्यक्रम CJI बनने के बाद उनका अपने गृह राज्य महाराष्ट्र का पहला दौरा था। लेकिन इस मौके पर न तो राज्य के मुख्य सचिव पहुंचे, न डीजीपी और न ही मुंबई पुलिस कमिश्नर।

इस पर मंच से ही उन्होंने कहा:

“जब महाराष्ट्र राज्य का कोई व्यक्ति CJI बनने के बाद पहली बार अपने राज्य आता है, और राज्य के शीर्ष अफसरों को वहां मौजूद होना जरूरी नहीं लगता, तो उन्हें खुद इस पर विचार करना चाहिए।”

CJI ने दिया लोकतंत्र का पाठ

CJI गवई ने बेहद सधे और गरिमामय लहजे में लोकतांत्रिक मूल्यों की याद दिलाई। उन्होंने कहा:

“लोकतंत्र के तीनों स्तंभ बराबर हैं और एक-दूसरे को सम्मान देना उनका कर्तव्य है। यह मेरे लिए प्रोटोकॉल का सवाल नहीं है, बल्कि न्यायपालिका जैसी संस्था के प्रति सम्मान का सवाल है।”

उन्होंने यह भी कहा कि वे खुद कभी पायलट एस्कॉर्ट नहीं लेते और पहले दोस्तों की बाइक पर सफर करते थे, लेकिन यहां बात पद या विशेषाधिकार की नहीं, बल्कि संवैधानिक संस्थाओं के सम्मान की है।

CJI गवई ने अपने संबोधन में संविधान के अनुच्छेद 142 (Article 142) का भी उल्लेख किया, जो सुप्रीम कोर्ट को विशेष शक्तियां देता है।

उन्होंने कहा:

“अगर कोई जज ऐसा करता (गैरहाजिर रहता), तो लोग तुरंत आर्टिकल 142 का मुद्दा उठाते। इसलिए यह छोटी बात नहीं है, बल्कि लोगों को ऐसी संवेदनशीलता के बारे में जागरूक करना जरूरी है।”

इसके बाद पहुंचे अफसर, CJI का जवाब साफ

कार्यक्रम के बाद जब CJI ‘चैत्य भूमि’ — डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर की समाधि — पर पहुंचे, तो तीनों अफसर वहां मौजूद थे। मीडिया ने जब CJI से इस बारे में पूछा तो उन्होंने कहा:

“मुझे प्रोटोकॉल की चिंता नहीं है। मैंने वही कहा जो वास्तव में हुआ।”

CJI का यह बयान ऐसे समय में आया है, जब हाल के वर्षों में न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच न्युक्ति प्रक्रिया, कार्यकारी शक्तियों और संवैधानिक मर्यादाओं को लेकर बहस तेज़ हुई है। ऐसे में शीर्ष न्यायाधीश की यह सार्वजनिक टिप्पणी निश्चित तौर पर प्रशासनिक हलकों में संदेश देने वाली है।

CJI गवई की टिप्पणी एक संवेदनशील और संस्थागत चेतावनी के तौर पर देखी जा रही है। यह न सिर्फ महाराष्ट्र प्रशासन के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए यह याद दिलाने जैसा है कि लोकतंत्र में सम्मान और संवाद किसी भी संवैधानिक प्रणाली की बुनियाद होते हैं।

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