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थार रेगिस्तान में मिला 4500 साल पुराना हड़प्पा कालीन शहर, भारत-पाक सीमा के पास बड़ी पुरातात्विक खोज

राजस्थान के जैसलमेर ज़िले में "रातडिया री डेरी" स्थल से सिंधु घाटी सभ्यता के नगर-स्तरीय अवशेष प्राप्त, विशेषज्ञों ने बताई अभूतपूर्व खोज

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जयपुर, 31 जुलाई | विशेष संवाददाता: राजस्थान के थार रेगिस्तान में एक ऐतिहासिक खोज सामने आई है जिसने पुरातत्व और इतिहास के क्षेत्र में नई हलचल पैदा कर दी है। जैसलमेर ज़िले की रामगढ़ तहसील के पास “रातडिया री डेरी” नामक स्थल पर लगभग 4500 साल पुराने हड़प्पा सभ्यता (सिंधु घाटी सभ्यता) के नगर-स्तरीय अवशेष मिलने का दावा किया गया है।

इस खोज ने यह सिद्ध कर दिया है कि हड़प्पा सभ्यता केवल नदी किनारे तक सीमित नहीं थी, बल्कि इसका विस्तार थार के कठिन और शुष्क मरुस्थल तक था।


कहां मिला यह स्थल?

“रातडिया री डेरी” स्थल रामगढ़ से लगभग 60-70 किमी और सादेवाला से 15-17 किमी उत्तर-पश्चिम में स्थित है। यह क्षेत्र भारत-पाकिस्तान सीमा से बेहद करीब है और पहले यहां कोई बड़ी पुरातात्विक खुदाई दर्ज नहीं की गई थी।


क्या मिला खुदाई में?

विशेषज्ञों की टीम को यहां से मृदभांड, टैराकोटा की वस्तुएं, शंख और मिट्टी की चूड़ियां, चर्ट पत्थर से बने धारदार ब्लेड, और वेज आकार की ईंटें मिली हैं।
साथ ही, खुदाई के दौरान एक गोलाकार भट्टी का भी पता चला है जिसकी बनावट मोहनजोदड़ो और गुजरात के कानमेर में पाई गई प्राचीन भट्टियों से मिलती-जुलती है।

प्राप्त वस्तुओं में शामिल हैं:

  • लेपयुक्त लाल मृदभांड, परफोरेटेड जार के टुकड़े
  • चर्ट पर बने ब्लेड (8–10 सेमी लंबे)
  • त्रिकोणाकार, गोलाकार टैराकोटा केक
  • पीसने और घिसने के औजार
  • नगरीय स्तर की सामान्य और वेज ईंटें

किसने की यह खोज?

यह खोज राजस्थान विश्वविद्यालय के इतिहासकारों और अन्य शोध संस्थानों की संयुक्त टीम द्वारा की गई है। प्रमुख शोधकर्ताओं में शामिल हैं:

  • प्रो. जीवन सिंह खरकवाल
  • डॉ. तमेघ पंवार
  • डॉ. रविंद्र देवरा
  • दिलीप कुमार सैनी, पार्थ जगानी, चतरसिंह जाम, और प्रदीप कुमार गर्ग

इन विशेषज्ञों ने इस खोज को लेकर इंडियन जर्नल ऑफ साइंस में रिसर्च पेपर भी प्रस्तुत किया है।


क्या है खोज का महत्व?

यह खोज सिर्फ एक और पुरातात्विक स्थल नहीं है — यह सिंधु घाटी सभ्यता की भौगोलिक सीमाओं को विस्तार देने वाली खोज है। अब तक यह माना जाता था कि हड़प्पा सभ्यता मुख्यतः नदी घाटियों के पास तक ही सीमित थी, लेकिन यह स्थल बताता है कि यह रेगिस्तानी क्षेत्रों में भी विकसित हुई थी।

विशेषज्ञों के अनुसार, “यह स्थल न केवल सिंधु घाटी सभ्यता की नवाचार क्षमता को दर्शाता है, बल्कि यह सिद्ध करता है कि उस समय के लोग कठिन भौगोलिक और जलवायु परिस्थितियों में भी नगरीय जीवन प्रणाली विकसित कर सकते थे।”


एक ऐतिहासिक धरोहर के तौर पर मान्यता की ओर

पुरातत्वविदों का मानना है कि “रातडिया री डेरी” साइट को आने वाले वर्षों में राष्ट्रीय महत्व का संरक्षित पुरास्थल घोषित किया जा सकता है। यह स्थल उत्तर भारत (हरियाणा, पंजाब) और दक्षिण-पश्चिम भारत (गुजरात, सिंध) के बीच की सभ्यतागत कड़ी के रूप में देखा जा रहा है।


थार के सीने में दबी थी सभ्यता की एक और कहानी

राजस्थान के जैसलमेर ज़िले में मिली यह खोज बताती है कि इतिहास सिर्फ किताबों में नहीं, रेत के कणों में भी दर्ज है4500 साल पुरानी यह बस्ती न केवल इतिहासकारों के लिए, बल्कि वर्तमान और भविष्य की सभ्यताओं को समझने के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है।

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