उत्तराखंडफीचर्ड

उत्तराखंड में नाबालिग के साथ गंभीर उत्पीड़न का मामला, डॉ. गीता खन्ना ने जताई कड़ी आपत्ति

खबर को सुने

देहरादून : उत्तराखंड राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष डॉ. गीता खन्ना को आज एक बेहद चिंताजनक और संवेदनशील मामला संज्ञान में आया, जिसमें एक 15 वर्षीय बालिका को अधूरे गर्भपात (incomplete abortion) और अत्यधिक रक्तस्राव की गंभीर स्थिति में दून अस्पताल के प्रसूति विभाग में भर्ती कराया गया है। आयोग ने इसे बाल संरक्षण के लिहाज से गंभीर उल्लंघन और समाज की संवेदनहीनता की मिसाल बताया है।

🔸 जबरन दी गई गर्भनिरोधक दवा, मोहल्ले के युवक पर गंभीर आरोप

सूत्रों के अनुसार, पीड़िता को 108 एम्बुलेंस सेवा के माध्यम से अस्पताल लाया गया। प्रारंभिक जांच में यह सामने आया है कि एक युवक एवं उसकी माता द्वारा जबरन गर्भनिरोधक दवा दी गई, जिससे उसकी तबीयत बिगड़ गई। यह भी जानकारी मिली है कि आरोपी युवक की माँ एक निजी अस्पताल में कार्यरत है और घटना के समय बच्ची के पास ही मौजूद थीं।

🔸 परिवारिक हालात बेहद दयनीय

बालिका की पारिवारिक पृष्ठभूमि भी अत्यंत दुखद है। माता का निधन कोरोना काल में हो गया था, जबकि पिता परिवार को पहले ही छोड़ चुके हैं। वर्तमान में बालिका और उसकी बड़ी बहन का कोई स्थायी अभिभावक नहीं है। बड़ी बहन स्वयं एनीमिया जैसी बीमारी से पीड़ित है और इस समय अस्पताल में पीड़िता के साथ मौजूद है।

🔸 शिक्षा, सुरक्षा और स्वास्थ्य – तीनों मोर्चों पर विफलता

बालिका ने कक्षा 5 के बाद स्कूल जाना छोड़ दिया था, जो कि उसके शिक्षा-अधिकार की उपेक्षा को दर्शाता है। डॉ. गीता खन्ना ने इस घटना को राज्य की सामाजिक संरचना, सुरक्षा तंत्र और सामूहिक चेतना (Collective Consciousness) की विफलता करार दिया है।

🔸 आयोग की सक्रियता और सख्त निर्देश

आयोग को पुलिस द्वारा सूचित किया गया है कि आरोपी युवक को हिरासत में ले लिया गया है, लेकिन डॉ. खन्ना ने इस प्रक्रिया में लैंगिक संवेदनशीलता की कमी पर गहरी चिंता व्यक्त की है।

उन्होंने निर्देश दिए हैं कि पीड़िता की बड़ी बहन की भी चिकित्सकीय जांच करवाई जाए और आवश्यकता अनुसार पुनर्वास (Rehabilitation) की योजना बनाई जाए। इसके अतिरिक्त, बाल कल्याण समिति (CWC) को निर्देशित किया गया है कि वह पीड़िता की सुरक्षा, परामर्श और पुनर्वास की पूर्ण जिम्मेदारी ले

डॉ. गीता खन्ना ने कहा,

“यह केवल एक बालिका का नहीं, बल्कि पूरे समाज की असफलता का मामला है। जब समाज ऐसे मामलों पर चुप्पी साध लेता है, तो वह खुद अपराध का भागीदार बन जाता है।”

उन्होंने आमजन से अपील की कि बच्चों के अधिकारों और उनकी सुरक्षा के लिए सजग और संवेदनशील बनें, ताकि किसी और मासूम को इस प्रकार की त्रासदी का शिकार न होना पड़े।

यह मामला राज्य की बाल सुरक्षा व्यवस्था के लिए एक गंभीर चेतावनी है और यह दर्शाता है कि बालिकाओं की सुरक्षा के लिए केवल कानून नहीं, समाज की सक्रिय भागीदारी भी अनिवार्य है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button