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आंध्र प्रदेश में 76.74 एकड़ वनभूमि अतिक्रमण का बड़ा खुलासा; डिप्टी सीएम पवन कल्याण ने पूर्व मंत्री पेड्डीरेड्डी पर लगाए गंभीर आरोप

अमरावती/नयी दिल्ली, 14 नवंबर। आंध्र प्रदेश में वनभूमि अतिक्रमण को लेकर बड़ा मामला सामने आया है। राज्य के उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण ने पूर्वी घाट के मंगलमपेटा रिजर्व फॉरेस्ट में बड़े पैमाने पर अवैध कब्जे का आरोप लगाते हुए कहा है कि 76.74 एकड़ से अधिक वन क्षेत्र को अवैध रूप से निजी संपत्ति में बदला गया। उन्होंने यह दावा भी किया कि यह जमीन कथित रूप से पूर्व वन मंत्री और वरिष्ठ वाईएसआरसीपी नेता पेड्डीरेड्डी रामचंद्र रेड्डी के प्रभाव से अनधिकृत रूप से घेर ली गई थी।

यह खुलासा राज्य सरकार द्वारा गठित तीन-सदस्यीय उच्च स्तरीय समिति की संयुक्त सर्वेक्षण रिपोर्ट पर आधारित है, जिसमें वन, राजस्व और भूमि अभिलेख विभाग शामिल थे। समिति ने कई दौर के निरीक्षण, ड्रोन सर्वे और सीमा स्तंभों के पुनर्मूल्यांकन के बाद विस्तृत रिपोर्ट सरकार को सौंपी है।


197 दिनों की जांच और संयुक्त सर्वेक्षण में क्या सामने आया?

जनवरी 2025 में पहली बार जब स्थानीय वन अधिकारियों ने अतिक्रमण की आशंका व्यक्त की, तो राज्य सरकार ने तुरंत उच्च स्तरीय समिति बनाकर विस्तृत जाँच का आदेश दिया। समिति ने पिछले 6 महीनों के दौरान 26 से अधिक फील्ड निरीक्षण किए। रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष इस प्रकार हैं:

1. निर्धारित सीमा से बाहर 32.63 एकड़ वनभूमि पर अतिक्रमण

1968 की राजपत्र अधिसूचना के अनुसार, क्षेत्र में केवल 75.74 एकड़ भूमि को कृषि योग्य माना गया था। लेकिन संयुक्त सर्वे के दौरान पाया गया कि

  • पेड्डीरेड्डी परिवार से जुड़ी भूमि को 103.98 एकड़ के ब्लॉक के रूप में घेर दिया गया था।
  • इस दौरान 32.63 एकड़ आरक्षित वन भूमि को निजी सीमा के भीतर शामिल कर लिया गया
  • 26 में से 15 वन सीमा स्तंभ (बाउंड्री पिलर्स) निजी बाड़ के भीतर पाए गए, जो सुनियोजित अतिक्रमण का स्पष्ट प्रमाण माना गया।

2. वन क्षेत्र में बागवानी और निजी कृषि गतिविधि

समिति ने बताया कि आरक्षित वन क्षेत्र में आम, नेरेडू और नारियल के पौधे बड़े पैमाने पर लगाए गए थे।

  • कुल 560 पेड़, जिनमें 533 आम के, 26 नेरेडू और 1 नारियल का पेड़ शामिल है, वन क्षेत्र में लगाए गए पाए गए।
  • यह आंध्र प्रदेश वन अधिनियम, 1967 के तहत दंडनीय अपराध है क्योंकि आरक्षित वनभूमि को निजी कृषि या बागवानी में परिवर्तित नहीं किया जा सकता।

3. वन क्षेत्र में अवैध बोरवेल और पानी की आपूर्ति व्यवस्था

जांच रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि

  • आरक्षित वन के अंदर एक बोरवेल अवैध रूप से खोदा गया,
  • और उसी से पानी की आपूर्ति अतिक्रमित क्षेत्र में चल रही बागवानी के लिए की जाती थी।
    यह न केवल वानिकी कानून का उल्लंघन है बल्कि वन संसाधनों के दुरुपयोग की श्रेणी में आता है।

4. वैज्ञानिक आकलन के अनुसार ₹1.26 करोड़ से अधिक की वन क्षति

वन संरक्षण एवं संवर्धन नियम–2023 के तहत किए गए वैज्ञानिक मूल्यांकन में

  • कुल ₹1,26,52,750 की पर्यावरणीय क्षति का अनुमान निकाला गया है।
    इसमें वन क्षेत्र की पारिस्थितिकी, पौधों की हानि, जल संसाधन क्षति और जैव विविधता के नुकसान का मूल्यांकन शामिल है।

5. दस्तावेजी सबूत प्रस्तुत करने में विफलता

बीएनएसएस की धारा 94 के तहत

  • 14 मई 2025 को अतिक्रमण में आरोपित लोगों को नोटिस जारी किया गया था।
  • नोटिस में स्पष्ट रूप से जमीन के स्वामित्व अभिलेख प्रस्तुत करने को कहा गया।
    लेकिन समिति के अनुसार कोई भी दस्तावेज ऐसा नहीं मिला जो वनभूमि को निजी स्वामित्व साबित करता हो।

6. जमीन की वापसी और सरकारी कार्रवाई

राज्य सरकार ने 28 मई 2025 को आदेश जारी करते हुए

  • राजपत्र के अनुसार सभी सीमा स्तंभों का पुनर्निर्माण कराया,
  • और 32.63 एकड़ वनभूमि को आधिकारिक रूप से वापस ले लिया।
    इसके साथ ही अतिक्रमित क्षेत्र से बागवानी हटाने और पेड़ों को जब्त करने की प्रक्रिया शुरू की गई।

उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण का दौरा एवं कड़े निर्देश

विवाद बढ़ने के बाद उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण ने

  • क्षेत्र का हवाई सर्वेक्षण किया,
  • अधिकारियों के साथ जमीन पर जाकर निरीक्षण किया
  • और संयुक्त सर्वेक्षण रिपोर्ट की फील्ड नोटिंग की विस्तृत समीक्षा की।

उन्होंने मामले को मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू के समक्ष उठाया और तत्काल सख्त कार्रवाई करने के निर्देश दिए। पवन कल्याण ने कहा:

“वनभूमि पर अवैध कब्जा किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। चाहे कोई कितना भी प्रभावशाली व्यक्ति क्यों न हो, कानून सबके लिए समान है।”

इसके बाद उन्होंने सभी जिलों के वन अधिकारियों को निर्देश जारी किए कि:

  • पूरे राज्य में अतिक्रमित वनभूमि की एकीकृत सूची तैयार की जाए,
  • प्रत्येक मामले की स्थिति, अतिक्रमित क्षेत्र और संबंधित व्यक्तियों के नामों को
    राज्य सरकार की आधिकारिक वेबसाइट पर सार्वजनिक किया जाए।

उनके अनुसार पारदर्शिता ही वन संरक्षण को मजबूत करने का सबसे प्रभावी तरीका है।


राजनीतिक भूचाल और संभावित कानूनी कार्रवाई

यह मामला आने वाले दिनों में आंध्र प्रदेश की राजनीति में बड़ा मुद्दा बनने की संभावना रखता है।
पूर्व मंत्री पेड्डीरेड्डी रामचंद्र रेड्डी पहले भी भूमि मामलों को लेकर विवादों में रहे हैं। ruling गठबंधन का कहना है कि यह “सिस्टमेटिक अवैध कब्जे” का मामला है, जबकि विपक्ष इसे “राजनीतिक प्रतिशोध” बता रहा है।

लेकिन संयुक्त सर्वेक्षण के दस्तावेजों, बाउंड्री मैपिंग, ड्रोन इमेजरी और GPS लोकेशन के आधार पर सरकार का दावा है कि यह मामला केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि स्पष्ट रूप से वनभूमि अतिक्रमण का है।

आंध्र प्रदेश की इस बड़ी कार्रवाई ने राज्य में वनक्षेत्र सुरक्षा, राजस्व रिकॉर्ड की पारदर्शिता और राजनीतिक जवाबदेही पर एक नई बहस छेड़ दी है। सरकार के अनुसार आने वाले सप्ताहों में इस मामले में आपराधिक कार्रवाई, जुर्माना, और वनभूमि पुनर्स्थापन की प्रक्रिया आगे बढ़ाई जाएगी।

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